एक मोड़ पर खड़ी है उम्मत: रफ्तार बदलिए, पल को अपनाइए और चुप्पी तोड़िए
कुछ लोग तुम्हें समझाएंगे
वो तुमको खौफ दिलाएंगे
जो है, वो भी खो सकता है
इस राह में रहजन हैं इतने
कुछ और यहाँ हो सकता है
अरे, कुछ और तो अक्सर होता है
पर तुम जिस लम्हे में ज़िंदा हो, वो लम्हा तुमसे ज़िंदा है
ये वक़्त नहीं फिर आएगा
तुम अपनी करनी कर गुज़रो
जो होगा देखा जाएगा।
पटना, 13 अक्टूबर
अब समय आ गया है कि हम रुकें, सोचें और एक निर्णायक बदलाव लाएं। अक्सर डर और झिझक हमें आगे बढ़ने से रोकते हैं। यह डर कि हम कुछ खो देंगे या हमें किसी खतरे का सामना करना पड़ेगा, हमें साहसिक कदम उठाने से रोक देता है। रास्ते में मुश्किलें ज़रूर हैं, और चीज़ें हमेशा हमारी उम्मीद के मुताबिक नहीं होतीं, लेकिन यही अनिश्चितता जीवन को अर्थपूर्ण और शक्तिशाली बनाती है।
हमें समझना होगा कि जिस पल में हम हैं, वह केवल हमारी मौजूदगी से ही जीवित है। हमारे आज के फैसले, हमारी बातें और हमारे कदम ही हमारे भविष्य का निर्माण करेंगे। अगर हम इंतज़ार करेंगे, तो यह समय हमारे हाथ से निकल जाएगा—और कभी वापस नहीं आएगा। हमारे पास जो अवसर है, वह खास है और तुरंत कार्रवाई की मांग करता है। हमें किसी परफेक्ट समय का इंतज़ार नहीं करना चाहिए—यह वही क्षण है जिसमें हमें काम करना है।
इसके अलावा, अन्याय के सामने हमारी चुप्पी एक ऐसा बोझ है जिसे हम और नहीं उठा सकते। जैसा कि एक प्रसिद्ध कथन हमें याद दिलाता है:
“ज़ुल्म उतना ख़तरनाक नहीं है जितनी ख़तरनाक हमारी ख़ामोशी है। अगर हम आज बोलना नहीं सीखेंगे, तो आने वाली पीढ़ियाँ गूंगी हो जाएँगी।”
अब मूकदर्शक बने रहने का समय खत्म हो चुका है। हमें सच के लिए आवाज़ उठानी होगी और न्याय के लिए काम करना होगा—सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी। अब हमें बिना डरे कदम उठाने होंगे और निर्भीक होकर बोलना होगा। हमारी आवाज़ें तब तक उठनी चाहिए जब तक अन्याय खत्म न हो जाए, क्योंकि चुप्पी ही अत्याचार को बढ़ने देती है।
फासीवाद के खिलाफ संघर्ष: कुरान की शिक्षा और क़ानून के दायरे में रहकर सही रास्ता अपनाएं
समाज में बढ़ती फासीवादी ताकतें जो हमें बांटना और हमारी आज़ादी छीनना चाहती हैं, हाल की घटनाओं ने हमारी लड़ाई की गंभीरता को और स्पष्ट कर दिया है। मुंबई में मुस्लिम नेता बाबा सिद्दीकी का हालिया क़त्ल इस खतरे का ताज़ा उदाहरण है, जो मुस्लिम आवाज़ों को दबाने के एक खतरनाक चलन की ओर इशारा करता है। इसके अलावा, हमारी मस्जिदों और धार्मिक स्थलों में तोड़फोड़ हमारे समुदाय में भय और नफरत फैलाने की एक गहरी साज़िश का हिस्सा है।
इन अन्यायों के जवाब में हमें कुरान की शिक्षा पर कायम रहना है, जो हमें न्याय, करुणा और धैर्य का मार्ग दिखाती है। इसके साथ ही, हमें कानूनी और नैतिक सिद्धांतों का पालन करते हुए अपने अधिकारों का बचाव करना होगा।
यहां कुछ ज़रूरी कदम हैं जो हमें उठाने चाहिए:
1. समुदाय में एकता को मजबूत करें: बांटो और राज करो की नीति वहीं सफल होती है जहां एकता कमजोर हो। हमें अपने आपसी मतभेदों को खत्म कर सभी समुदायों से हाथ मिलाना होगा।
2. शिक्षा और जागरूकता फैलाएं: जागरूकता ही संघर्ष की पहली सीढ़ी है। शांति से संवाद करें, जन जागरूकता अभियान चलाएं और फासीवादी विचारों का पर्दाफाश करें।
3. कानूनी साधनों का उपयोग करें: न्याय के लिए कानूनी रास्ता अपनाएं। जनहित याचिकाएं दायर करें, शिकायतें दर्ज कराएं और संविधान में दिए गए अधिकारों की रक्षा करें।
4. अहिंसक प्रदर्शन और सामाजिक भागीदारी: शांतिपूर्ण विरोध, हड़तालों और जन सभाओं में भाग लें। अहिंसा अत्याचार के खिलाफ संघर्ष का सबसे शक्तिशाली और वैध साधन है।
5. कमज़ोरों का समर्थन करें: जिन लोगों को सबसे ज्यादा खतरा है, जैसे अल्पसंख्यक, महिलाएं और गरीब, उनकी रक्षा के लिए सक्रिय रहें। हमारी ताकत साझा सहानुभूति और सामूहिक कार्रवाई में है।
6. दुआ और सब्र: हमें अपने प्रयासों के साथ-साथ अल्लाह (SWT) से शक्ति, मार्गदर्शन और सफलता के लिए दुआ करनी होगी। सब्र का मतलब निष्क्रियता नहीं है, बल्कि चुनौतियों के बीच सही रास्ते पर डटे रहना है।
कार्रवाई का आह्वान
ये हमले सिर्फ एक-दो घटनाएं नहीं हैं—बल्कि हमारी आवाज़ों को दबाने और हमें डराने की बड़ी साज़िश का हिस्सा हैं। लेकिन हमें अब और चुप नहीं रहना चाहिए। भविष्य वही लोग बदलते हैं जो आज हिम्मत और यकीन के साथ कदम उठाते हैं।
रास्ता मुश्किल ज़रूर है, लेकिन हिम्मत, समझदारी और एकता से हम हर चुनौती को पार कर सकते हैं। अब वक्त है कि हम अपनी रफ्तार बदलें, इस पल को अपनाएं और निर्भीक होकर बोलें। हमें अपनी और आने वाली पीढ़ियों की भलाई के लिए अभी काम करना होगा, और हमारे काम में ईमान और दृढ़ संकल्प होना चाहिए।
अल्लाह (SWT) हमें इस सफर में राह दिखाए, हमारे कामों में समझदारी दे और हमारे दिलों को हर डर से मज़बूत बनाए। हम सब मिलकर अपने आज को बदल सकते हैं और एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं जो न्याय और शांति पर आधारित हो।
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