*भारतीय समाज, राजनीति और संस्कृति पर अनूठी अंतर्दृष्टि पेश करती अतुल मलिकराम की नई किताब 'दिल-विल'*

*भारतीय समाज, राजनीति और संस्कृति पर अनूठी अंतर्दृष्टि पेश करती अतुल मलिकराम की नई किताब 'दिल-विल'*

भारतीय राजनीतिक रणनीतिकार, समाजसेवी और पीआर कंसल्टेंट अतुल मलिकराम ने अपनी नई किताब 'दिल विल' के माध्यम से समाज, राजनीति व संस्कृति से जुड़े विभिन्न विषयों पर अपने गहरे विचार और अनुभव पेश किये हैं। यह किताब उनकी पहले से प्रकाशित किताब 'दिल से' और 'गल्लां दिल दी' की श्रृंखला के विस्तार के रूप में है, जिसे उन्होंने सच्चिदानंद साईनाथ महाराज को समर्पित किया है, जिनके आशीर्वाद से उन्हें जीवन की ठोकरों से उबरने का साहस और विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने का हौसला मिला है। 

'दिल विल' पाठकों को भारतीय सामाजिक रूढ़ियों के साथ-साथ सांस्कृतिक और राजनीतिक पहलुओं पर भी गहन समझ देने का प्रयास करती है। अतुल ने इस किताब में अपने राजनीतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत अनुभवों को बेहद सरल और स्पष्ट शब्दों में व्यक्त किया है। जिसके अंतर्गत वह विधानसभा चुनाव में युवाओं की भागीदारी, मध्य प्रदेश में तीसरे दल की भूमिका, एससी एसटी मतों की रणनीति और चुनावों पर होने वाले खर्चों जैसे मुद्दों पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। इसके साथ ही, वह आधुनिक भारत के निर्माताओं, जेल में अपराधियों की उत्पत्ति और छोटे राज्यों के गठन जैसे विषयों पर भी प्रकाश डालते हैं।

शिक्षा के महत्व पर भी 'दिल विल' में विशेष रूप से बात की गई है। अतुल मलिकराम ने शिक्षा के सही मायनों, शिक्षित महिलाओं के समाज में योगदान, और ऑनलाइन शिक्षा के साथ शिक्षा के क्षेत्र में सुधारों की आवश्यकता पर अपने विचार पेश किये हैं, जो न केवल उनके बल्कि पाठकों के दिलों की बात को भी शब्दों में बयान करते हुए मालूम पड़ते हैं। किताब में बलात्कार जैसी गंभीर समस्या को एक मानसिक बीमारी के रूप में बताया गया है, और साथ ही 'दो वक्त की रोटी', 'काला अक्षर इंसान बराबर' जैसे लेखों के माध्यम से सामाजिक चुनौतियों पर भी रोशनी डालने की कोशिश की गई है।

किताब के व्यवसायिक खंड में, मलिकराम ने पीआर व्यवसाय के उन पहलुओं पर चर्चा की है जो किसी विश्वविद्यालय की चारदीवारी में नहीं सीखे जा सकते। 'मैं हूँ न', 'चाय की चुस्की और मजबूत सम्बन्ध', 'क्रॉस-कंसल्टेंसी कोलेबरेशन' जैसे लेख इस बात का प्रमाण हैं कि उन्होंने अपने पेशेवर अनुभवों को बड़े सजीव तरीके से पेश किया है।

कुल मिलाकर, 'दिल विल' न केवल एक किताब है, बल्कि भारतीय समाज, राजनीति, और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति एक दर्पण का कार्य करती है। यह किताब उन पाठकों के लिए अनिवार्य कही जा सकती है जो सामाजिक पहलुओं, राजनीतिक दृष्टिकोण और सांस्कृतिक विषयों में गहरी रूचि रखते हैं, और सिक्के के दूसरे पहलु को समझने के लिए उत्सुक रहते हैं।

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