बैकवर्ड मुस्लिम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमाल अशरफ राइन, वरिष्ठ पत्रकार श्री इर्शादुल हक और असगर अली ने संयुक्त रूप से आज जस्टिस बालाकृष्णन आयोग की टीम को दस्तावेज के साथ स्मरण पत्र दिया

बैकवर्ड मुस्लिम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमाल अशरफ राइन, वरिष्ठ पत्रकार श्री इर्शादुल हक और असगर अली ने संयुक्त रूप से आज जस्टिस बालाकृष्णन आयोग की टीम को दस्तावेज के साथ स्मरण पत्र दिया

    बैकवर्ड मुस्लिम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमाल अशरफ राइन, वरिष्ठ पत्रकार श्री इर्शादुल हक और असगर अली ने संयुक्त रूप से आज जस्टिस बालाकृष्णन आयोग की टीम से ज्ञान भवन, पटना में मुलाकात की और दलित मुसलमानों को संविधान की धारा 341 से धार्मिक प्रतिबंध हटाकर अनुसूचित जाति आरक्षण की श्रेणी में शामिल कराने के लिए उन्हें पूरी दस्तावेज के साथ स्मरण पत्र दिया। 
    उक्त बातें आज एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमाल अशरफ राइन ने दी। उन्होंने कहा कि 2022 में केन्द्र की श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी की सरकार ने  देश में पहली बार इसका गठन किया ताकि दलित मुसलमानों की पहचान तथा स्थिति जाना जा सके,यह भी साफ हो जाए कि कौन कौन मुस्लिम जातियां दलित वर्ग की हैं और उनकी शैक्षिक, आर्थिक एवं दिगर स्थिति कैसी है? राष्ट्रीय स्तर पर जांच पूरी करने के बाद 2024 में ही आयोग अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप देगा।
    श्री अशरफ ने कहा कि मोर्चा 1994 से इसकी तहरीक चला रहा है और सर्व प्रथम मोर्चा ही ने प्रदेश से राष्ट्रीय स्तर पर इस मुहिम को पहुंचाया की संविधान की धारा 341 में राष्ट्रपति अध्यादेश द्वारा 1950 में धार्मिक प्रतिबंध लगाया गया जो धारा 14,15,16,17 और 25 के विरुद्ध है , जिससे बंजारा (बक्खो), धोबी,नट, हलालखोर,मेहतर, लालबेगी,भंगी,भांट, जोगी, फकीर,पासी,मोची, खटीक, जुलाहा,धुना,(बहना), डाली, दर्जी पमड़िया (बेड़ा, मोन ढोलवाला) भटियारा, भिश्ती,चिक,गुजर, गद्दी, कुम्हार,मल्लाह (माहिगीर), बंगाली मुस्लिम में मंडल, चौधरी,हलदर,सिकंदर, विश्वास,लब्बै, रावठरस और माराकायर, तामिलनाडु में पुसलर और आसान, केरला में मारिया,असाम में बेरी,पिन्डारस,तकारस,जरर्गस, कर्नाटक में हैन्गी,मांझी,गोरे-खांस,शुपिन वेट्टल, बकरवाल,खरवार,गुडवाल आदि जातियां जम्मू-कश्मीर में हैं जिनकी समाजिक, शैक्षिक और पेशा दलित हिन्दुओं के समान है और हालत उनसे भी बदतर है इनकी आबादी लगभग 80 % है, इन्हीं जातियों का नाम दक्षिण भारत के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी ने बजाप्ता मंच से लिया था उन्हें भी इसकी पूरी जानकारी मोर्चा ने दिया था।
     श्री अशरफ ने बताया कि सर्व प्रथम तत्कालीन केन्द्रीय कल्याण मंत्री श्री रामू वालिया ने 1996 में संसद में इस मुद्दे को लाया, 12 अप्रैल 1999 में बिहार विधान परिषद, से प्रस्ताव पारित हुआ,02 दिसम्बर 1999 में तत्कालीन केन्द्रीय कानून मंत्री स्व राम जेठमलानी ने प्रत्येक दस वर्षों पर समिक्षा के प्रश्न पर दलित मुसलमानों व इसाइयों को शामिल करने की वकालत की,20 दिसम्बर 1999 में सांसद श्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने शुन्य काल में इसे उठाया , 20 May 2000 को रघुवंश प्रसाद सिंह ने प्राइवेट मेम्बर बील लाने की वकालत की, 21 जुलाई 2000 में बिहार विधान सभा से प्रस्ताव पारित हुआ,05 दिसम्बर 2000 बिहार कैबिनेट ने पास किया 31 दिसम्बर 2000 को केन्द्र सरकार ने चर्चा किया,21 जुलाई 2000 इ अहमद के साथ रघुवंश प्रसाद सिंह ने 01 दिसम्बर 2000 में जो बिल भेजा उसकी जानकारी ली, पश्चिम बंगाल पिछड़ा आयोग ने इसके, समर्थन में केन्द्र सरकार को चिट्ठी भेजी ,03 फरवरी 2002 तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हाजीपुर जोनल कार्यालय के उद्घाटन में आएं उन्हें ज्ञापन दिया गया उन्होंने मीडिया के समक्ष स्वीकार किया कि केंद्र सरकार इसे देखेगी, 31 मार्च 2002 संविधान समीक्षा आयोग ने इसके समर्थन में सिफारिश की, 18 दिसम्बर 2003 में स्व राम विलास पासवान,स्व रामचन्द्र पासवान,हन्नान मुल्ला और पप्पू यादव ने ध्यान कर्सन प्रस्ताव लाया 75 % सांसद समर्थन में थे डेढ़ घंटा जबरदस्त बहस होने के बाद सांसदों ने 193 में इसे कन्वर्ट कर वोटिंग की मांग की जिसे तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी ने नकार दिया उस समय मैं भी संसद भवन में बैठा सबकुछ देख रहा था,19 अप्रैल 2005 में मोर्चा की टीम स्व रामविलास पासवान के नेतृत्व में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह से मुलाकात किया , उसके बाद राजेन्द्र सच्चर और रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन हुआ जिसने दलित मुसलमानों और इसाइयों को शामिल करने और पारा तीन से 1950 का राष्ट्रपति अध्यादेश वापस लेने की सिफारिश की,24 अगस्त 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री तत्कालीन सांसद श्री नीतीश कुमार ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से संसद में उठाया, मोर्चा के पहल पर अनेकों दफा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोगों ने भी इसकी हिमायत में केन्द्र सरकार को पत्र लिखा।
श्री अशरफ ने कहा कि पूरे तीस वर्षों से मोर्चा सड़क से सदन और सदन से न्यायालय तक इस लड़ाई को लड़ रहा है उसे उम्मीद है कि बालाकृष्णन आयोग भी इस मुद्दे की सिफारिश केन्द्र सरकार से करेगा और श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी पूर्व में स्वयं द्वारा लिए गए कयी एतिहासिक फैसलों में एक फैसला और करेंगे एवं ऐसा रास्ता निकालेंगे कि बहुसंख्यक दलितों की हकमारी भी ना हो और दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति आरक्षण की सुविधा भी मिल जाएं ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने 49.5% आरक्षण में बिना छेड़छाड़ किए आर्थिक आधार पर स्वर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण दिया।
          

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