पीएम-किसान के नाम पर किसान तिरस्कार समारोह
*पटना, 24 फरवरी 2025:* संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों ने पटना में प्रेस को संबोधित करते हुए पीएम-किसान योजना की एक साधारण किस्त के हस्तांतरण के लिए आज बिहार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के “किसान सम्मान समारोह” के भव्य आयोजन को किसान तिरस्कार समारोह बताया और पीएम-किसान की राशि को किसानों के लिए अपर्याप्त बताया।
2019 लोकसभा चुनाव से पहले कृषि संकट से पीड़ित किसानों के गुस्से को शांत करने के प्रयास में शुरू किए गए *पीएम-किसान योजना की राशि में पिछले छह वर्षों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई* है। जबकि, खाद, बीज, बीजली, डीजल के दामों में बढ़ोतरी के कारण *किसानों की लागत तेजी से बढ़ी* है। वहीं, *छह वर्षों में योजना के लाभार्थियों की संख्या 2 करोड़ घटाई गई* है — वर्ष 2019 में 11.8 करोड़ से वर्ष 2025 में 9.8 करोड़। बिहार में लाभार्थियों की संख्या 83 लाख से 76 लाख हो गई है।
इस *योजना में भूमिहीन किसानों और खेत-मजदूरों को भी शामिल नहीं किया गया* है। बिहार में अधिकांश किसान भूमिहीन हैं, जिन्हें इस योजना से वंचित रखा गया है। संयुक्त किसान मोर्चा पीएम-किसान की राशि को बढ़ाने और इस योजना में भूमिहीन किसानों और खेत-मजदूरों को भी शामिल करने की मांग को निरंतर उठाता रहा है।
आज बिहार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आगमन पर संयुक्त किसान मोर्चा ने केन्द्र और राज्य सरकार से बिहार के किसानों की गुहार को सुनने का अनुरोध किया। आज, *बिहार के किसान बदहाली का सामना कर रहे हैं और खेती छोड़ पलायन करने को मजबूर हैं।*
बिहार में, आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है। लेकिन यहां किसानों की आय सबसे कम है। राज्य के *किसानों को अपने फसल पर सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा* है। पिछले खरीफ सीजन में जहां सरकार ने धान पर ए2+एफएल+50% की दर से ₹2300 प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया था, एपीएमसी मंडियों की अनुपस्थिति में बिहार में किसानों को उनकी उपज के लिए केवल ₹1800 प्रति क्विंटल मिल रहा था।
हाल ही में कृषि विपणन पर केन्द्र सरकार द्वारा जारी मसौदा, बिहार सरकार द्वारा 2006 में *एपीएमसी अधिनियम को निरस्त करने के कारण जर्जर होती आधारभूत संरचना* के बारे में बताता है। वर्ष 2006 में बिहार में 95 एपीएमसी मंडियां थीं। एपीएमसी अधिनियम के निरस्त होने के बाद किराए के परिसर में चलने वाले 41 एपीएमसी बंद हो गईं। 54 एपीएमसी मंडियों की स्थिति दयनीय है।
*बिहार में फसल बीमा योजना लागू नहीं है।* इस कारण किसानों को बाढ़-सुखाड़ में फसल नष्ट होने पर नुकसान झेलना पड़ता है। राज्य में *सिंचाई परियोजना जर्जर हो गईं हैं,* जिसके जीर्णोद्धार के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है।
किसानों को खाद की खरीद के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। डीएपी खाद के लिए किसानों को ₹1350 अधिकतम खुदरा मूल्य की जगह ₹1500-₹1600 चुकाना पड़ता है।
भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 को लागू करने की जगह, सरकार किसानों पर दमन कर रही है, और कृषि भूमि का जबरन अधिग्रहण कर रही है।
केन्द्र सरकार ने कृषि बजट में लगातार कटौती की है। जहां 2020 में कृषि के लिए आवंटन बजट का 4.83% था, वह 2025 में सिर्फ़ 3.06% रह गया। फसल बीमा में ₹3621.73 करोड़ रुपये की भारी कटौती की गई — जो 2024-25 में ₹16864.00 करोड़ से 2025-26 में ₹12,242.27 करोड़ हो गई है।
केन्द्र सरकार ने तीन काले क़ानूनों के खिलाफ ऐतिहासिक किसान आन्दोलन के बाद संयुक्त किसान मोर्चा के साथ 9 दिसम्बर 2021 को किया गया समझौता और लिखित आश्वासन आज तक लागू नहीं किया है, जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी, विद्युत अधिनियम लाने से पहले संयुक्त किसान मोर्चा के साथ चर्चा, और किसानों पर दर्ज सारे मुकदमें वापस लेना शामिल है। इसके विपरीत, अब “कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा” द्वारा पिछले दरवाजे से तीन काले क़ानूनों को पुनः वापस लाया जा रहा है। *संयुक्त किसान मोर्चा कृषि विपणन नीति के खिलाफ 24-25-26 मार्च 2025 को पटना में किसान मोर्चा लगाएगा।*
देश के किसान आज घटती आय और बढ़ती महंगाई की दोतरफा मार झेल रहे हैं। पीएम-किसान योजना का मामूली हस्तांतरण किसानों के लिए अपर्याप्त है, और किसानों के साथ धोखा है।
*जारीकर्ता*
संयुक्त किसान मोर्चा, बिहार की ओर से,
1. उमेश सिंह, राज्य सचिव, किसान महासभा
2. विनोद कुमार, महासचिव, किसान सभा (जमाल रोड)
3. श्री राम राय, नेता, किसान सभा (अजय भवन)
4. नन्द किशोर सिंह, नेता, अखिल भारतीय खेत मजदूर किसान संगठन
5. ऋषि आनंद, नेता, जय किसान आंदोलन
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