व्यक्ति विशेष : हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु त'आला अलैही व सल्लम)
ईद मिलाद उन नबी के मौके पर दुनियाँ के कोने कोने में अमन पसन्द मुसलमानों ने शांतिपूर्वक जुलूस ए मुहम्मदी निकाल कर नबी से अपनी मुहब्बत और अक़ीदत का सुबूत पेश किया। हज़रत मुहम्मद ने अपनी 63 साल की दुनियावी ज़िन्दगी में अपने किरदार से पूरी दुनियां में जो मिसाल पेश की वो मिसाल आज तक कोई पेश न कर सका। ज़िन्दगी के हर मरहले पर उन्होंने मानवता व शांति का संदेश दिया। उन्होंने काले गोरे के भेद को मिटाया साथ ही शराब को मानवता का दुश्मन समझते हुए इसे मुसलमानों के लिए हराम क़रार दिया। एक वो दौर भी था जब बेटियों को ज़िंदा दफ़न कर दिया जाता है लेकिन उन्होंने बेटियों को रहमत का लक़ब देकर उनकी इज़्ज़त को बुलंद किया। हज़रत मुहम्मद की सुन्नतें क़यामत तक मुसलमानों की रहनुमाई करती रहेंगी। जो मुसलमान उनकी सुन्नतों पर मज़बूती से चल रहे हैं वो कामयाब हैं। अल्लाह ने क़ुरआन में हज़रत मुहम्मद के बारे में कहा कि "हमने आपको तमाम जहान के लिए रहमत बनाकर भेजा है" अर्थात वो तमाम इंसानियत के लिए रहमत हैं। उनकी विलादत के मौके पर इब्लीस को छोड़कर तमाम इंसानियत खुशियां मनाती है। उन्होंने पूरी दुनियां में अमन, मानवता, शांति, ईमानदारी, भाईचारगी, सिलारहमी, प्रेम, करुणा व दया की जो मिसाल पेश की है वो तमाम इंसानियत के लिए एक शोध का विषय होना चाहिए। आज मग़रिबी तहज़ीब में मुसलमान इस कदर खो चुका है कि उसने हज़रत मुहम्मद की सीरत व सुन्नत सबसे मुंह मोड़ लिया और लगातार बर्बादी की तरफ़ बढ़ रहा है। उन्होंने हदीस के ज़रिए मुसलमानों को कहा कि " दुनियाँ में इस तरह रहो जैसे तुम राह चलते मुसाफ़िर हो, एक अन्य हदीस में उन्होंने कहा कि "तुम में से कोई उस वक़्त तक मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि वो अपनी जान, अपने माल, अपनी औलाद, अपने मां बाप से ज़्यादा मुझसे मुहब्बत करने वाला ना हो जाए। आज ज़रूरत है कि हम उनकी सीरत व सुन्नत की तरफ़ वापस लौटें और दुनियाँ में मानवता व भाईचारगी को बढ़ावा देने वाले बन जाएं।
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