शरीर की संरचना को समझ लेगें तो कूल्हे की समस्याओं का समुचित इलाज संभव शरीर की संरचना को समझ लेगें तो कूल्हे की समस्याओं का समुचित इलाज संभव

शरीर की संरचना को समझ लेगें तो कूल्हे की समस्याओं का समुचित इलाज संभव शरीर की संरचना को समझ लेगें तो कूल्हे की समस्याओं का समुचित इलाज संभव



- 'हिप प्रिजर्वेशनः तकनीक व नवाचार' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में विशेषज्ञों ने रखी बातें

-वीडियो प्रेजेंटेशन के माध्यम से कूल्हे के विकारों को समझाने का किया प्रयास


पटना।

बचपन में कूल्हे से जुड़ी समस्याओं को लोग नजरअंदाज कर देते हैं जो आगे चलकर बड़ी मुसीबत बन जाती है। कूल्हे की समस्याओं को समझने के लिए सबसे पहले शरीर की संरचना को समझने की जरूरत है। एक्स-रे को अच्छी तरह से समझना चाहिए। समस्याओं को ठीक करने के लिए क्या संसाधन उपलब्ध हैं और नई तकनीकों का इस्तेमाल कैसे अच्छी तरह से किया जा सकता है इसको लेकर जागरूकता होनी चाहिए। 

इंडियन आर्थोपेडिक एसोसिएशन के सहयोग से बिहार ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के द्वारा रविवार को 'हिप प्रिजर्वेशनः तकनीक व नवाचार' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला के बारे में बताते हुए  बिहार ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के अध्यक्ष डा रंजीत कुमार सिंह (एनएमसीएच)और सचिव व जानेमाने स्पाइन सर्जन (पीएमसीएच ) डॉ.(प्रो.) महेश प्रसाद ने कहीं। उन्होंने कहा कि पेडिएट्रिक हिप रोगों का इलाज हमेशा एक पहेली बना रहा है। इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से इस समस्या के समाधान की दिशा में गहरी जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया गया।

सम्मेलन में शिकागो यूनिवर्सिटी, यूएसए के प्रोफेसर डॉ. वीआरकेवी प्रसाद गौरिनेनी ने वीडियो प्रेजेंटेशन के माध्यम से बचपन में होने वाले संक्रमण, चोट और अन्य जैसे घातक कारक, पेडिएट्रिक हिप विकारों के उद्भव के पीछे के कारणों को समझाने का प्रयास किया। उनके अलावा न्यू दिल्ली के पेडिएट्रिक ऑर्थोपेडिक्स और डिसेबिलिटीज केंद्र, कोयंबटूर के प्रमुख डॉ. मनोज पद्मन,  पेडिएट्रिक ऑर्थोपेडिक्स के प्रमुख डॉ. वेंकटदास और डॉ. जॉन मुखोपाध्याय ने युवा ऑर्थोपेडिक सर्जनों को नई तकनीकों के बारे में बताया, जिससे मरीजों को कम से कम शारीरिक नुकसान पहुंचाए उसे पूरी तरह से ठीक किया जा सके। 

 मौके पर आयोजन सचिव डा सौरव चौधरी ने कहा कि कूल्हे से जुड़ी विशेष परिस्थितियों में जहां सामान्य ऑर्थोपेडिक सर्जन उलझ जाते हैं, उन परिस्थितियों को संभालने के क्या-क्या विकल्प हो सकते हैं, इसके बारे में इस व्याख्यान में बताया गया। वहीं पीएमसीएच के सीनियर आर्थोपेडिक सर्जन डा राजीव आनंद ने कहा कि चूंकि यह एक नया विषय है, इसे समझने में ज्यादातर सामान्य ऑर्थोपेडिक सर्जन को अभी समय लगेगा। इस व्याख्यान की मदद से हमें काफी कुछ समझने का मौका मिला है।

कार्यक्रम में डा जॉन मुखोपाध्याय, डा अरुण कुमार, डा जसविंदर सिंह, डा अमूल्या सिंह, डा अमरदीप आदि मौजूद थे। इनलोगों ने कई प्रश्न पूछे तो डा राजीव आनंद एक सत्र में पैनलिस्ट भी थे। 



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