चौपालों से उठी नई आवाज़: 'महिला संवाद' बना सामाजिक परिवर्तन का माध्यम
बिहार की ग्रामीण चौपालों में आज वह आवाज़ गूंज रही है, जो कभी घर की चारदीवारी तक सीमित थी। अब वही महिलाएं आत्मविश्वास से मंचों पर बोल रही हैं और सामाजिक मुद्दों पर मुखरता से अपने विचार रख रही हैं। यह बदलाव यूं ही नहीं आया, इसके पीछे है 'महिला संवाद' जैसी दूरदर्शी और परिवर्तनकारी पहल, जिसने महिलाओं को केवल बोलने का अधिकार ही नहीं दिया, बल्कि उन्हें नेतृत्व की भूमिका में सशक्त रूप से स्थापित किया है।
'महिला संवाद' अब एक मात्र सरकारी कार्यक्रम नहीं रहा, बल्कि यह एक जनांदोलन का रूप ले चुका है, जो ग्रामीण समाज की सोच को जड़ से बदलने का कार्य कर रहा है। पटना ज़िले के 22 प्रखंडों में सक्रिय इस अभियान के अंतर्गत अब तक 1,506 ग्राम संगठनों से लगभग 2 लाख 92 हजार महिलाएं जुड़ चुकी हैं। यह आंकड़ा महज संख्या नहीं, बल्कि महिलाओं में आई सामाजिक जागरूकता और आत्मबल का प्रतीक है।
22 मई को जिले भर में 'महिला संवाद' के तहत संवाद सत्रों का आयोजन किया गया। कुल 46 स्थानों पर आयोजित इन सत्रों में 9,150 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया। पंचायत प्रतिनिधियों, स्वयं सहायता समूहों की सदस्याओं, किशोरी क्लबों की प्रतिभागियों और स्थानीय छात्राओं ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया। महिलाओं ने अपने जीवन के अनुभव साझा किए, सरकारी योजनाओं पर विचार रखे और सकारात्मक बदलाव के लिए उपयोगी सुझाव प्रस्तुत किए।
इस संवाद को और व्यापक बनाने के लिए अभियान में 22 मोबाइल संवाद रथों की विशेष पहल की गई है। इन तकनीक-सम्पन्न वैनों में LED स्क्रीन और ऑडियो-विजुअल कहानियों के माध्यम से महिलाओं को उनके अधिकारों, सरकारी योजनाओं और सामाजिक विषयों की जानकारी सरल और प्रभावी रूप में दी जा रही है। ये रथ अब केवल सूचना का माध्यम नहीं, बल्कि परिवर्तन के संवाहक बन गए हैं, जो गाँव-गाँव जाकर चेतना का संचार कर रहे हैं।
फुलवारी प्रखंड के ढिबरा पंचायत में आज बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री ने जीविका दीदियों के साथ संवाद कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए राज्य सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया और जीविका के माध्यम से हो रहे सामाजिक एवं आर्थिक बदलावों की सराहना की।मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य सरकार महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाओं को प्रभावी ढंग से संचालित कर रही है। इसी क्रम में उन्होंने 'जीविका निधि' की घोषणा की, जिसमें ₹1,000 करोड़ का निवेश किया जाएगा। यह विशेष बैंक जीविका दीदियों को 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराएगा, जिससे वे अपने छोटे व्यवसायों का विस्तार कर सकेंगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था में सशक्त भागीदारी निभा सकेंगी।उन्होंने बताया कि राज्य सरकार महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य को लेकर पूरी गंभीरता से कार्य कर रही है। मुख्यमंत्री मेधावृत्ति योजना के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की छात्राओं को उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति प्रदान की जा रही है। मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के अंतर्गत महिलाओं को स्वरोजगार के लिए वित्तीय सहायता दी जा रही है। वहीं सबला कार्यक्रम किशोरियों के स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा पर विशेष ध्यान केंद्रित करता है।मंत्री ने 'दीदी की रसोई' योजना की सफलता का भी उल्लेख किया, जिसके तहत अस्पतालों और सरकारी संस्थानों में महिलाओं द्वारा संचालित कैंटीन प्रभावशाली ढंग से कार्य कर रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार मिड-डे मील और आंगनबाड़ी सेवाओं में जीविका दीदियों की सहभागिता को बढ़ावा दे रही है। प्रखंड कार्यालयों की सफाई व्यवस्था भी जीविका समूहों को सौंपे जाने की योजना पर कार्य प्रगति पर है। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक प्रखंड में ‘दीदी अधिकार केंद्र’ की स्थापना की जाएगी, जो एकीकृत सहायता केंद्र के रूप में महिलाओं को उनके अधिकारों और सरकारी सेवाओं से जुड़ी जानकारी और सहयोग प्रदान करेगा। राज्य सरकार का लक्ष्य एक हजार सामूहिक सिलाई केंद्रों की स्थापना करना है, जहाँ महिलाएं एकत्र होकर उत्पादन कार्य कर सकेंगी, जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी। बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के छात्रों को भारत में कहीं भी पढ़ाई के लिए ₹4 लाख तक का शैक्षणिक ऋण दिया जा रहा है।
स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप महिला प्रतिनिधियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। यही आरक्षण प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षिकाओं की नियुक्ति में भी दिया जा रहा है, जिससे शिक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका और मजबूत हुई है।
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