माननीय मंत्री का जन-संदेश (एक पेड़ सौ पुत्र समान)
प्रकृति से जुड़कर मानव सुख शांति समृद्धि को प्राप्त कर सकता है। वही प्रकृति से छेड़छाड़, विकृति से जुड़ने पर विनाश की ओर हमें ले जाता है। आधुनिकता और भोगवादी विकास के कारण आज समूची दुनिया जलवायु परिवर्तन के परिणाम को भुगत रही है। हमने जैसे ही सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामया को भूलाया वैसे ही हमने अपने सुख चैन को खोया। हमारे संस्कार और हमारी संस्कृति रही है। वसुधैव कुटुंबकम को हम प्राचीन काल से ही अपनी इस संस्कृति का निर्वहन करते आ रहे हैं। धरती पर रहने वाले सभी जीव हमारे कुटुंब है। ऐसी हमारी धारणा सदा रही है। जैसे ही हम उक्त दोनों सूत्रों को भूलकर सांसारिक सुख के लिए भोगवादी विकास की और दौड़ना शुरू किया सारे सुखचैन को प्रकृति ने छीन लिया। जैसा बोया बीज वैसा फल आज मिल रहा है। प्रकृति से छेड़छाड़, जंगलों का विनाश धराधर पेड़ों की कटाई, वनों का नाश ने हमें बना दिया निर्दया पेड़ की महत्ता हमारे पुरखे समझते थे। इसीलिए पेड़ की पूजा किया करते थे। पेड़ों को देवता का दर्जा प्राप्त था। आज भी हमारे धर्म ग्रंथों में है। दुनियां का कोई ग्रंथ चिकित्सा, पर्यावरण, वन और प्रकृति के महत्वों से भरा पड़ा नहीं मिलेगा। एक पेड़ अपने पूरे जीवन काल में हमें जितना कुछ दे जाता है, उसकी कृतज्ञता हम चाह कर भी पूरा नहीं कर सकते। दक्षिण अमेरिका के अमेजॉन का जंगल अकेले 20% ऑक्सीजन समूचे संसार को देता है। जंगलों में लगने वाले आग से जैव विविधता को भयंकर नुकसान पहुंचता है। जंगलों में लगने वाले आग को रोकने का स्थाई निदान विश्व के पर्यावरण विद् और वैज्ञानिकों को खोजने की आवश्यकता है। साथ-साथ हम सब की भी जिम्मेवारी है कि जंगलों में जाएं तो सावधानी बरतें। दिया सलाई, आग अनावश्यक रूप से जलाकर ना छोड़े। बीड़ी, सिगरेट का उपयोग जंगलों में ना करें।नीम, पीपल, बरगद, पाखड़, जामुन, गुलहर, महुआ आदि पेड़ जीवन दायिनी है। एक पेड़ से हमें क्या-क्या मिलता है? यह जानकर हमें सोचने पर विवश होना पड़ेगा, हमने क्यों अंधाधुन पेड़ की कटाई की। सामान्य मानव पूरे जीवन काल में 8 करोड रुपए से अधिक का सिर्फ ऑक्सीजन लेता है। एक स्वस्थ व्यक्ति प्रत्येक दिन तीन सिलेंडर ऑक्सीजन लेता है। एक पेड़ साल में 20 किलोग्राम धूल सोखता है। गर्मी में पेड़ के नीचे कम से कम चार डिग्री सेंटीग्रेड तापमान कम रहता है। एक पेड़ एक वर्ष में 20 टन कार्बन डाइऑक्साइड को सोखता है। एक पेड़ एक वर्ष में 700 किलोग्राम ऑक्सीजन देता है। 80 किलोग्राम बोरोन, लिथियम, लेड और जहरीले धातुओं के मिश्रण को सोखता है। एक लाख वर्ग मीटर दूषित हवा को पेड़ शुद्ध करता है। घर के करीब एक पेड़ ऑक्सीटीक बॉल की तरह काम करता है यानी ध्वनि प्रदूषण को कम करता है। घर के पास अगर 10 पेड़ हो तो पेड़ के पास रहने वालों की आयु 7 वर्ष बढ़ जाती है। पेड़ से छाया, जानवरों का चारा, मनुष्य का भोजन, फल_फूल, औषधि, गोंद, छाल, लाखो टन झड़े पत्तों के सड़ने से जैविक खाद बनता है। मिट्टी क्षरण को रोकने का काम भी पेड़ करता है। वर्षा करने का कारक बनता है। फलफूल पत्तियों सहित अंत में सूखने पर जलावन एवं लकड़ी भी पेड़ से मिलते हैं। पेड़ नहीं रहेंगे तो मुदाक्षरण नहीं रुकेगा। प्रदूषण बढ़ेंगे। तापमान में वृद्धि होगी सुखार होगा। वर्षा का अभाव होगा। जल संकट होगा। अनियंत्रित वर्षा होगी। भूजल स्तर नीचे गिरेगा। गर्मी बढ़ने से ध्रुवीय बर्फ के पिघलने पर समुद्र का जलस्तर में वृद्धि होने से मानव जीवन संकट में होगा। बीमारियों का प्रकोप होगा। पेड़ की लड़कियों से औजार बनते हैं। लंबे और बड़े-बड़े पेड़ सूरज की किरणों को धरती पर सीधे आने से रोकते हैं। पेड़ सूरज की उपस्थिति में फोटोसिंथेसिस की क्रिया कर वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है और ऑक्सीजन उत्सर्जित करते हैं। इस पृथ्वी का फेफड़ा जंगल है, जिसके नहीं रहने से ऑक्सीजन के बिना मानव जीवित ही नहीं रह सकता है। पेड़ पौधे मानव जीवन ही नहीं बल्कि वन्य प्राणियों के लिए भी आश्रय स्थल, भोजन के स्थल होते हैं। पक्षियों के आश्रय स्थल होते हैं भोजन के स्थल होते हैं। जेलों के संरक्षण करते हैं। पेड़ पौधे हमारे जीवन और पर्यावरण में एक शांत और आरामदायक वातावरण को बनाए रखते हैं। इसीलिए कबीर दास ने कहा वृक्ष कबहु नहीं फल भखे, नदी न संचे नीर। परमार्थ के कारने साधून धरा शरीर।।
ऐसे अनमोल वृक्ष जो पूरे जीवन भर हमें सब कुछ देते ही देते हैं लेते कुछ नहीं है। इनका पूजन, इनको प्रणाम करना मानवता के लिए जरूरी है। इसीलिए किसी ने कहा है एक पेड़ सौ पुत्र समान। मेरा मानना है मंदिरों में बंटे अब यही प्रसाद, एक पौधा और जैविक खाद। मस्जिदों से अब यही अजान दरख्त लगाए हर इंसान।
हर गुरुद्वारे से एक ही वाणी, दे हर बंदा पौधों में पानी। हर चर्च की यही शिक्षा, वृक्ष लगाए यीशु की इच्छा। सांस हो रही नित नित कम, आओ पेड़ लगाएं हम।
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