विकास के नाम पर साज़िश: IMF, पाकिस्तान और एशिया को पिछड़ा बनाए रखने की पश्चिमी रणनीति
पिछले कई दशकों से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को आर्थिक संकट में फंसे देशों के लिए एक उद्धारक संस्था के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है। परंतु इसके मानवीय चेहरे के पीछे एक गहरी और परेशान करने वाली सच्चाई छिपी है। पाकिस्तान के संदर्भ में यह तथ्य और भी स्पष्ट हो जाता है, जिसे 1958 से अब तक लगभग 28 बार IMF द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की गई है।
अब सवाल उठता है: आखिर अमेरिका और यूरोप क्यों लगातार पाकिस्तान की असफल अर्थव्यवस्था को बचाने में लगे हुए हैं, जबकि स्थायी सुधार का कोई संकेत नहीं दिखता? इसका उत्तर किसी आर्थिक भलाई में नहीं, बल्कि वैश्विक सत्ता समीकरण में छिपा हुआ प्रतीत होता है।
आईएमएफ बेलआउट: अस्थिरता को बढ़ावा देना?
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कर संग्रह की बेहद कमजोर व्यवस्था, सैन्य खर्चों की अधिकता, व्यापक भ्रष्टाचार और आतंकवाद से जुड़े नेटवर्क खुलेआम फल-फूल रहे हैं। इसके बावजूद, IMF बार-बार वित्तीय मदद प्रदान कर इस अस्थिर व्यवस्था को जिंदा रखता आया है।
ये फंड, जो आर्थिक सुधारों के लिए दिए जाने चाहिए थे, पाकिस्तान की सेना और सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने में खर्च किए गए, जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद को संरक्षण दिया।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि पश्चिमी नीति निर्माता पाकिस्तान की भीतरी समस्याओं से अनजान नहीं हैं। यदि उनका उद्देश्य वास्तव में सुधार होता, तो IMF द्वारा दी जाने वाली सहायता सख्त शर्तों के साथ जोड़ी जाती। परंतु बिना ठोस सुधारों के बार-बार दी जाने वाली सहायता यह संकेत देती है कि पाकिस्तान को एक “नियंत्रित संकट” की स्थिति में बनाए रखना पश्चिमी देशों की रणनीति का हिस्सा है।
एशिया के विकास को रोककर वर्चस्व बनाए रखने की रणनीति
पाकिस्तान से परे जाकर अगर व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो तस्वीर और स्पष्ट हो जाती है। दक्षिण एशिया में अस्थिरता बनाए रखना पश्चिम के लिए एक रणनीतिक लाभ है।
अगर पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देश आपसी व्यापार को बढ़ाकर, स्थायी विकास की राह पर बढ़ते, तो एक नया आर्थिक और राजनीतिक शक्ति केंद्र उभर सकता था, जो अमेरिका और यूरोप की वैश्विक स्थिति को चुनौती दे सकता था।
लेकिन लगातार तनाव और अस्थिरता सुनिश्चित करके, पश्चिम न केवल अपनी सैन्य और आर्थिक बिक्री को बढ़ावा देता है, बल्कि डॉलर की वैश्विक सर्वोच्चता भी बनाए रखता है। IMF, जिसमें अमेरिका और यूरोप का मतदान अधिकार अत्यधिक प्रभावी है, इस पूरी रणनीति का एक सशक्त उपकरण बन चुका है — जो सरकारों को गिरने से बचाता तो है, पर उन्हें आत्मनिर्भर बनने नहीं देता।
विरोधी तर्क और उनका उत्तर
IMF समर्थकों का कहना है कि IMF का उद्देश्य केवल वित्तीय स्थिरता बनाए रखना है, राजनीतिक हस्तक्षेप करना नहीं। वे यह भी तर्क देते हैं कि पाकिस्तान की समस्याएं आंतरिक हैं — भ्रष्टाचार और कुशासन के कारण पैदा हुई हैं।
यह तर्क आंशिक रूप से सही है, लेकिन बिना कड़े सुधारों के बार-बार वित्तीय मदद देना भी उतनी ही बड़ी गलती है। इससे “नैतिक संकट” (Moral Hazard) पैदा होता है — यानी सरकारें जानती हैं कि चाहे वे कितनी भी गलत नीतियां अपनाएं, उन्हें फिर भी मदद मिलती रहेगी।
यदि IMF वास्तव में सुधारों को लेकर गंभीर होता, तो वह पाकिस्तान से वही सख्त शर्तें लागू करवाता जो उसने अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों पर थोपीं।
निष्कर्ष: संयोग नहीं, सुनियोजित व्यवस्था
IMF के माध्यम से पाकिस्तान को बार-बार दिया गया समर्थन कोई मासूम गलती या आशावाद का परिणाम नहीं है। यह एक सुनियोजित वैश्विक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी और यूरोपीय वर्चस्व को बनाए रखना है।
जब तक वित्तीय संस्थाओं का उपयोग विकासशील देशों को आत्मनिर्भर बनाने के बजाय उन्हें नियंत्रित संकट की स्थिति में बनाए रखने के लिए किया जाता रहेगा, तब तक एक संतुलित, बहुध्रुवीय दुनिया का सपना अधूरा ही रहेगा।
लेखक परिचय:
सत्य प्रकाश, एक FRM और MBA स्नातक हैं, जिनके पास बैंकिंग क्षेत्र में दस वर्षों का व्यापक अनुभव है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गहरी रुचि के साथ, वे यह समझने के प्रयास में लिखते हैं कि आज की जटिल वैश्विक व्यवस्था में वित्त, राजनीति और सत्ता कैसे एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
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