पुस्तक मेला के मुख्य मंच पर क़िस्सागो कार्यक्रम में मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने अपनी कहानी वीर कुंवर सिंह का पाठ किया.

पुस्तक मेला के मुख्य मंच पर क़िस्सागो कार्यक्रम में मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने अपनी कहानी वीर कुंवर सिंह का पाठ किया.

पुस्तक मेला के मुख्य मंच पर क़िस्सागो कार्यक्रम में मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने अपनी कहानी वीर कुंवर सिंह की प्रेम कथा का पाठ किया. महिला उधमी प्रीति प्रिया ने  मुरली मनोहर श्रीवास्तव को पुस्तक मेला का प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया.इस कहानी के माध्यम मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने बाबू वीर कुंवर सिंह के आज़ादी की लड़ाई में भूमिका पर प्रकाश डाला. बाबू वीर कुंवर सिंह ने जो संग्राम अंगेज़ों के ख़िलाफ़ छोड़ा था उसने उस समय में जात और धर्म को मिटाकर एक अंगेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी. मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने धर्मन बीबी की महत्वपूर्ण भूमिका को बताती हैं.वीर कुँवर सिंह जी के कृतित्व को आम जनमानस तक पहुँचाना है। 
मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने अपनी किताब शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ के बारे में बताते हुए कहा कि 
विश्वविख्यात शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ का जन्म डुमराँव (बिहार) के एक संगीतज्ञ घराने में हुआ। अपने चाचा उस्ताद अली बक्श से उन्होंने संगीत की शिक्षा पाई, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के शहनाईवादक थे।
सन् 1937 में कलकत्ते में हुए अखिल भारतीय संगीत समारोह में श्रोताओं को अपनी शहनाई की स्वर-लहरियों से मंत्रमुग्ध करके उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने शहनाई के साज को शास्त्रा्य संगीत के उच्च मंच पर बिठाया। 15 अगस्त, 1947 को देश के प्रथम स्वाधीनता समारोह में और फिर 26 जनवरी, 1950 को प्रथम गणतंत्र दिवस पर दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला उनके सुमधुर शहनाई वादन का साक्षी बना।

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