
अवगुंठन नाटक में दिखी स्त्री के संघर्ष और स्वाभिमान की दास्तां
पटना।
अहसास कलाकृति पटना द्वारा संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली के सौजन्य से पटना के कालिदास रंगालाय में रवीन्द्र नाथ टैगोर की कहानी अवगुंठन का सफल मंचन हुआ। नाटक का निर्देशन कुमार मानव ने किया। कहानी का नाट्य रूपांतरण ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ उदघाटनकर्ता अभिमन्यु दास, अवर सचिव, निगरानी विभाग, बिहार सरकार, मुख्य अतिथि डॉo एस. के. मिश्रा, प्राचार्य एस. एस. कॉलेज, जहानाबाद तथा, विशिष्ट अतिथि, इंजीनियर अजय यादव समाजसेवी ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
अध्यक्षता कला सांस्कृतिक पुरुष व वरिष्ठ पत्रकार विश्वमोहन चौधरी"सन्त"ने किया।
हर युग में स्त्रियों के संघर्ष की कहानी रही है। समाज में पुरुषवादी सोच हमेशा से महिलाओं को कष्ट देती रही है। धर्म, मजहब, प्रथा एवं सामाजिक कुरीतियों में फंसी महिलाओं के संघर्ष की लंबी दास्तान रही है। अवगुंठन भी अपने आप में ऐसे ही दर्द को समेटे हुए है। जब एक महिला के स्वाभिमान को चोट पहुंचती है तब वह सबकुछ छोड़कर भी चले जाने से गुरेज नहीं करती है चाहे उसका घर परिवार हो या उसका जीवन साथी। नारी संघर्ष एवं स्वाभिमान को दर्शाते नाटक अवगुंठन के केन्द्र में नायिका महामाया है। महामाया के माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो जाने के बाद उसका लालन पालन उसके बड़े भाई भवानीचरण के द्वारा होता है। भवानी चरण अपनी बहन की शादी कुलीन ब्राह्मण से करना चाहता है लेकिन पैसों की कमी और कुलीन ब्राह्मण से ही शादी करने की जिद्द में महामाया की उम्र दिनो दिन बढ़ते ही जा रही थी। उसके पड़ोस में राजीव लोचन अपनी बुआ के साथ रहता है। महामाया और राजीव बचपन के साथी हैं और एक दूसरे को मन ही मन चाहते हैं। बुआ दोनो के बीच के प्रेम को महसूस करती है और ये जानते हुए भी कि भवानीचरण दोनो की शादी के लिए सहमत नहीं होगा, भवानी से राजीव के लिए महामाया का हाथ मांगती है लेकिन भवानी उसे बेइज्जत कर भगा देता है। बुआ इस सदमे को सहन नहीं कर पाती है और उसकी मृत्यु हो जाती है। एक दिन राजीव और महामाया सरिता के तट पर पुराने खंडहर में शिवालय के पास मिलते हैं। इस बात की जानकारी भवानीचरण को हो जाती है और वह गुस्से में महामाया को श्मशान में ले जाकर एक कुलीन ब्राहम्ण वृद्ध गंगा यात्री से विवाह कर देता है। शादी होते ही वृद्ध की मृत्यु हो जाती है और तत्पश्चात् महामाया को सती प्रथा के अनुसार चिता पर बैठा दिया जाता है। लेकिन अकस्मात एक बवंडर उठता है और जोरों की आंधी बारिस होने लगती है। सभी जलती चिता को छोड़कर वहां से भाग जाते हैं। राजीव महामाया के गम में आत्महत्या की कोशिश करता है तभी अकस्मात महामाया का प्रवेश होता है जो अपने चेहरे पर अवगुंठन(घुंघट) का पर्दा डाले रहती है। वह बताती है कि चिता में आग लगते ही तेज आंधी बारिस के कारण जीवित बच गई लेकिन मैं अब पहले की तरह नहीं रही इसलिए मेरे चेहरे पर ये अवगुंठन है। मैं हमेशा के लिए तुम्हारे साथ रहने आई हूँ लेकिन एक शर्त है कि तुम कभी मेरे अवगुंठन को नहीं हटाओगे और ना ही मुझे हटाने के लिए विवश करोगे। अगर तुमने शर्त तोड़ने की कोशिश की तो महामाया को हमेशा के लिए खो दोगे। राजीव शर्त मान लेता है, दोनो वहां से दूर जाकर एक साथ रहते हैं लेकिन अवगुंठन का व्यवधान राजीव को सहन नहीं हो पाता है। उसके अंदर अवगुंठन को हटाकर महामाया की खूबसूरती को देखने की तीव्र इच्छा होती है। एक दिन राजीव सोयी हुई महामाया के चेहरे से अवगुंठन को हटा देता है और उसके जले हुए चेहरे को देखकर चौंक पड़ता है। महामाया आश्चर्यचकित होकर जाग उठती है और उसी क्षण राजीव को हमेशा के लिए छोड़कर चली जाती है।
महामाया की भूमिका में रंगोली पाण्डेय ने अपने अभिनय कौशल का परिचय दिया। राजीव की भूमिका में विजय कुमार चौधरी ने चार चांद लगाया। भवानी चरण के पात्र में सरबिन्द कुमार ने दमदार अभिनय किया। अन्य कलाकारों में अर्चना कुमारी भुनेश्वर कुमार, पृथ्वीराज पासवान,बलराम कुमार, मंतोष कुमार, राजकिशोर पासवान ने भी अपनी भूमिकाएं बखूबी निभाया। मंच संचालन विश्वमोहन चौधरी "संत", प्रकाश परिकल्पना सैयद अता करीम, संगीत संयोजन, मानसी कुमारी, रूप सज्जा माया कुमारी, वस्त्र विन्यास अनिता शर्मा एवं मंच परिकल्पना संतोष कुमार का था।
इस अवसर पर अन्य सहयोगी मयंक कुमार, हिमांशु कुमार, अमित कुमार, राम बाबू राम ने भी नाट्य प्रस्तुति को सुंदर बनाने में अपना योगदान दिया।
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