*संयुक्त किसान मोर्चा की 7-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल बक्सर जिला के चौसा प्रखंड में 20 मार्च 2024 को किसानों पर हुए बर्बर पुलिसिया दमन का जायजा लेने पहुंची*

*संयुक्त किसान मोर्चा की 7-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल बक्सर जिला के चौसा प्रखंड में 20 मार्च 2024 को किसानों पर हुए बर्बर पुलिसिया दमन का जायजा लेने पहुंची*


 8 अप्रैल 2024 | पटना, बिहार*

*संयुक्त किसान मोर्चा इस हिंसक दमन में शामिल पुलिस और प्रशासन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करता है और इस मामले की न्यायिक जांच की मांग करता है*


6और7 अप्रैल 2024 को दो दिवसीय संयुक्त किसान मोर्चा, बिहार इकाई की एक 7-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल बक्सर जिला के चौसा प्रखंड में 20 मार्च 2024 को किसानों पर हुए पुलिसिया दमन का जायजा लेने पहुंची। इस प्रतिनिधिमंडल में अखिल भारतीय किसान महासभा से राज्य सचिव उमेश सिंह और बक्सर जिला सचिव रामदेव सिंह, बिहार राज्य किसान सभा (जमाल रोड) के पटना राज्य कोषाध्य्क्ष सोना लाल प्रसाद और राज्य सह-सचिव मोहम्मद सत्तार अंसारी, अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संगठन के इन्द्रदेव राय, अखिल भारतीय खेत मजदूर किसान सभा के प्रांतीय सचिव अशोक बैठा, जय किसान आंदोलन के ऋषि आनंद, किसान एकता मंच के संयोजक उमेश शर्मा शामिल थे।

  संयुक्त किसान मोर्चा का यह जांच दल आज पटना लौट कर प्रेस को विज्ञप्ति के जरिए यह जानकारी दी

कि बक्सर जिला के चौसा प्रखंड में सतलुज जल विद्युत निगम के 1320 मेगावाट के कोयला बिजली संयंत्र का शिलान्यास 9 मार्च 2019 को किया गया था। 11,000 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे की इस परियोजना के लिए राज्य सरकार ने किसानों से 1064 एकड़ भूमि अधिग्रहण किया। हालांकि, इस प्रक्रिया में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार कानून, 2013 का कहीं पालन नहीं किया गया। इस कानून के मुताबिक भूमि अधिग्रहण के बदले ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार मूल्य का चार गुना मुआवजा, 80 प्रतिशत विस्थापित लोगों की सहमति, एवं पुनर्वास और पुनर्स्थापन, सहित अन्य प्रावधान शामिल है।


इसके अलावा रेल कॉरिडर और वॉटर पाइपलाइन परियोजना के लिए 250 एकड़ भूमि अधिग्रहण की जानी है। किसानों के मुताबिक इसके लिए बिना उनकी सहमति के जमीन अधिग्रहित की जा रही है।


चौसा के किसान अपनी जमीन का उचित मुआवजा, रोजगार, पुनर्वास और पुनर्स्थापन की मांगों को लेकर लम्बे समय से प्रदर्शनरत हैं। 17 अक्टूबर 2022 से किसान चौसा में अनिश्चितकालीन धरना पर बैठे हैं।


हालांकि, सरकार का रवैया किसानों की मांगों को लेकर उदासीन रहा है। किसानों की जायज़ मांगों को स्वीकार करने के बजाय उनके विरोध को दबाने की बार-बार कोशिश की गई है। पिछले वर्ष, जनवरी में, किसानों को पुलिसिया दमन का सामना करना पड़ा था। प्रशासन द्वारा किसानों को डराने धमकाने की कोशिश की गई है। कई किसानों को विरोध के लिए जेल जाना पड़ा है। कई भय से अपना घर छोड़ चुके हैं। प्रशासन ने धरना को बंद करवाने के लिए 14 मार्च को धारा 144 लगा दिया है। 

20 मार्च 2024 को एक हिंसात्मक दमन की कार्रवाई में पुलिस और प्रशासन ने चौसा के तीन गांव — बनारपुर, मोहनपुड़ा, कोचाढ़ी — में संध्या पांच बजे घरों में घुस कर महिलाओं, बच्चों, और बुजुर्गों सहित अन्य किसानों के साथ बेरहमी से मार पीट की। छोटे छोटे बच्चे से लेकर अस्सी वर्ष के महिला बुजुर्ग तक के हाथ पांव तोड़ डाले। घरों को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर भारी लूट पाट को अंजाम दिया गया। इस क्रूर और भीषण कार्रवाई में कई लोग गंभीर रूप से जख़्मी हुए। निर्दोष बच्चों और बुजुर्गों को भी बुरी तरह पीटा गया है। पुलिस ने घरों में घुसकर तोड़-फोड़ और गाली-गलौज की। मवेशियों (गायों,भैंस और कुत्ते तक को)

को भी पीटा गया। इन पशुओं के शरीर पर अभी तक लाठी का दाग मौजूद है। गांव के लोगों ने पुलिस पर लूट-पाट का भी आरोप लगाया है। 


कुल 31 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वहीं 37 लोग जख्मी हैं। कई घायल पुलिस और राज्य प्रशासन द्वारा आपराधिक कार्यवाही के डर से निजी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। पूरे क्षेत्र में भय और आतंक का माहौल है। अभी भी हर रोज रात्रि में पुलिस की छापामारी जारी है। पुरुष लोग अधिकांश रात्रि में गांव में नही रहते हैं। कई परिवार तो पूरा का पूरा पलायन कर चुके है। कई ने तो कहा की इतनी जिल्लत कभी सपनों में भी नही सोचा था अब तो आत्म हत्या कर लेने का मन करता है। 

प्रशासनिक क्रूरता को जांच दल द्वारा जारी फोटोग्राफ व लोगों के दर्द के बयान का वी डी ओ में देखा जा सकता है।

इस कार्रवाई में मानवाधिकार का घोर उल्लंघन किया गया है। सरकार द्वारा आम नागरिकों के विरोध के अधिकार का हनन किया गया है। वहीं, किसानों को उनकी जायज मांगों और संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने के लिए राज शक्ति का प्रयोग किया गया है।

  

संयुक्त किसान मोर्चा इस हिंसक दमन में शामिल पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करता है और इस मामले की न्यायिक जांच की मांग करता है। संयुक्त किसान मोर्चा राज्य और केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों की निंदा करता है, और किसानों को उनका जायज हक देने की अपील करता है।


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