मस्जिदों की सेवा: इमाम की मर्यादा और मुतवली की ज़िम्मेदारियाँ क़ुरान और हदीस की रोशनी में

मस्जिदों की सेवा: इमाम की मर्यादा और मुतवली की ज़िम्मेदारियाँ क़ुरान और हदीस की रोशनी में

*मस्जिदों का महत्व और इमाम का उच्च स्थान:*

इस्लाम में मस्जिद को अल्लाह का घर कहा गया है, जहाँ केवल नमाज अदा नहीं की जाती बल्कि यहाँ से उम्मत की आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक शिक्षा की शुरुआत होती है। मस्जिद वह पवित्र स्थान है जहाँ मुसलमान इबादत के साथ-साथ सामुदायिक मामलों की देखरेख और मार्गदर्शन के लिए एकत्रित होते हैं।  

क़ुरान में अल्लाह तआला फरमाता है:  
*"जो लोग अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करते हैं, वे अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान रखते हैं" (सूरत अत-तौबा: 18)*

इस आयत में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि मस्जिदों को आबाद करने वाले अल्लाह के पसंदीदा बंदे होते हैं और उन्हें ही आखिरत की कामयाबी मिलेगी।  

*इमाम की जिम्मेदारियाँ:*

इमाम वह व्यक्ति होता है जिस पर मस्जिद की आध्यात्मिक नेतृत्व की जिम्मेदारी होती है। इमाम का कार्य केवल नमाज की इमामत करना नहीं है, बल्कि इस्लाम की शिक्षाओं का प्रसार करना, मुसलमानों को सही रास्ते पर चलने की नसीहत देना, और समाजिक व नैतिक समस्याओं के समाधान के लिए मार्गदर्शन प्रदान करना भी उसकी जिम्मेदारियों में शामिल है।  

हदीस में नबी करीम ﷺ ने फरमाया:  
*"इमाम जिम्मेदार है और मुअज़्ज़िन अमानतदार है" (सुनन इब्न माजाह)*

इसका मतलब यह है कि इमाम लोगों को सही मार्ग दिखाने के लिए जिम्मेदार है और उसकी जीवन का हर पहलू इस बात का प्रतिबिंब होना चाहिए कि वह लोगों को सही इस्लामी रास्ते पर कैसे ले जा रहा है।  

*उदाहरण:* इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह का किरदार हमारे लिए एक बेहतरीन उदाहरण है। वे न केवल एक महान फकीह और आलिम थे, बल्कि इमाम भी थे। उनका नैतिकता, न्याय और ज्ञान का प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी, और उन्होंने अपनी इमामत के दौरान हमेशा न्याय और सच्चाई का साथ दिया।  

*मुतवली की जिम्मेदारियाँ:*

मुतवली मस्जिद का प्रशासनिक संरक्षक होता है, और उसकी जिम्मेदारी है कि वह मस्जिद की आवश्यकताओं का ख्याल रखे, उसकी मरम्मत, सफाई, वित्तीय मामलों और अन्य प्रशासनिक कामों को सही तरीके से निभाए।  

क़ुरान में अल्लाह तआला फरमाता है:  
*"और जो कोई मस्जिदों की तामीर में खर्च करेगा, अल्लाह तआला उसके लिए जन्नत में एक घर बनाएगा" (सूरत अत-तौबा: 18)*  

इस आयत से हमें मुतवली की अहमियत का पता चलता है कि मस्जिद की तामीर और देखभाल करने वालों के लिए जन्नत की खुशखबरी है। मुतवली का काम केवल मस्जिद के वित्तीय मामलों की देखरेख करना नहीं बल्कि इमाम के साथ मिलकर मस्जिद की आध्यात्मिक उन्नति में भी योगदान देना है।  

*उदाहरण:* हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में जब मस्जिद-ए-नबवी की तामीर का मामला आया, तो उन्होंने बतौर ख़लीफ़ा मस्जिद की देखरेख और तामीर में निजी रुचि ली। साथ ही उन्होंने इमाम और मुतवली के संबंधों को और मजबूत किया ताकि मस्जिद की उन्नति और इस्लाम की शिक्षा में कोई रुकावट न आए।  

*इमाम और मुतवली के बीच संबंध:*

क़ुरान और हदीस के अनुसार इमाम और मुतवली दोनों का पद बेहद जिम्मेदारी भरा है, और दोनों को मिलकर मस्जिद के कार्यों को बेहतरीन तरीके से चलाना चाहिए। इमाम की आध्यात्मिक नेतृत्व और मुतवली की प्रशासनिक क्षमता मिलकर मस्जिद की तरक्की का कारण बनती हैं।  

*उदाहरण:* दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद, **मस्जिद-ए-हरम** को लें, जहाँ इमाम और मुतवली की संयुक्त कोशिशों से लाखों मुसलमानों को हर साल हज और उमरा की अदायगी में सहूलियत मिलती है। यह वह उच्च उदाहरण है जिससे जाहिर होता है कि दोनों पदों का आपसी सहयोग कैसे उम्मत के लिए लाभदायक साबित होता है।  

*रेयाज़ आलम, डिप्टी मुतवली मस्जिद हसन,* ने इस मौके पर कहा:  
*"इमाम और मुतवली के बीच मजबूत संवाद और सहयोग बेहद जरूरी है ताकि मस्जिद की तरक्की, इस्लामी शिक्षाओं का प्रसार और मुसलमानों की भलाई सुनिश्चित की जा सके। हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी मस्जिद को एक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में बढ़ावा दें और अल्लाह की खुशी हासिल करें।"*  

उन्होंने आगे कहा:  
*"हमें सभी मुसलमानों को चाहिए कि वे मस्जिद के प्रशासनिक और आध्यात्मिक मामलों में रुचि लें और इसके संचालन में अपनी भूमिका को समझें। मस्जिदों की उन्नति केवल मुतवली और इमाम की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पूरी उम्मत की जिम्मेदारी है। हम दुआ करते हैं कि अल्लाह हमें इस महान जिम्मेदारी को निभाने की तौफीक दे और हमारी मस्जिद हसन को दुनिया और आख़िरत के लिए खैर और बरकत का केंद्र बनाए।"*  

यह प्रेस विज्ञप्ति समाज को मस्जिद की सेवा और उसके प्रशासनिक और आध्यात्मिक पहलुओं से अवगत कराने के लिए जारी की जा रही है, और हम सभी मुसलमानों से अपील करते हैं कि वे मस्जिद के संचालन में अपना योगदान दें और इस्लाम की सेवा में आगे आएं।  

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