खेती को लाभकारी और टिकाऊ बनाने का संकल्प, वैज्ञानिक पहुंचे किसानों के बीच
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के तत्वावधान में संचालित ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के आठवें दिन भी बिहार एवं झारखंड के विभिन्न जिलों में यह अभियान उसी ऊर्जा, उत्साह और वैज्ञानिक प्रतिबद्धता के साथ आयोजित किया गया। यह अभियान अब तक किसानों को उन्नत और टिकाऊ कृषि तकनीकों से जोड़ने की दिशा में एक प्रभावी एवं प्रेरणादायक पहल बन चुका है।
आज के कार्यक्रमों में भी कृषि वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों ने किसानों से सीधे संवाद कर उनकी समस्याओं को समझा और उन्हें व्यवहारिक वैज्ञानिक समाधान उपलब्ध कराए। इस दौरान धान परती भूमि प्रबंधन, संरक्षण कृषि, पोषण वाटिका, पशुपालन, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन तथा मत्स्य पालन जैसे विषयों पर विस्तृत तकनीकी जानकारी दी गई।
इस कड़ी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के निदेशक डॉ. अनुप दास और उनके साथ गई टीम ने गया जिले के धर्मपुर और धुसरी गांवों का दौरा किया। उन्होंने वहां किसानों से सीधे संवाद कर लंपी स्किन डिज़ीज़, उच्च गुणवत्ता वाले बीज, पोषण वाटिका की स्थापना, सरकार की विभिन्न कृषि योजनाएं, कृषि यंत्रों पर मिलने वाली सब्सिडी, बहुवर्षीय चारे की फसलें, और अच्छी किस्म के बीजों के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
इस अवसर पर डॉ. दास ने दोनों गांवों में पौधरोपण भी किया, जिससे उन्होंने पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया और ग्रामीणों को वृक्षारोपण हेतु प्रेरित किया।
इस अभियान की सफलता में कृषि विज्ञान केन्द्रों, राज्य एवं केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसंधान संस्थानों एवं केंद्रों तथा राज्य सरकार के कृषि विभाग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। इन संस्थानों ने संयुक्त प्रयासों से गांव-गांव में कार्यक्रमों का आयोजन कर अभियान को जमीनी स्तर तक पहुँचाया।
अभियान के समन्वय की जिम्मेदारी अटारी, जोन-IV, पटना एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना द्वारा निभाई जा रही है। इनके मार्गदर्शन में सभी सहभागी संस्थान सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। साथ ही राज्य सरकार का कृषि विभाग, आत्मा परियोजनाएं, इफको, स्थानीय जनप्रतिनिधि एवं अन्य सहयोगी संस्थाएं भी अभियान को गति देने में योगदान दे रही हैं।
किसानों ने इस अभियान में न केवल सक्रिय भागीदारी की, बल्कि तकनीकी विषयों पर अपनी जिज्ञासाएं भी वैज्ञानिकों के समक्ष रखीं। वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए सुझावों को उन्होंने व्यावहारिक और लाभकारी बताया तथा अपनी खेती में उन्हें अपनाने की इच्छा भी प्रकट की।
यह अभियान किसानों में यह विश्वास उत्पन्न कर रहा है कि यदि पारंपरिक कृषि ज्ञान के साथ आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का समावेश किया जाए, तो खेती को अधिक लाभकारी, टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल बनाया जा सकता है।
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