विश्व किडनी दिवस 2025: "क्या आपके गुर्दे स्वस्थ हैं? सुरक्षित रहने के लिए समय रहते जांच कराएं
*— मोशीर आलम, निदेशक, सिटी डायलिसिस सेंटर, पटना*
हर वर्ष मार्च के दूसरे गुरुवार को विश्व किडनी दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य किडनी से संबंधित बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। इस वर्ष, 13 मार्च 2025 को, विश्व किडनी दिवस की थीम है: “क्या आपकी किडनी ठीक है? जल्दी पहचानें, किडनी स्वास्थ्य की रक्षा करें”।
किडनी: शरीर का महत्वपूर्ण अंग
किडनी हमारे शरीर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे रक्त को फ़िल्टर करके विषाक्त पदार्थों को निकालती हैं, शरीर में द्रव और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन को बनाए रखती हैं, और रक्तचाप को नियंत्रित करती हैं। किडनी की सही कार्यप्रणाली के बिना, शरीर में विषाक्त पदार्थ जमा हो सकते हैं, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
किडनी रोग: एक छुपा खतरा
किडनी रोगों को अक्सर “साइलेंट किलर” कहा जाता है क्योंकि उनके लक्षण प्रारंभिक चरण में स्पष्ट नहीं होते। भारत में, क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) एक बढ़ती हुई स्वास्थ्य चिंता है, जो चुपचाप लाखों लोगों को प्रभावित कर रही है। मुख्य जोखिम कारकों में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मोटापा और किडनी रोग का पारिवारिक इतिहास शामिल हैं।
गुर्दे का इतिहास और रोगों की पृष्ठभूमि
प्राचीन काल से ही गुर्दे को शरीर का "फ़िल्टर प्लांट" माना जाता रहा है। आयुर्वेद में इसे "वृक्क" कहा गया और इसके कार्यों को "मल शोधन" से जोड़ा। 19वीं सदी में वैज्ञानिकों ने गुर्दे की संरचना और क्रिया को समझा। 1940 के दशक में डायलिसिस मशीन का आविष्कार हुआ, जिसने गुर्दा खराब होने पर जीवनरक्षा का मार्ग खोला।
भारत में किडनी चिकित्सा का इतिहास
भारत में नेफ्रोलॉजी की शुरुआत 1960 के दशक में हुई। 1971 में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (CMC), वेल्लोर ने देश का पहला सफल किडनी ट्रांसप्लांट किया। 1980 तक एम्स, दिल्ली और PGIMER, चंडीगढ़ जैसे संस्थानों ने डायलिसिस और ट्रांसप्लांट सेवाएं शुरू कीं। भारत में आधुनिक नेफ्रोलॉजी की शुरुआत 1956 में हुई, जब पहली बार किडनी बायोप्सी की गई थी। यह घटना भारत में नेफ्रोलॉजी को एक विशेष चिकित्सा शाखा के रूप में मान्यता दिलाने में महत्वपूर्ण साबित हुई। पिछले पांच दशकों में, भारतीय नेफ्रोलॉजी ने उल्लेखनीय प्रगति की है, जिससे किडनी रोगों के निदान और उपचार में सुधार हुआ है।
आंकड़े चौंकाने वाले : भारत में 1.5 लाख से अधिक लोग प्रतिवर्ष गुर्दा रोगों से मरते हैं। इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के अनुसार, 17% भारतीय क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) से पीड़ित हैं।
- कारण: मधुमेह (37%), उच्च रक्तचाप (24%), और संक्रमण प्रमुख कारक।
- सुविधाएं: 2016 में शुरू राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम के तहत 800+ केंद्र सक्रिय। आज भी 90% ग्रामीण रोगी समय पर इलाज से वंचित।
बिहार में किडनी स्वास्थ्य की स्थिति
बिहार में किडनी रोगों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है। बिहार में गुर्दा रोगों का प्रसार राष्ट्रीय औसत से अधिक है। राज्य स्वास्थ्य विभाग 2023 के अनुसार:
- 2.3 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप और 1.1 करोड़ मधुमेह से पीड़ित, जो CKD के प्रमुख कारण हैं।
- 2025 तक राज्य में 50+ डायलिसिस केंद्रों की योजना, परंतु अभी केवल 30 सक्रिय। राज्य में जागरूकता की कमी, प्रारंभिक पहचान की अनुपलब्धता, और सीमित चिकित्सा सुविधाएं इस समस्या को और बढ़ा रही हैं। पटना में सिटी डायलिसिस सेंटर के निदेशक श्री मुशीर आलम ने बताया कि मैंने देखा है कि कई मरीज देर से आते हैं, जब किडनी की क्षति अपरिवर्तनीय हो चुकी होती है।
प्रारंभिक पहचान का महत्व
किडनी रोगों की प्रारंभिक पहचान और रोकथाम के लिए जागरूकता अत्यंत महत्वपूर्ण है। नियमित स्वास्थ्य जांच, विशेष रूप से यदि आप जोखिम कारकों के अंतर्गत आते हैं, आवश्यक है। स्वस्थ जीवनशैली, संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, और धूम्रपान तथा अत्यधिक शराब के सेवन से बचना किडनी स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक हैं।
बिहार में किडनी स्वास्थ्य के लिए आवश्यक कदम
बिहार में किडनी स्वास्थ्य में सुधार के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
1. जागरूकता कार्यक्रम: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में किडनी स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए नियमित कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
2. नियमित स्वास्थ्य जांच: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में नियमित किडनी जांच की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
3. चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार: राज्य में डायलिसिस केंद्रों और नेफ्रोलॉजी विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।
4. स्वस्थ जीवनशैली को प्रोत्साहन: स्कूलों और समुदायों में स्वस्थ आहार और व्यायाम के महत्व पर शिक्षा दी जानी चाहिए।
विश्व किडनी दिवस 2025 का यह संदेश है कि हम सभी अपनी किडनी के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। प्रारंभिक पहचान और उचित देखभाल से किडनी रोगों को रोका जा सकता है। आइए, हम सब मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाएं और एक स्वस्थ समाज का निर्माण करें।
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