गुरु पूर्णिमा - श्रद्धा, साधना और समर्पण के साथ मनाया “मातृ उद्बोधन आध्यात्मिक केन्द्र”

गुरु पूर्णिमा - श्रद्धा, साधना और समर्पण के साथ मनाया “मातृ उद्बोधन आध्यात्मिक केन्द्र”

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 11 जुलाई :

भारतीय संस्कृति में गुरु को परम स्थान प्राप्त है। वेदों में कहा गया है  “गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः”। गुरु न केवल जीवन का मार्गदर्शन करते हैं, बल्कि आत्मा के अंधकार को हटाकर उसे प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु पूर्णिमा का पर्व उसी परंपरा का दिव्य प्रतीक है, एक ऐसा दिन जब शिष्य अपने गुरु के चरणों में कृतज्ञता अर्पित करता है। इसी भावना से ओतप्रोत, पटना के कंकड़बाग स्थित मातृ उद्बोधन आध्यात्मिक केन्द्र में इस वर्ष गुरु पूर्णिमा महोत्सव का भव्य आयोजन हुआ, जिसमें देश के प्रख्यात विद्वान, संत, समाजसेवी और श्रद्धालु भक्तों ने भाग लिया।

महोत्सव का प्रारंभ प्रातः 8:30 बजे हुआ। इस अवसर पर ट्रस्ट के संचालक ठाकुर अरुण कुमार सिंह ने बताया कि आश्रम से सद्गुरु जी की चरण पादुका को भजन-कीर्तन के साथ श्री स्वामी सहजानंद गोस्वामी ने अपने मस्तक पर धारण कर राजा उत्सव कम्युनिटी हॉल तक लाया गया। वहीं, पुरोहित जी और ट्रस्ट के संयुक्त सचिव प्रसादी रजक द्वारा स्वास्तिक वाचन और विधिवत पूजन सम्पन्न हुआ। यजमान के रूप में फाल्गुनी मित्रा और कृष्णा मित्रा विराजमान रहे। इसके पश्चात् नव कन्याओं द्वारा सद्गुरु जी का स्वागत, पूजन और आरती की गई, जिससे वातावरण भक्तिमय हो उठा।

ठाकुर अरुण कुमार सिंह, जो इस ट्रस्ट के संस्थापक और संचालक भी हैं, ने कहा कि "सच्चा गुरु वही है जो लोभ, मोह और अहंकार से रहित होता है। जो शास्त्रों का ज्ञाता हो और जिसके उपदेश जीवन को मोक्ष की ओर ले जाएँ।" उन्होंने बताया कि कलियुग में ऐसे गुरु की पहचान करना कठिन है, परन्तु जब एक बार सच्चे गुरु की कृपा मिलती है तो जीवन आनंदमयी हो जाता है।

कार्यक्रम की शृंखला में मुख्य अतिथि "दिव्य रश्मि" मासिक पत्रिका एव न्यूज चैनल” के संपादक डॉ राकेश दत्त मिश्र, तथा  “राजनीति चाणक्य” मासिक पत्रिका के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा का स्वागत ट्रस्ट पदाधिकारियों द्वारा तिलक, माला, पुष्प गुच्छ, अंग वस्त्र एवं मोमेंटो से किया गया।  मुख्य अतिथि की गरिमामयी उपस्थिति में स्मारिका और कैलेंडर का लोकार्पण किया गया।

मुख्य अतिथि के रूप में डॉ राकेश दत्त मिश्र ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि "जीवन की सार्थकता तभी संभव है जब उसमें एक सच्चे और योग्य आध्यात्मिक गुरु का सान्निध्य प्राप्त हो।" उन्होंने कहा कि गुरु के प्रति प्रेम, आस्था और निष्ठा बनाए रखने से मनुष्य की आत्मा निर्मल होता है और जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयाँ सरल हो जाता हैं। जीवन के हर क्षेत्र में, चाहे वह भौतिक हो या आत्मिक, सफलता के लिए गुरु की कृपा परम आवश्यक है।
डॉ मिश्र ने कहा कि गुरु की कृपा से संसारिक मोह, कष्ट, अज्ञान और भटकाव से मुक्ति मिलती है। गुरु के मार्गदर्शन में व्यक्ति आत्मा की गहराइयों को समझ पाता है और अपने जीवन को सत्य, अहिंसा, प्रेम और सेवा की राह पर अग्रसर करता है। “जब तक जीवन में आध्यात्मिक गुरु नहीं होता, तब तक आत्मा अधूरी रहती है। गुरु वह दीपक हैं जो हमारे अंतर्मन के अंधकार को समाप्त कर देते हैं।”

कार्यक्रम के मंच संचालक एवं गुरु पूर्णिमा विशेष पत्रिका के संपादक  सुरेन्द्र कुमार रंजन ने अपने प्रेरणादायक वक्तव्य में गुरु की महिमा को चंद्रमा से तुलना करते हुए कहा कि  “गुरु उस पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह होता हैं, जो अपने प्रकाश से शिष्य के जीवन में आलोक भर देता हैं।” उन्होंने बताया कि गुरु वही है जो अपने शिष्यों के भीतर की संभावनाओं को पहचानकर उन्हें निखारता है, और हर परिस्थिति में सच्ची दिशा दिखाता है।
कार्यक्रम के विशेष अतिथि के रूप में बिहार कॉलेज ऑफ फिजियोथेरेपी एंड ऑक्यूपेशनल थेरेपी, पटना के ऑक्यूपेशनल थेरेपी विभागाध्यक्ष डॉ प्रियदर्शी आलोक ने कहा कि “गुरु के बिना मानसिक, चारित्रिक और आत्मिक उत्थान असंभव है। गुरु की कृपा ही जीवन के समस्त अवरोधों को पार कराती है।” उन्होंने दीप प्रज्ज्वलन कर भजन संध्या का उद्घाटन किया और सभी श्रद्धालुओं को सद्गुरु की भक्ति के प्रति प्रेरित किया।

3:30 बजे से 5:00 बजे तक सद्गुरु के भक्तों ने अत्यंत भावपूर्ण भजन-कीर्तन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में शामिल प्रमुख कलाकारों में रंजन कुमार, संतोष कुमार, सुभाष प्रसाद शर्मा, वंदना देवी और रमेन्द्र कुमार झा शामिल थे। इन कलाकारों ने सद्गुरु की महिमा में कर्णप्रिय भजनों की प्रस्तुति दी, तो समस्त श्रद्धालु भक्त भक्ति-रस में सराबोर हो झूम उठे। वातावरण संगीतमय, आध्यात्मिक और आत्मिक अनुभूतियों से भर गया।

भजन संध्या कार्यक्रम में भक्तों ने अनेक पारंपरिक और आधुनिक भजनों की प्रस्तुति दी। “गुरु बिना ज्ञान नहीं”, “प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो”, “सद्गुरु का नाम सच्चा है” जैसे भजन गूंजते रहे। लोकगीतों की सुगंध में आध्यात्मिक भावनाओं की सरिता बह चली। सभी प्रस्तुतियों को उपस्थित जनसमूह ने आत्मसात किया और कार्यक्रम स्थल एक दिव्य ऊर्जा का केंद्र बन गया।

कार्यक्रम के अंतिम चरण में भजन संध्या प्रस्तुत करने वाले सभी कलाकारों को ट्रस्ट के पदाधिकारियों द्वारा तिलक, माला और मोमेंटो (स्मृति चिह्न) देकर सम्मानित किया गया। यह सम्मान समारोह यह दर्शाता है कि समाज में सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक सेवा देने वालों को उचित प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए।

कार्यक्रम के अंत में ठाकुर अरुण कुमार सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि "गुरु पूर्णिमा का यह आयोजन केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि संस्कारों और आत्मा की शुद्धि का उत्सव है।" उन्होंने सभी भक्तों, अतिथियों, कलाकारों और ट्रस्ट के सदस्यों का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।

उक्त अवसर पर मातृ उद्बोधन आध्यात्मिक केन्द्र (ट्रस्ट) के संस्थापक सह संचालक ठाकुर अरुण कुमार सिंह, अध्यक्ष मुरारी शर्मा, सचिव राकेश कुमार सिंह, कार्यकारी सचिव सह कोषाध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार, महासचिव सतीश कुमार सिंह, संपादक सुरेन्द्र कुमार रंजन, उपसचिव मनोज कुमार, उपाध्यक्ष ललिता देवी, अनिता सिंह, रिंकी सिंह, राखी सिन्हा, सुशीला देवी, धर्मशीला देवी, आरती देवी, अनिता पटेल, सहजानंद गोस्वामी,संजीत कुमार सिंह,संजय कुमार पाण्डेय, दयानंद प्रसाद,सूरज नारायण, अशोक कुमार, परमेश्वर दयाल, राजेश कुमार राजू रवि नारायण सिन्हा, देवानंद प्रसाद, उषा देवी, रीतेश कुमार सिंह, अरूण कुमार, राधेश्याम, हरेन्द्र सिंह, पत्रकार सनोबर खान एवं रोहित कुमार, पत्रकार सुनील कुमार सिन्हा सहित सैंकड़ों गुरु भाई -बहन , भक्तजन एवं कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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