*शिव और शक्ति के अभिसरण पर्व को महाशिवरात्रि कहते हैं*

*शिव और शक्ति के अभिसरण पर्व को महाशिवरात्रि कहते हैं*



जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 08 मार्च, 2024 ::


फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिव और शक्ति के अभिसरण का पर्व होता है, जिसे हमलोग महाशिवरात्रि के नाम से जानते है। शास्रों में महाशिवरात्रि का वर्णन शिव को समाधि से जाग्रत होकर सृष्टि लीला में प्रवृत होने तथा शिव पार्वती के विवाह दिवस के रूप में मनाया जाता है। ज्योतिषाचार्य का माने तो शास्त्रों के अनुसार इस व्रत के करने से उन्हें एक हजार अश्वमेध यज्ञ एवं सौ वाजपेय यज्ञ के पुण्य फल की प्राप्ति होती है। 


भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे और शिव लिङ्ग की पहलीबार पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। इसीलिए महाशिवरात्रि को भगवान शिव के जन्म दिन के रूप में भी जाना जाता है। 


शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है। हिन्दु पुराणों में शिवरात्रि व्रत का उल्लेख हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था। 


मान्यता है कि महाशिवरात्रि के बाद से प्रत्येक माह होने वाली शिवरात्रि को करने से मोक्ष की प्राप्ति होता है और अगर चार संकल्पों के साथ भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देहत्याग का नियम के साथ पालन किया जाए तो मोक्ष अवश्य ही प्राप्त होता है। जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महाशिवरात्रि से आरम्भ कर सकते हैं और एक साल तक कायम रख सकते हैं। यह माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा द्वारा कोई भी मुश्किल और असम्भव कार्य भी पूरे किये जा सकते हैं। अविवाहित महिलाएँ इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएँ अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाये रखने के लिए करती है।


आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना अति आवश्यक होता है। इसलिए महाशिवरात्रि को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए। रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्रोत का पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए। संतों का कहना है कि पांचों इंद्रियों द्वारा आत्मा पर जो विकार छा जाता है वह जागृत हो जाता है। 


शिवपुराण के अनुसार, महादेव के क्रोध की ज्वाला को शान्त करने के लिए बेलपत्र से शिवलिंग पर पानी छिड़कने और उन्हें ठंडे जल से स्नान कराना चाहिए।  शुभ जागृत करने के लिए शिवलिंग पर चन्दन लगाना चाहिए,  कष्ट और दुःख दूर करने के लिए धूप जलाना चाहिए, अज्ञानता के अंधेरे को मिटा कर शिक्षा की रौशनी प्रदान करने के लिए दिया जलाना चाहिए।


भगवान शिव के लिए उपवास रखने के संदर्भ में मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल नामक विष पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था की जहर से उनका गला नीला हो गया था और वह  'नीलकंठ' कहलाए। जहर के प्रभाव को खतमकरने के लिए चिकित्सकों ने भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। भगवान शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे। इसप्रकार हलाहल विष से  भगवान शिव ने दुनिया को बचाया। तब से भक्त उपवास रखते  है।

       

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