
गंगा-जमुनी सभ्यता का अद्भुत मिसाल है गंडक पर बसा ये शहर, स्वर्णिम रहा है इतिहास - इंजीनीयर मोO इस्तेयाक अहमद
हाजीपुर :-- इंजीनीयर मोO इस्तेयाक अहमद ने कहा कि हाजीपुर भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त के वैशाली जिला का मुख्यालय है। हाजीपुर भारत की संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत एक लोकसभा क्षेत्र भी है। 12 अक्टूबर 1972 को मुजफ्फरपुर से अलग होकर वैशाली के स्वतंत्र जिला बनने के बाद हाजीपुर इसका मुख्यालय बना। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावा आज यह शहर भारतीय रेल का पूर्व-मध्य रेलवे मुख्यालय है।इसकी स्थापना 8 सितम्बर 1996 को हुई थी। राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। आज का हाजीपुर शहर महाजनपद काल में गांव मात्र होने के बावजूद महत्त्वपूर्ण था।गंगा तट पर स्थित बस्ती का पुराना नाम उच्चकला (उकबेलपुर) था। मध्यकाल में बंगाल के गवर्नर हाजी इलियास शाह के 13 सालों के शासनकाल में यह कस्बाई का रुप लेने लगा।ऐसा माना जाता है कि गंडक तट पर विकसित हुए शहर का वर्तमान नाम उसी शासक के नाम पर पड़ा है। गंगा और गंडक नदी के तट पर बसे इस शहर का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व है।हिन्दू पुराणों में गज (हाथी) और ग्राह (मगरमच्छ) की लड़ाई में प्रभु विष्णु के स्वयं यहां आकर गज को बचाने और ग्राह को शापमुक्त करने का वर्णन है।
इंजीनीयर मोO इस्तेयाक अहमद ने कहा कि कौनहारा घाट के पास कार्तिक पूर्णिमा को यहां हर साल मेला लगता है।ईसा पूर्व छठी शताब्दी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्त्वपूर्ण था। नेपाल की तराई से गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जिसंघ द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरूआत की गयी थी।वज्जिकुल में जन्मे भगवान महावीर की जन्म स्थली शहर से 35 किलोमीटर दूर कुंडलपुर (वैशाली) में है। महात्मा बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ था। भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद की पवित्र अस्थियां इस शहर (पुराना नाम- उच्चकला) में जमींदोज है। हर्षवर्धन के शासन के बाद यहां कुछ समय तक स्थानीय क्षत्रपों का शासन रहा तथा आठवीं सदी के बाद यहां बंगाल के पाल वंश के शासकों का शासन शुरु हुआ। तिरहुत पर लगभग 11वीं सदी में चेदि वंश का भी कुछ समय शासन रहा।
इंजीनीयर मोO इस्तेयाक अहमद ने कहा कि तुर्क-अफगान काल में 1211 से 1226 बीच गयासुद्दीन एवाज़ तिरहुत का पहला मुसलमान शासक बना। 1323 में तुग़लक वंश के शासक गयासुद्दीन तुग़लक का राज आया। इसी दौरान बंगाल के एक शासक हाजी इलियास शाह ने 1345 ई से 1358 ई तक यहां शासन किया। चौदहवीं सदी के अंत में तिरहुत समेत पूरे उत्तरी बिहार का नियंत्रण जौनपुर के राजाओं के हाथ में चला गया। जो तब तक जारी रहा जब तक दिल्ली सल्तनत के सिकन्दर लोधी ने जौनपुर के शासकों को हराकर अपना शासन स्थापित नहीं किया। ५ बाबर ने अपने बंगाल अभियान के दौरान गंडक तट पर एक किला होने का जिक्र ‘बाबरनामा’ में किया है। 1572 ई॰ से 1542 ई॰ के दौरान बंगाल विद्रोह को कुचलने के क्रम में अकबर की सेना ने दो बार हाजीपुर किले पर घेरा डाला था। 18 वीं सदी के दौरान अफ़ग़ानों द्वारा शहर पर कब्जा किया गया।
इंजीनीयर मोO इस्तेयाक अहमद ने कहा कि स्वतंत्रता आन्दोलन के समय हाजीपुर के शहीदों की अग्रणी भूमिका रही है। वसाबन सिंह, बेचन शर्मा, अक्षयवट राय, सीताराम सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में महत्त्वपूर्ण हिस्सा लिया। 7 दिसम्बर 1920 तथा 15 और 16 अक्टूबर 1925 को महात्मा गांधी का हाजीपुर आगमन हुआ था। पुनः बिहार में भीषण भूकम्प के बाद 14 मार्च 1934 को बापू का तीसरी बार हाजीपुर आना हुआ। किलोमीटर 575 मीटर लम्बी प्रबलित कंक्रीट से गंगा नदी पर बना महात्मा गांधी सेतु पुल है जो 1982 में बनकर तैयार हुआ और भारत की तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया था।यह देश का दूसरा सबसे बड़ा पुल है। लगभग 121 मीटर लम्बे स्पैन का प्रत्येक पाया बॉक्स-गर्डर किस्म का प्रीटेंशन संरचना है जो देखने में अद्भुत है। 46 पाये वाले इस पुल से गंगा को पार करने पर केले की खेती का विहंगम दृश्य दिखायी देता है। इस पुल से पटना महानगर के विभिन्न घाटों तथा भूचिन्ह (लैंडमार्क) का अवलोकन किया जा सकता है। इस पुल को उत्तर बिहार की लाइफ लाइन भी कहा जाता है। उत्तर बिहार को सड़क मार्ग से राजधानी से जोड़ने वाला एक मात्र पुल आज खुद बहुत ही जर्जर स्थिति में है।
👉 कोनहारा घाट गंगा और गंडक के पवित्र संगम स्थल की महिमा भागवत पुराण में वर्णित है। गज-ग्राह की लडाई में स्वयं श्रीहरि विष्णु ने यहां आकर अपने भक्त गजराज को जीवनदान और शापग्रस्त ग्राह को मुक्ति दी थी। इस संग्राम में कौन हारा? ऐसी चर्चा सुनते सुनाते इस स्थान का नाम ‘कौनहारा (कोनहारा)’ पड़ गया। बनारस के प्रसिद्ध मनिकर्णिका घाट की तरह यहाँ भी श्मशान की अग्नि हमेशा प्रज्ज्वलित रह्ती है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर शरीर की अंत्येष्टि क्रिया मोक्षप्रदायनी है।
👉नेपाली छावनी मंदिर एक नेपाली सेनाधिकारी मातबर सिंह थापा द्वारा 18वीं सदी में पैगोडा शैली में निर्मित शिवमंदिर कौनहारा घाट के समीप है। यह अद्वितीय मंदिर
इंजीनीयर मोO इस्तेयाक अहमद ने कहा कि नेपाली वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। काष्ट फलकों पर बने प्रणय दृश्य का अधिकांश भाग अब नष्टप्राय है या चोरी हो गया है। कला प्रेमियों के अलावे शिव भक्तों के बीच इस मंदिर की बड़ी प्रतिष्ठा है। काष्ठ पर उत्कीर्ण मिथुन के भित्ति चित्र के लिए यह विश्व का इकलौता पुरातात्विक धरोहर है। दुर्भाग्यवश, देखरेख एवं रखरखाव के अभाव में अद्भुत कलाकृतियों को दीमक अपना ग्रास बना रहा है। मंदिर के पूरब में एक मुस्लिम संत हज़रत जलालुद्दीन अब्दुल की मज़ार भी है।
👉 रामचौरा मंदिर नगर के दक्षिणी भाग में स्तूपनुमा अवशेष पर बना रामचौरा मंदिर हिन्दू आस्था का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। ऎसी मान्यता है कि अयोध्या से जनकपुर जाने के क्रम में भगवान श्रीराम ने यहाँ विश्राम किया था। उनके चरण चिन्ह प्रतीक रुप में यहां मौजूद है। पुरातत्वविदों का मानना है कि बुद्धप्रिय आनंद की अस्थि को रखे गये स्तूप के अवशेष स्थल पर ही इस मंदिर का निर्माण किया गया था।
👉 पतालेश्वर स्थान नगर के रक्षक भगवान शिव पतालेश्वर नाम से प्रसिद्ध हैं। पतालेश्वर स्थान नाम से मशहूर स्थानीय हिन्दुओं का सबसे महत्त्वपूर्ण पूजास्थल शहर के दक्षिण में रामचौरा के पास रामभद्र में स्थित है। 1895 में धरती से शिवलिंग मिलने के बाद यहाँ मन्दिर निर्माण हुआ। भीड़ भरे माहौल से दूर बने इस शिव मन्दिर का स्थापत्य साधारण लेकिन आकर्षक है। लगभग 22800 वर्गफ़ीट में बने इस मन्दिर का वर्तमान स्वरूप 1932-34 के बीच अस्तित्व में आया। मन्दिर परिसर में बने विवाह मंडप में सालोंभर विवाह-संस्कार संपन्न कराये जाते हैं, जिसकी आधिकारिक मान्यता भी है।
👉जामिया मस्जिद शेख हाजी इलियास द्वारा निर्मित किले के अवशेष क्षेत्र के भीतर बनी जामी मस्जिद, हाजीपुर में मुगलकाल की महत्त्वपूर्ण इमारत है। शहजादपुर अन्दरकिला में जी॰ ए॰ इंटर स्कूल के पास पत्थर की बनी तीन गुम्बदों वाली यह आकर्षक मस्जिद आकार में 2508 मीटर लम्बी और 10.2मीटर चौड़ी है। मस्जिद के प्रवेश पर लगे प्रस्तर में इसे अकबर काल में मख्सूस शाह एवं सईद शाह द्वारा 1587 ई॰ (1005 हिजरी) में निर्मित बताया गया है। मस्जिद के पास जिलाधिकारी आवास के निकट हाजी इलियास तथा हाजी हरमेन की मज़ार बनी है।
👉मामू-भांजा का मज़ार मुगलशासक औरंगजेब के मामा शाईस्ता खान ने हज़रत मोहीनुद्दीन उर्फ दमारिया साहेब और कमालुद्दीन साहेब की मज़ार हाजीपुर से 5 किलोमीटर पूरब मीनापुर, जढुआ में बनवायी थी। सूफी संतो की यह मजार स्थानीय लोगों में मामू-भगिना या मामा-भांजा की मज़ार के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं बाबा फरीद के शिष्य ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के मज़ार की अनुकृति भी बनी है। सालाना उर्स के मौके पर इलाके के मुसलमानों का यहां भाड़ी जमावड़ा होता है। इसके पास ही मुगल शासक शाह आलम ने लगभग 180 साल पूर्व करबला का निर्माण कराया था, जो मुसलमानों के लिए पवित्र स्थल है।
👉गांधी आश्रम हाजीपुर रेलवे स्टेशन के समीप स्थित गाँधी आश्रम महात्मा गांधी के तीन बार हाजीपुर पधारने के दौरान उनसे जुड़ी स्मृतियों का स्थल है। एक पुस्तकालय के अतिरिक्त गाँधीजी के चरखा प्रेम और खादी जीवन को बढ़ावा देने हेतु खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा संचालित परिसर है। स्थानीय विक्रय केन्द्र पर खादी वस्त्र, मधु, कच्ची घानी सरसों तेल आदि उपलब्ध है। हाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र में खादी और ग्रामोद्योग का केन्द्रीय पूनी संयंत्र भी है, जहाँ खादी वस्त्र तैयार किये जाते हैं।
👉हरिहरक्षेत्र मेला गज-ग्राह घटना की याद में कौनहारा घाट के सामने सोनपुर में हरिहरक्षेत्र मेला लगता है। स्थानीय लोगों में ‘छत्तर मेला’ के नाम से मशहूर है। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र गंडक-स्नान से शुरु होनेवाले मेले का आयोजन पक्ष भर चलता है। सोनपुर मेला की प्रसिद्धि एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रुप में है। हाथी-घोड़े से लेकर रंग-बिरंगे पक्षी तक मेले में खरीदे-बेचे जाते हैं। आनेवाले जाड़े के लिए गर्म कम्बल से लेकर लकड़ी के फर्नीचर तक स्थानीय लोगों की जरुरतों को पूरा करती हैं। तमाशे, लोकनृत्य, लोककलाएँ और प्रदर्शनियाँ देशी-विदेशी पर्यटकों की कौतूहल को शान्त करती हैं। मेले के दौरान पर्यटक या तो हाजीपुर के किसी होटल में रुक सकते हैं या बिहार पर्यटन विकास निगम की सुविधाजनक तम्बू को भाड़े पर लेकर गंडक तट की बालूका राशि पर डेरा डाल सकते हैं।
👉वैशाली महोत्सव प्रतिवर्ष वैशाली महोत्सव का आयोजन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म दिवस पर बैसाख पूर्णिमा को किया जाता है। भगवान महावीर का जन्म वैशाली के वज्जिकुल में बासोकुंड (बसाढ) ग्राम में हुआ था। अप्रैल के मध्य में आयोजित होनेवाले इस राजकीय उत्सव में देशभर के संगीत और कलाप्रेमी हिस्सा लेते हैं। वैशाली में अशोक का स्तम्भ, अभिषेक पुष्करिणी, विश्व शान्ति स्तूप, चौमुखी महादेव मंदिर को भी आयोजन के दौरान देखा जा सकता है।
👉भुइयां स्थान हाजीपुर से 10 किलोमीटर पूर्वोत्तर दिशा में फुलहारा बाजार के पास लंगा-शुभई गाँव में पुराने वटवृक्ष के पास बने बसावन और भुइयां स्थान पर वैशाली तथा आसपास के जिले के किसानों की बड़ी आस्था है। लोग प्रत्येक सोमवार तथा शुक्रवार को यहां दुग्ध अर्पण एवं पूजा के लिए एकत्रित होते हैं। ऐतिहासिक तथ्यों और जनश्रुतिओं से यह अनुमान लगाया जाता है कि बाबा बसावन एवं भुइयां के नाम से पूजित देव पशुपालक क्षत्रिय अथवा दलित थे,। जिन्होंने 17वीं सदी में स्थानीय जमीन्दार के अत्याचार के खिलाफ लोहा लिया। लड़ाई में बसावन की मृत्यु के बावजूद किसान विजयी रहे और उन्होंने उनकी पूजा आरम्भ की। आज भी यहां दूर-दूर से लोग घूमने आते हैं। तो अगर आप भी चाहते हैं इतिहास का गवाह बनना तो एक बार हाजीपुर आना नहीं भूलिएगा। क्योंकि यहां इतिहास के साथ-साथ दर्म भी हर कदम पर मिलेगा।
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