डॉ. क़ासिम ख़ुर्शीद: उर्दू अदब का रौशन सितारा और तहज़ीब के सच्चे अलमबरदार

डॉ. क़ासिम ख़ुर्शीद: उर्दू अदब का रौशन सितारा और तहज़ीब के सच्चे अलमबरदार

सैय्यद आसिफ इमाम काकवी(दुबई)

“वक्त का तुझ से ये इज़हार है क़ासिम ख़ुर्शीद,
रब भी ख़ुश है जहाँ ईसार है क़ासिम ख़ुर्शीद।”

यह शेर सिर्फ़ एक तारीफ़ नहीं, बल्कि डॉ. क़ासिम ख़ुर्शीद साहब की पूरी ज़िन्दगी और शख्सियत की तस्वीर पेश करता है। निदेशक एवं उम्दा रचनाकार एस एम परवेज़ आलम की निरंतर सक्रियता और अपर मुख्य सचिव डॉ एस सिद्धार्थ के मार्ग दर्शन में बिहार सरकार के मंत्रिमंडल सचिवालय अंतर्गत उर्दू निदेशालय द्वारा आयोजित गत रोज़ यादगार मुशायरे की अध्यक्षता कर उन्होंने ना सिर्फ़ एक अहम ज़िम्मेदारी निभाई, बल्कि उर्दू की नुमाइंदगी के लिए अपनी आवाज को एक नई बुलंदी दी।
क़ासिम ख़ुर्शीद साहब उन चंद लोगों में से हैं जो साहित्य, शिक्षा और समाज तीनों को एक साथ साधते हैं।उर्दू हिंदी अंग्रेज़ी  में 20 से अधिक किताबें प्रकाशित होकर चर्चे में हैं। विश्वस्तरीय मुशायरे सेमिनार में रचनाकार और शिक्षा विद के तौर पर बिहार और हिन्दुस्तान का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं जिन में खाड़ी देश बहरीन और साहित्य अकादमी का सर्वभाषा हालिया लिटरेचर फेस्टिवल बेहद अहम हैं ।उन्होंने वर्ग 1 के पदाधिकारी सके रूप में 9 भाषाओं के हेड के रूप में बेहतरीन प्रशासकीय दक्षता का सबूत भी पेश है।उनका नाम बिहार ही नहीं, पूरे हिंदुस्तान की उर्दू हिंदीअदबी दुनिया में आदर और सम्मान से लिया जाता है। उनका जीवन और कार्य नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने जिस शिद्दत और समर्पण से उर्दू हिंदी भाषा और शिक्षा की सेवा की, वह बेहद महत्पूर्ण है। 
क़ासिम साहब ने प्रशासनिक पदों पर रहते हुए भी कभी अपनी साहित्यिक ज़िम्मेदारियों से किनारा नहीं किया। उन्होंने उर्दू को समृद्ध किया, हजारों लोगों को आगे बढ़ाया, और उन मूल्यों को जीवित रखा जो आज के समाज में लुप्त होते जा रहे हैं। उनकी किताबें, उनके लेख, उनके भाषण – सब में भाषा की मिठास और सोच की ऊँचाई महसूस होती है।

यह वक्त की सबसे बड़ी ज़रूरत है कि हम डॉ. क़ासिम ख़ुर्शीद जैसे व्यक्तित्व को नई पीढ़ी के सामने एक मिसाल के तौर पर पेश करें। उर्दू हिंदी सिर्फ़ एक भाषा नहीं, बल्कि एक तहज़ीब है, एक सोच है, एक जज़्बा है। क़ासिम साहब ने जो बुनियाद रखी है, अब उसे मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी हम सबकी है।
उनकी नर्मदिली, बड़प्पन और इल्मी मुकाम को शब्दों में बाँधना मुश्किल है।
“झुक के देखा है उसे अर्श ने ख़ामोशी से,
इतना ख़ुदबीन-ओ-निगहदार है क़ासिम ख़ुर्शीद।
यह वो शख़्स हैं जिनके लिए कोई सम्मान, कोई इनाम बड़ा नहीं होता – क्योंकि लोगों का प्यार, मोहब्बत और दुआएं ही उनका असल इनाम हैं।
डॉ. क़ासिम ख़ुर्शीद उर्दू हिंदी के नहीं, इंसानियत के भी सच्चे रहनुमा हैं। उन्हें सलाम पेश करना, तहज़ीब और इल्म को सलाम करना है। ऐसे अदीबों का सम्मान करना हम सबका फ़र्ज़ है – ताकि आने वाली नस्लें जान सकें कि हमने किन शख्सियतों के साए में तालीम, तहज़ीब और तहरीर सीखी है।
“ऐ शहरे-काको तुझे मेरा सलाम है…

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