भारतीय जापानी कार्यशाला में दिखाईं क्रांतिकारी तकनीक
*दिल के मामले में एक क्रांति*
पटना, 17 जुलाई 2024: खुद को दुनिया भर में डायबिटीज की राजधानी बना चुका भारत अब धीरे-धीरे हृदय की बीमारियों में भी अव्वल बनने की ओर बढ़ रहा है। आधुनिक भारतीय नागरिकों की जीवनशैली में शामिल धूम्रपान, अस्वास्थ्यकर भोजन और तनाव जैसे तत्वों के कारण दिल की बीमारियों की आशंका बढ़ती जा रही है।
इस कठोर सच्चाई के बीच युवा भारतीयों के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में हुआ विकास आशा की एक किरण बन कर आया है, जिसमें ज्यादा प्रभावशाली और कम चीरफाड़ वाली चिकित्सा की प्रक्रिया शामिल है। जापान में याओ टोकुशुकाई जनरल अस्पताल में कार्डियोवैस्कुलर विभाग के निदेशक डॉ. कोशी मात्सुओ ने आईजीआईएमएस, पटना के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. रवि विष्णु प्रसाद और हार्ट हॉस्पिटल पटना के इंटरवेंशनल कॉर्डियोलॉजिस्ट-कंसल्टेंट डॉ. आशीष कुमार झा ने इसके बारे में मीडिया को जानकारी दी।
इस क्षेत्र में सालों का अनुभव रखने वाले जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ अगले दो दिनों में पटना में होने वाली कई उच्च रिस्क वाली प्रक्रिया में अपनी विशेषज्ञता के जरिए योगदान देंगे। क्रोनिक टोटल अकुल्शन (सीटीओ) में उनकी विशेषज्ञता है, जो कि तीन महीने से अधिक समय से कोरोनरी आर्टरी में पूरी तरह से होने वाला ब्लॉकेज है। आमतौर पर सीटीओ के गंभीर मामलों में बाईपास सर्जरी और ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है, डॉ. कोशी मात्सुओ दुनिया के उन गिने-चुने कॉर्डियोलॉजिस्ट में से हैं, जिनको सीटीओ पीसीआई (क्रॉनिक टोटल अकुल्शन-पर्काशनस कोरोनरी इंटरवेंशन) में महारत हासिल है, जो एक कम चीरफाड़ वाली प्रक्रिया और सर्जरी की परेशानियों से बचाते हुए बाईपास सर्जरी जैसा ही नतीजा देने में सक्षम है। यह एंजियोप्लास्टी का ही अत्याधुनिक रूप है, जिसमें एक निश्चित तकनीक के साथ ही साथ विशेष हार्डवेयर की जरूरत होती है। इस तकनीक की शुरुआत जापानियों ने की है।
डॉ. रवि विष्णु ने कहा, इस प्रक्रिया के जरिए सीने में दर्द को खत्म कर दिल की कार्यशैली को सुधारने का लाभ तो मिलता ही है, साथ ही हार्ट अटैक के कारण भविष्य में होने वाले नुकसान से बचाने के लिए भी इससे तंत्र विकसित हो जाता है।
डॉ. आशीष कुमार झा ने कहा, यह प्रक्रिया आमतौर पर बाईपास सर्जरी के दौरान होने वाले स्ट्रोक के रिस्क को भी कम करता है। बाईपास के दौरान इस बात का रिस्क रहता है कि ब्लड क्लॉट्स ब्रेन में जाकर स्ट्रोक उत्पन्न कर दें। इस तरीके में इसका रिस्क भी काफी कम होता है।
ज्यादा से ज्यादा डॉक्टरों को इस प्रक्रिया में माहिर बनाने के लिए डॉ. कोशी मात्सुओ कार्यशालाओं का भी आयोजन कर रहे हैं। देश में सीटीओ पीसीओ में ज्यादा से ज्यादा डॉक्टरों को प्रशिक्षण देने की जरूरत पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, भारत में बहुत से ऐसे मरीज हैं, जिनको सीटीओ पीसीआई से लाभ मिल सकता है, इसलिए और अधिक डॉक्टरों को इसे सीखना चाहिए।
डॉ. रवि विष्णु ने कहा कि हाल के वर्षों में पीसीआई के प्रति जागरूकता बढ़ी है और इसके मामले में रिकवरी का समय बेहद कम होने के कारण मरीज भी इसे प्राथमिकता देते हैं. इसके लिए अस्पताल में दो से तीन दिन ही रहना पड़ता है और इसके बाद मरीज इस हाल में हो जाता है कि वह खुद चलकर जाता है।
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