मेदांता हॉस्पिटल, पटना ने सफल बोन मेरो ट्रांसप्लांट कर चिकित्सा कौशल की एक और मिसाल पेश की

मेदांता हॉस्पिटल, पटना ने सफल बोन मेरो ट्रांसप्लांट कर चिकित्सा कौशल की एक और मिसाल पेश की


पटना, 21 मार्च 2024: जयप्रभा मेदांता सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल, पटना ने सफल बोन मेरो ट्रांसप्लांट कर चिकित्सा कौशल की एक और मिसाल पेश की है। इस उपलब्धि के साथ जयप्रभा मेदांता सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल ने बिहार के लोगों के साथ कैंसर रोगियों के लिए आशा की किरण जगाई है। इसके साथ मेदांता ने एक उदाहरण पेश किया कि अब बिहार के मरीजों को इलाज के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है एवं शीर्ष स्तरीय देखभाल अब पटना में ही उपलब्ध है।

इस उपलब्धि के पीछे डॉ. अमित कुमार है जो एक अनुभवी मेडिकल एवं हेमेटो ऑनकोलॉजिस्ट एवं बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के अनुभवी विशेषज्ञ माने जाते हैं। उनके साथ इस ट्रांस्प्लांट को करने में पीडियाट्रिक ऑनकोलॉजी एवं हेमेटो ऑनकोलॉजी के डॉ. संतोष कुमार, डॉ. अभिनीति, डॉ. शशि, डॉ. अमितेश, डॉ. शुवी, साधना, हिमांशु, राजीव, फिजियोथेरेपी, डायटीशियन और चिकित्सक सहायकों ने सहयोग किया।

बोन मेरो ट्रांसप्लांटेशन (बीएमटी) या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक प्रक्रिया है जिसमें रोग ग्रस्त या क्षतिग्रस्त बोन मेरो के स्थान पर एक स्वस्थ रक्त उत्पादक बोन मेरो को प्रतिस्थापित किया जाता है। इसकी आवश्यकता तब पड़ती है जब आपकी बोन मेरो ठीक तरह से काम करना बंद कर दे और पर्याप्त मात्रा में स्वस्थ रक्त कोशिकाओ का उत्पादन ना करे। इसके बाद, रोगी को रोगग्रस्त मज्जा को खत्म करने के लिए एवं स्वस्थ मज्जा को रास्ता देने के लिए उच्च खुराक कीमोथेरेपी से युक्त प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। एकत्रित स्टेम कोशिकाओं को फिर ट्रांसफ्यूज किया जाता है एवं धीरे-धीरे अस्थि मज्जा में ग्राफ्ट किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद मरीज को कुछ प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएँ भी हो सकती है जिन्हें 3-4 सप्ताह में उपचार के साथ ठीक किया जाता है। 

बोन मेरो ट्रांसप्लांट दो तरह से होता है एक तो जिसे बोन मेरो ट्रांसप्लांट किया जाना है उसी के अपने शरीर से रक्त कणिकाएं लेकर उनका प्रत्यारोपण और दूसरा किसी दूसरे के शरीर से रक्त कणिकाएं लेकर उनका प्रत्यारोपण। पहले प्रकार को ऑटोलोगस ट्रांसप्लांट और दूसरे प्रकार को एलोजेनिक ट्रांसप्लांट कहते हैं। इस प्रक्रिया के लिए एक उत्कृष्ट एवं संपूर्ण सेटअप की आवश्यकता होती है जिसमें अस्थि मज्जाध्स्टेम सेल प्रत्यारोपण इकाई, हेपा फिल्टर और इंफेक्शन रहित वातावरण के साथ विकसित ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन (रक्त बैंक) विभाग, अत्याधुनिक हेमेटोपैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी विभाग, अनुभवी सपोर्ट टीम की भी अहम भूमिका रहती है। 

गत दिनों जयप्रभा मेदांता सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल, पटना में बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के लिए 2 मामले आये थे। पहला रोगी, उच्च जोखिम वाले मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित एक 64 वर्षीय पुरुष था, जिसमें नवंबर 2022 में कैंसर के लक्षण दिखे थे। कीमोथेरेपी के द्वारा सुधार पर बेहतर रोग नियंत्रण के लिए उसका बोन मैरो ट्रांस्प्लांट किया गया और वर्तमान में उनका  स्वास्थ्य लाभ हो रहा है। 

इसी तरह, फरवरी 2023 में मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित एक 63 वर्षीय महिला की बोन मैरो ट्रांस्प्लांट की गई जो उपचार के कठिन चरण से हो कर गुजर रहीं थी और स्तिथि फिर भी खराब हो रही थी। सफल प्रत्यारोपण के बाद, वह ठीक होने की राह पर है। बिहार सरकार के सहयोग से उनका पूरा इलाज निःशुल्क किया गया। 

टाटा मेमोरियल सेंटर, मुंबई और एम्स, नई दिल्ली में प्रशिक्षित डॉ. अमित कुमार का दावा है कि बिहार में अब व्यापक कैंसर उपचार उपलब्ध है, जिसमें बोन मैरो ट्रांस्प्लांट, ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और मायलोमा के लिए सीएआर टी-सेल थेरेपी जैसी जटिल प्रक्रियाएं शामिल हैं। वही टाटा मेमोरियल सेंटर के पीडियाट्रिक ऑनकोलॉजी एवं हेमेटो ऑनकोलॉजी से प्रशिक्षित डॉ. संतोष कुमार ने आशापूर्वक बताया कि वयस्कों एवं बाल कैंसर को भी अत्यंत सटीकता के साथ प्रबंधित करके बोन मेरो ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। मरीजों के लिए बोन मेरो ट्रांसप्लांट के क्षेत्र में जयप्रभा मेदांता सुपर स्पेशिलिटी  हॉस्पिटल, पटना एक विश्वसनीय नाम है। हॉस्पिटल के पास न सिर्फ उच्च योग्यता प्राप्त बोन मेरो ट्रांसप्लांट विशेषज्ञों की टीम है बल्कि संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए बहुत ही कड़े नियम हैं क्योंकि संक्रमण बोन मेरो ट्रांसप्लांट मरीजों के लिए बहुत ही नाजुक मामला होता है।

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