रावण सब के मन में है, राम अभी तक वन में हैं।“राम की राह और रावण का प्रभाव: आत्मचिंतन का समय” लेखक: रेयाज आलम

रावण सब के मन में है, राम अभी तक वन में हैं।“राम की राह और रावण का प्रभाव: आत्मचिंतन का समय” लेखक: रेयाज आलम

यह पंक्ति हमारे देश के मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य का गहरा प्रतिबिंब है। यह इस बात की ओर इशारा करती है कि किस प्रकार लालच और स्वार्थ ने हमारे मन और समाज पर कब्जा जमा लिया है, जबकि नैतिकता, करुणा और सत्य की राह आज भी उपेक्षित है, मानो वह अब भी वनवास में हो।

आज की राजनीति और समाज की दिशा ने हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों और इस सुंदर राष्ट्र के सामाजिक ताने-बाने पर भारी दबाव डाल दिया है—केवल सत्ता बनाए रखने के लिए। जातिवाद, सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति ने समाज में विभाजन उत्पन्न कर दिए हैं। सत्ता की भूख ने नैतिकता को दरकिनार कर दिया है और धर्म और जाति के नाम पर लोगों को बांटने के लिए विभाजनकारी नीतियों का सहारा लिया जा रहा है। यह स्थिति हमारे संवैधानिक आदर्शों और भारत की सदियों पुरानी एकता के लिए गंभीर खतरा है।

राम के आदर्श—सत्य, करुणा और न्याय—हमारे राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। जो नेता इन मूल्यों की बात करते हैं, उन्हें या तो कमजोर कर दिया जाता है या फिर हाशिये पर धकेल दिया जाता है। वहीं, रावण की प्रवृत्तियाँ—अहंकार, फूट डालने की चालाकी और सत्ता की अंधी लालसा—ने राजनीतिक माहौल को दूषित कर दिया है।

देश के भविष्य के लिए यह आवश्यक है कि हम आत्मचिंतन करें और यह समझें कि हम कब तक इस रास्ते पर चलते रहेंगे।

क्या करने की आवश्यकता है

हर नागरिक को यह तय करना होगा कि वह नफरत और विभाजन की राजनीति का हिस्सा बनना चाहता है या प्रेम, करुणा और भाईचारे का संदेश फैलाना चाहता है।

हमारे राजनेताओं को भी यह समझना होगा कि सत्ता स्थायी नहीं होती, और इतिहास उन्हें उनके कार्यों से ही याद रखेगा। सत्ता के लालच में सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करना न तो राष्ट्र के हित में है और न ही यह मानवता के आदर्शों के अनुरूप है।

हमारी एकता में ही हमारी शक्ति है। “विविधता में एकता” का संदेश, जो भारत सदियों से दुनिया को देता आया है, आज पहले से अधिक प्रासंगिक है। अब समय आ गया है कि हम अपने भीतर के रावण से संघर्ष करें और राम के आदर्शों को अपनाकर ऐसा समाज बनाएं, जहाँ प्रेम, करुणा और समानता सर्वोपरि हों।

देश को अब ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो सत्ता से ऊपर उठकर लोगों को जोड़ने का कार्य करे और नफरत की बजाय प्रेम का संदेश फैलाए। हर भारतीय को यह सोचना होगा कि क्या वह इस संघर्ष में राम का मार्ग चुनेगा या रावण की प्रवृत्तियों का शिकार बनेगा। यही आत्मचिंतन हमें एक मजबूत, एकजुट और सशक्त भारत की दिशा में ले जाएगा।

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