*साहित्य को  परिवर्तनकामी विचारधारा से जुड़ना चाहिए*

*साहित्य को परिवर्तनकामी विचारधारा से जुड़ना चाहिए*


( खगेन्द्र ठाकुर की स्मृति में ' साहित्य और विचारधारा' विषय पर विमर्श का आयोजन )


पटना, 13 जनवरी । प्रगतिशील लेखक संघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव, प्रसिद्ध वामपंथी लेखक व जनबुद्धिजी खगेन्द्र ठाकुर की पुण्यतिथि के अवसर पर प्रगतिधील लेखक संघ, पटना द्वारा मैत्री शांति भवन, पटना में ‛ साहित्य और विचारधारा’ विषय पर विमर्श का आयोजन किया गया। 

 इस मौके पर शहर के बुद्धिजीवी, साहित्यकार, रंगकर्मी , सामाजिक कार्यकर्ता शामिल था। कार्यक्रम का संचालन रंगकर्मी जयप्रकाश ने जबकि अध्यक्षता कवि शहंशाह आलम ने किया ।


 सबसे पहले  कवि बालमुकुंद और  चंद्रबिंद सिंह द्वारा खगेंद्र ठाकुर के संग्रह से उनकी कविताओं का पाठ किया गया। कवि अरविंद श्रीवास्तव ने खगेन्द्र ठाकुर का  जीवन एवं उनके परिवेश पर एक पत्र प्रस्तुत किया।


  मुख्य वक्ता बांग्ला के प्रसिद्ध कवि, लेखक एवं 'बिहार हेराल्ड' के संपादक विद्युत पाल ने मार्कवेज, लेनिन, मार्क्स आदि का उदाहरण देते हुए कहा "  यथार्थ की परतों को उद्घाटित करने के लिए हर लेखक को जीवन के मर्म और साहित्य की शैली को विकसित करने का प्रयास करना होता है। साहित्य की अपनी शर्ते हैं। साहित्य की शर्तों पर चलकर ही हम विचारधारा की रक्षा कर सकते हैं। साहित्यकार के लिए यह जरूरी है कि वे सड़कों पर चलने वाले संघर्षों में शामिल हों।  लेनिन ने  सबसे प्रसिद्ध लेखक  तौलस्ताय को रूसी क्रांति का दर्पण बताया था जबकि उनके साहित्य में तो कहीं क्रांति का जिक्र  नहीं है। " 


बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक श्यामकिशोर ने कहा " वह साहित्य ज्यादा टिकाऊ होता है जिसमें जनता के दुखदर्द से जुड़ने की आस्था होती है। जो विचार उत्पीड़क सत्ता की आलोचना करता है, वह प्रगतिवादी होता है और जो विचार उत्पीड़ित मनुष्य का साथ छोड़ कर उत्पीड़कों के साथ लग जाता है, वह प्रतिगामी होता है। प्रगतिवादी विचारधारा ही किसी साहित्य और समाज को आगे ले जा सकता है।"


ए.एन. कॉलेज में उर्दू के प्राध्यापक मणिभूषण कुमार  कहा " मीर जैसे बड़े लेखक की आत्मकेंद्रित प्रतीत होती रचनाएं भी बाहर की दुनिया से संवाद करती हैं। कलाकारों की कला केंद्रित रचनाएं भी अंततः किसी विचारधारा से जुड़ जाती हैं। लेकिन जरूरत है कि कला परिवर्तनकामी विचारधारा से जुड़े, प्रतिगामी विचारधारा से नहीं।" 


बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के उप महासचिव अनीश अंकुर ने कहा " विगत कुछ वर्षों में साहित्य में विचारधारा के विषय पर काफी नाक-भौंह सिकोड़ने की प्रवृति बढ़ी है। चित्र कला में भी अमूर्तन की प्रवृति बढ़ी है। साहित्य विचारधारात्मक प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकता। विचारधारा के नकार के नाम पर प्रगतिवादी विचारधारा को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।"


चर्चित कवि अरुण शाद्वल ने कहा  "साहित्य में जीवन का सत्य का उद्घाटित होता है। साहित्य बगैर विचारधारा के अनुशासित नहीं हो सकता है। साहित्य और विचारधारा साथ-साथ चलते हैं।" 


चर्चित कवि राजकिशोर राजन ने कहा " शब्द साहित्य का डीएनए है। शब्द कहाँ से लिया गया है, यह बात बहुत महत्वपूर्ण होती है। जनता के बीच से लिए गए शब्दों से रचित साहित्य ही जनता का साहित्य होता है।"


पटना प्रलेस के सचिव शहंशाह आलम ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा "  प्रगतिशील लेखक संघ को खगेन्द्र ठाकुर की बिखरी और लगभग विलुप्त हो चुकी रचनाओं को प्रकाशित करने की जिम्मेदारी लेनी है।" 


प्रलेस के चितरंजन कुमार, डॉ अंकित,वरिष्ठ पत्रकार विश्वमोहन चौधरी"सन्त" आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। 

खगेंद्र ठाकुर पर केंद्रित आयोजन में प्रमुख लोग थे अधिवक्ता मदन प्रसाद, अवकाश प्राप्त पीपी ज्ञान चंद्र भारद्वाज,  एटक के राज्य महासचिव अजय कुमार, अध्यक्ष गजनफर नवाब , कुलभूषण गोपाल, मनोज कुमार, प्रभात परिणीत, देवरत्न  प्रसाद , उदय प्रताप सिंह , जावेद, जितेंद्र कुमार, निखिल कुमार झा, कपिलदेव वर्मा, गौतम गुलाल, गजेंद्रकांत शर्मा आदि।

0 Response to " *साहित्य को परिवर्तनकामी विचारधारा से जुड़ना चाहिए*"

एक टिप्पणी भेजें

Ads on article

Advertise in articles 1

advertising articles 2

Advertise under the article