प्रेमचंद रंगशाला, पटना में फणीश्वरनाथ रेणु जयंती समारोह का भव्य आयोजन हुआ

प्रेमचंद रंगशाला, पटना में फणीश्वरनाथ रेणु जयंती समारोह का भव्य आयोजन हुआ

पटना: बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग तथा बिहार संगीत नाटक अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आज प्रेमचंद रंगशाला, पटना में महान हिंदी साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु जी की जयंती समारोह का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के माननीय मंत्री श्री मोतीलाल प्रसाद जी के द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु जी के चित्र पर माल्यार्पण कर उनकी पुण्य स्मृति को नमन करते हुए हुई। इसके पश्चात मंत्री जी ने दीप प्रज्वलित कर समारोह का विधिवत उद्घाटन किया।
इस अवसर पर माननीय मंत्री श्री मोतीलाल प्रसाद (कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार) ने रेणु जी के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी रचनाएँ ग्रामीण भारत की सजीव तस्वीर प्रस्तुत करती हैं। रेणु जी ने अपनी लेखनी से समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज़ को बुलंद किया। उन्होंने कहा कि इस मंच पर आकर उन्हें बहुत अच्छा महसूस हो रहा है। मंत्री जी ने रेणु के बारे में  बात करते हुए कहा कि वह साहित्यकार जरूर थे पर स्वभाव से क्रांतिकारी भी थे। छात्र आंदोलन के साथ ही जेपी आंदोलन में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। यही नहीं नेपाल में राणाशाही के खिलाफ भी उन्होंने लड़ाई लड़ी। छात्रों पर हुए लाठीचार्ज के खिलाफ उन्होंने पद्मश्री तक लौटा दिया था। आज वह भले नहीं है पर उनकी रचना हमारे बीच है यह कम बड़ी बात नहीं है। उन्होंने हमेशा गांव को और गरीबों को अपनी रचनाओं में जगह दी। आज की पीढ़ी को उनके बारे में जानना चाहिए और उनका पढ़ना चाहिए।

कार्यक्रम में “हिंदी साहित्य में रेणु जी की रचनात्मकता” विषय पर आयोजित परिचर्चा में श्री प्रेम कुमार मणि (पूर्व सदस्य, बिहार विधान परिषद), ने कहा कि उनको याद करना खुद को ही  गौरवान्वित करने के समान है। पूरी दुनिया में भारत से जिन साहित्यकारों को लोग जानते हैं उनमें रेणु अग्रणी है। इसके साथ ही रवींद्रनाथ टैगोर और प्रेमचंद को लोग जानते हैं। रेणु जी बहुत ही व्यवस्थित लेखक थे। क्या बोलना है? कब बोलना है? कितना बोलना है? पूरी मर्यादा के साथ वह बात करते थे। जब जब देश में हलचल हुई तब रेणु जी कुछ नया करने के लिए हमेशा आगे रहे। विधानसभा में बैठकर जिस तरह से उन्होंने दिनमान के लिए रिपोर्टिंग की वह अद्वितीय थी। राजनीति और साहित्य दोनों विधाओं पर उनकी गहरी पकड़ थी।

श्री सुरेंद्र नारायण यादव जी ने कहा कि रेणु के साहित्य में यह खासियत है कि  में प्रथम दृष्टि में ही उनको पढ़कर आकर्षण जग जाता है। रेणु महान चिंतक, विचारक और योजनाकार थे इसमें कोई शक नहीं है।

डॉ. विनोद कुमार मंगलम ने कहा कि बड़ा रचनाकार वह होता है जो देश, काल और परिस्थितियों को समझे और इसमें कोई शक नहीं की रेणु जी एक बड़े रचनाकार थे। उनकी रेणु बनने के पीछे स्थानीय शिक्षक का हाथ था जिन्होंने सबसे पहले उन्हें रेणु कहकर बुलाया था। 

रेणु जी की सुपुत्री नवनीत जी ने कहा कि सब लोग उनको रचनाकार के तौर पर जानते हैं मैं उनको एक पिता के तौर पर जानती हूं। उनको साग बहुत पसंद था।  खाने के वह शौकीन थे।  खाना वह केला के पत्ता पर खाते थे। हम लोगों ने उनको पिता के तौर पर भी देखा और मां की भूमिका में भी। उन्होंने हमें शिक्षित और दीक्षित किया। हमेशा वह कहते थे कि तुम लोग एक किसान की बेटी हो।

वक्ताओं ने फणीश्वरनाथ रेणु की कालजयी कृतियों जैसे “मैला आंचल”, “परती परिकथा”, “तीसरी कसम” आदि पर विस्तार से चर्चा की।

समारोह के अंतिम सत्र में रेणु जी की प्रसिद्ध कहानी “पंचलाइट” पर आधारित नाटक का मंचन किया गया, जिसका निर्देशन श्री पुण्य प्रकाश ने किया। दस्तक नाट्य संस्था, पटना द्वारा प्रस्तुत इस नाटक को दर्शकों ने खूब सराहा। ग्रामीण समाज की सादगी और मानवीय भावनाओं को दर्शाने वाले इस नाटक ने रेणु जी की संवेदनशील लेखनी को जीवंत कर दिया।

मंच पर जिन कलाकारों ने अपनी अभिनय से नाटक को सजीव बनाया उसमें मंच पर मुनरी के रोल में रश्मि रानी, गोधन की भूमिका में प्रिंस सूर्यवंशी, सरपंच के रोल में राहुल कुमार,  काकी के रोल में विदुषी रत्नम्,  कनेली की भूमिका में श्रृष्टि, पारस मामू की भूमिका में गुलशन कुमार, भगिना की भूमिका में रैम्स आदि अन्य कलाकारों ने बेहतरीन प्रस्तुति दी। 

मंच के पीछे से जिन लोगों का सहयोग प्राप्त हुआ उनमें हारमोनियम और संगीत संचालन चन्दन उगना का रहा, ढ़ोलक पर सुबोध कुमार, राहुल और चितरंजन गोंड, झाल  पर मोहित और गुलशन, खंजड़ी पर इरशाद आलम, नृत्य परिकल्पना प्रिंस कुमार का, मंच और प्रकाश परिकल्पना पुंज प्रकाश का, प्रकाश व्यवस्था विनय, स्पर्श और रौशन का, वस्त्र परिकल्पना विदुषी और रश्मि का था। 

निर्देशक के बारे में

पुंज प्रकाश, सन 1994 से रंगमंच के क्षेत्र में लगातार सक्रिय अभिनेता, निर्देशक, लेखक, अभिनय प्रशिक्षक व प्रकाश परिकल्पक हैं। मगध विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में ऑनर्स। नाट्यदल "दस्तक" के संस्थापक सदस्य। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के सत्र 200407 में अभिनय विषय में विशेषज्ञता। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल में सन 2007-12 तक बतौर अभिनेता कार्यरत। अब तक देश के कई प्रतिष्ठित अभिनेताओं, रंगकर्मियों के साथ कार्य।
इस कार्यक्रम में बिहार संगीत नाटक अकादमी के सचिव अनिल कुमार सिन्हा और सहायक सचिव कीर्ति आलोक और  बड़ी संख्या में साहित्य, कला एवं संस्कृति प्रेमियों ने भाग लिया और रेणु जी की रचनाओं को स्मरण करते हुए उनके योगदान को नमन किया।

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