![देश की बात फाउंडेशन का मानना है कि रोज़गार सिर्फ एक व्यक्ति के पेट भरने का मसला ही नहीं है ब्लकि उसके आत्मसम्मान का भी मसला है देश की बात फाउंडेशन का मानना है कि रोज़गार सिर्फ एक व्यक्ति के पेट भरने का मसला ही नहीं है ब्लकि उसके आत्मसम्मान का भी मसला है](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIrR-uZ8I2fPN3EJw_E-m-wVO5u8ctPUahDcoaW5m-dByrXAXQ22QNGJy29JcBDuQj1Pz2pkYLeoUP8DxqqIVolKUJjBe_KN0EB88Wi4xuaTaMtnTPPy21Vugpvee6IgrM5CMa21Uc9Gzn2It1ug7p_ebaub8CX8jUa_FNbk5TmDV7XKNwXuG6JwTiMm8/s320/IMG-20231109-WA0130.jpg)
देश की बात फाउंडेशन का मानना है कि रोज़गार सिर्फ एक व्यक्ति के पेट भरने का मसला ही नहीं है ब्लकि उसके आत्मसम्मान का भी मसला है
"राष्ट्रीय रोज़गार नीति कानून" हर हाथ को काम और उस काम का सम्मानित दाम मिले।देश की बात फाउंडेशन का मानना है कि रोज़गार सिर्फ एक व्यक्ति के पेट भरने का मसला ही नहीं है ब्लकि उसके आत्मसम्मान का भी मसला है और राष्ट्र निर्माण में उसकी भागीदारी का भी मसला है। और आज़ादी के सात दशक बाद भी देश में राष्ट्रीय रोज़गार नीति कानून नहीं बन पाया। जिससे कि हर हाथ को काम मिले और आर्थिक सुरक्षा की गारंटी मिले। देश की बात फाउंडेशन सिर्फ समस्या का विरोध ही नहीं करता ब्लकि उसके समाधान को लेकर जनता और सरकार तक जाता है। इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय रोज़गार नीति कानून बनवाने के लिये देश की बात फाउंडेशन द्वारा अगला पड़ाव है 19 Dec से होने वाली रोजगार आंदोलन दिल्ली के जंतर-मंतर पर जिसमें भारी संख्या में आपकी उपस्थिति आवश्यक है।
सत्य यह है कि यदि देश के सभी बेरोज़गार युवा ,उत्पीड़ित किसान ,महिलाएँ, श्रमिक निश्चित तिथि को (19 दिसम्बर 2023) अपनी सभी समस्याओं को किनारे छोड़कर और जाति, धर्म और भाषा की दीवार को तोड़ कर दिल्ली पहुँचे तो सरकार को नींद से जागना ही होगा और ये कानून बनाने को बाध्य होना ही होगा।
आप सभी अपने -अपने तरीके से लड़ ही रहे हैं एक बार सब मिलकर राष्ट्रीय रोज़गार नीति कानून बनवाने के लिये संघर्ष की लड़ाई में चल पड़ें। लड़ाई कठिन है लेकिन जीत निश्चित है
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