बिहार में नदी-आर्द्रभूमि संरक्षण को लेकर राज्य जैवविविधता कार्ययोजना पर परामर्श कार्यशाला का आयोजन
बिहार राज्य जैवविविधता पर्षद की के तत्वाधान में शुक्रवार को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT), पटना के विश्वेश्वरैया सम्मेलन कक्ष में एकदिवसीय परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य राज्य की नदियों और आर्द्रभूमियों से जुड़े पारिस्थितिकीय तंत्र के संरक्षण हेतु राज्य जैवविविधता रणनीति एवं कार्ययोजना का खाका तैयार करना था। कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार राज्य जैवविविधता पर्षद के अध्यक्ष, श्री भारत ज्योति ने की।
कार्यशाला का शुभारंभ पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार की अपर मुख्य सचिव, श्रीमती हरजोत कौर बम्हरा के कर-कमलों द्वारा हुआ। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में बिहार में जैवविविधता की वर्तमान स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इसके संरक्षण के लिए ठोस एवं वैज्ञानिक उपायों की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हमें अपनी जैवविविधता नीति में देसी नस्लों को सम्मिलित करना चाहिए, ताकि स्थानीय पारिस्थितिकी को सुदृढ़ किया जा सके।
कार्यशाला में प्रमुख अतिथियों के रूप में श्री पी. के. गुप्ता, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (HoFF), डॉ. डी. के. शुक्ला, अध्यक्ष, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद, डॉ. पी. के. जैन, निदेशक, NIT पटना, श्री यशपाल मीणा, अपर सचिव, जल संसाधन विभाग, बिहार, श्रीमती सीमा कुमारी, सीई एवं निदेशक, WALMI पटना तथा डॉ रमाशंकर झा, एचएजी प्रोफेसर, एनआईटी पटना शामिल थे।
इस अवसर पर प्रमुख वन संरक्षक श्री पी. के. गुप्ता ने राज्य में नदियों और आर्द्रभूमियों में जैवविविधता संरक्षण से जुड़े तथ्यों के जानकारी दी। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के अध्यक्ष डॉ. डी. के. शुक्ला ने जल निकायों में प्रदूषण की बढ़ती समस्या और उससे जैवविविधता पर पड़ने वाले प्रभावों पर विस्तार से प्रकाश डाला। वहीं जल संसाधन विभाग के अपर सचिव, श्री यशपाल मीणा ने जल संसाधनों के समावेशी प्रबंधन की जरूरत को रेखांकित किया।
कार्यशाला में विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और विभागीय प्रतिनिधियों की उपस्थिति में नदी तंत्र, आर्द्रभूमियों, पारिस्थितिकीय प्रवाह, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के विभिन्न आयामों पर गहन विचार-विमर्श हुआ। प्रतिभागियों को चार विषयगत समूहों में विभाजित कर समूह चर्चा और प्रस्तुतियाँ कराई गईं, जिनमें सतही जल संरक्षण, जैवविविधता के प्रति खतरे, प्रदूषण नियंत्रण और शहरी विकास में जलस्रोत संरक्षण जैसे विषयों पर रणनीतियाँ प्रस्तावित की गईं।
यह कार्यशाला न केवल नीति निर्माताओं और वैज्ञानिक समुदाय के लिए विचार-विमर्श का मंच रही, बल्कि यह बिहार में जल-जैवविविधता संरक्षण की दिशा में सामूहिक प्रतिबद्धता का जीवंत उदाहरण भी बनी।
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