हास्य व्यंग्य नाटक "त हम कुंआरे रहें?" का मंचन

हास्य व्यंग्य नाटक "त हम कुंआरे रहें?" का मंचन


डिसेबल स्पोर्ट्स एण्ड वेलफेयर एकेडमी द्वारा संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली के सौजन्य से पटना के कालिदास रंगालय में बिहार के मशहूर नाटककार सतीश कुमार मिश्र लिखित एवं कुमार मानव निर्देशित बहुचर्चित हास्य व्यंग्य नाटक ‘‘तऽ हम कुआँरे रहें? का मंचन किया गया जिसे देख दर्शक हंसी से लोटपोट हुए। यह नाटक दहेज प्रथा पर करारा प्रहार करता है, साथ ही एक दिव्यांग के दर्द को भी दिखाता है।  

       कार्यक्रम की शुरुआत उदघाटनकर्ता प्रसिद्ध चिकित्सक एवं समाजसेवी डॉo दिवाकर तेजस्वी, मुख्य अतिथि बिहार आर्ट थियेटर के महासचिव कुमार अभिषेक रंजन, विशिष्ट अतिथि अरुण कुमार सिन्हा, उपाध्यक्ष, बिहार आर्ट थियेटर, कला सांस्कृतिक पुरुष एवं वरिष्ठ पत्रकार विश्वमोहन चौधरी "संत", समाजसेवी हिमांशु कुमार तथा कार्यक्रम निर्देशक सुमन कुमार ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया।

नाटक का नायक ज्ञानगुणसागर मानसिक और शारीरिक रूप से दिब्यांग, मंदबुद्धी युवक है। उसके बड़े भाई महावीर विक्रम बजरंगी प्रसाद की शादी हो चुकी है। दिब्यांगता एवं पिता तीनलोक उजागर प्रसाद के द्वारा अनठेकानी तिलक दहेज की मांग की वजह से ज्ञारगुणसागर की शादी तय नहीं हो पाती है। जिससे वह पिता और भाई के प्रति खिन्न रहता है। तीनो बाप, बेटे और भाई के बीच अक्सर इस बात को लेकर बहस हो जाती है। 

पिता और भाई के कहने पर एक दिन ज्ञारगुणसागर अपनी भाभी की रोकसद्दी कराने के लिए अपने भाई के ससुराल जाता है। उसे घर से नसीहत मिली थी कि वहां ज्यादा कुछ मत बोलना, केवल हां और ना से काम चलाना। रास्ते उसकी मुलाकात एक ग्रामीण कोहड़ा प्रसाद से होती है जो घर का पता ज्ञानगुणसागर से पूछता है और उसके भाई के ससुर पचफोरन प्रसाद को जाकर खबर करता है। पचफोरन प्रसाद आते हैं और दोनो में बातचीत होती है। जिसमें ज्ञानगुणसागर हर बात में जी हां और जी ना बोलता है इस क्रम में ऐसी घटना होती है कि ज्ञानगुणसागर के हां और ना के चक्कर में सब गड़बड़ हो जाता है और पचफोरन प्रसाद को लगता है कि उसके दामाद की मौत हो गई है। वह पूरे परिवार सहित रोने धोने लगता है और ज्ञानगुणसागर को बिना रोकसद्दी के घर लौटना पड़ता है। 

एक दिन ठगानन्द नामक एक ठग , तीनलोक उजागर प्रसाद के घर, ज्ञानगुणसागर की शादी का रिश्ता लेकर आता है। और ज्ञानगुणसागर उसके बहकावे में आकर अपने पिता तीनलोक उजागर प्रसाद से लड़ झगड़ कर एक ठग साधू धूर्तानन्द के पास घर से माल खजाना और धन दौलत लेकर जाता है। जहाँ दुल्हन का भेष धरे ठगानन्द से उसकी शादी होती है और धन दौलत शुद्ध कराने के नाम पर धूर्तानन्द, ज्ञारगुणसागर को आँखे मूंदे रखने को कहता है और ठगानन्द एवं धूर्तानन्द दिब्यांग ज्ञानगुणसागर का सारा धन दौलत लेकर भाग जाता है। धूर्तानन्द की बातों में आकर अपना सारा धन दौलत गंवा बैठा ज्ञानगुणसागर प्रसाद शादी होनो के बाद भी कुआँरा रह जाता है और यह कहकर रोने लगता है कि शादी नहीं हुआ था तऽ हम कुआँरे थे और अब शादी हो गया फिर भी हम हम कुआँरे रहें . . . . तऽ हम कुआँरे रहें ?

     नाटक में भाग लेने वाले कलाकार थें मंतोष कुमार, भुनेश्वर कुमार, विजय कुमार चौधरी, सरबिन्द कुमार, राजकिशोर पासवान, बलराम कुमार एवं पृथ्वीराज पासवान। 

     प्रकाश परिकल्पना हिमांशु कुमार, रुप सज्जा माया कुमारी, वस्त्र विन्यास सुनीता कुमारी, मंच सज्जा बलराम कुमार ने किया। अन्य सहयोगियों में धीरज कुमार, कृष्णा तूफानी, रामचंद्र राम, राधा कुमारी इत्यादि ने भी नाटक को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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