*भारत रंग महोत्सव के तहत थिएटर फेस्टिवल में चौथे दिन ज़ुल्फिकार जिन्ना द्वारा लिखित बंगला नाटक ‘चार्जोपोदेर कोबि’ का मंचन*

*भारत रंग महोत्सव के तहत थिएटर फेस्टिवल में चौथे दिन ज़ुल्फिकार जिन्ना द्वारा लिखित बंगला नाटक ‘चार्जोपोदेर कोबि’ का मंचन*

 

पटना 17 फ़रवरी 2024: भारतीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा), दिल्ली के तत्वाधान में पटना में भारत रंग महोत्सव के तहत थिएटर फेस्टिवल के चौथे दिन, 17 फरवरी को पटना के कालीदास रंगालय में प्रसिद्ध नाटककार जुल्फिकार जिन्ना द्वारा लिखित बंगला नाटक ‘चार्जोपोदेर कोबि’ का मंचन किया गया। इसके निर्देशक स्वप्नदीप सेनगुप्ता हैं तथा इसे बड़ानगर भूमिसुतो थिएटर, पष्चिम बंगाल समूह ने तैयार किया है। नाटक की प्रस्तुति बंगला भाषा में की गयी है।


नाटक का सारांषः


कान्हापा एक वंचित व्यक्ति जैसे दिखाई पड़ते थे। वह एक अद्भुत पदावली लेखक थे और अपने सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए पदावली कीर्तन गाना चाहते थे। लेकिन अपनी इच्छा पूरी करना उनके लिए इतना आसान नहीं था, क्योंकि तथाकथित उच्च वर्ग के ब्राह्मणों ने उनकी भाषा को कभी स्वीकार नहीं किया। वे इसे निम्न वर्ग की भाषा कहते थे। कान्हापा के कीर्तन को कान्हापद नाम दिया गया, क्योंकि वह उस समय का मील का पत्थर बन गया और बाद में चार्यापद के रूप में विख्यात हुआ। उस समय वहाँ के राजा बौद्ध थे, जो आम जनता के प्रति बहुत दयालु थे। लेकिन उनके ब्राह्मण मंत्री राजा से अधिक शक्तिशाली थे और वे निम्न वर्ग के लोगों के साथ-साथ उनकी भाषा पर भी प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते थे। मुख्यमंत्री रथिनार्ज ने कान्हा को अपमानित किया। आम लोग कान्हा से प्रेम करते थे, इसलिए जैसे ही मंत्री ने कान्हा को गिरफ़्तार किया, इसका विरोध शुरू हो गया। एक बहादुर लड़की और कान्हा की प्रेमिका डोंबी को मौत की सजा सजा दी गई। ‘चार्यापद’ में यह आंदोलन पहली बार मातृभाषा के पृथक अस्तित्व के लिए हुआ। बाँग्ला भाषा का जन्म चार्वापद से ही हुआ और 1000 साल पहले के इस आंदोलन ने आंदोलनों की श्रृंखला की शुरुआत करते हुए 1952 में बाँग्लादेश में और 1961 में बराक घाटी असम में श्भाषा आंदोलनश् को जन्म दिया। हमारी जड़ों को याद करने और हमारी भाषाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए इस संगीत नाटक में वंचित लोगों की भाषा को प्राथमिकता दी गई है।

पटना के कालीदास रंगालय में भारत रंग महोत्सव के तहत थिएटर फेस्टिवल का आरंभ 14 फरवरी को साजिदा साजी द्वारा निर्देशित ‘दोजख’ नाटक की प्रस्तुति के साथ हुआ। 19 फरवरी तक चलने वाले इस समारोह का उद्घाटन कला एवं संस्कृति विभाग की अपर मुख्य सचिव हरजोत कौर बमराह ने द्वीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर मुख सूचना आयुक्त श्री त्रिपुरारी शरण सिंह, श्री हरिकेश सुलभ तथा राष्टीय नाट्य विद्यालय के फैकल्टी मेंबर आसिफ अली हैदर खान भी अतिथि के रूप में उपस्थित थे।


इस बार भारत रंग महोत्सव (बीआरएम) अपना 25वां वर्ष मना रहा है। ये महोत्सव 1 फ़रवरी से 21 फ़रवरी तक भारत के 15 शहरों में आयोजित किया जा रहा है, जिसमें दिल्ली, मुंबई, पुणे, भुज, विजयवाड़ा, जोधपुर, डिब्रूगढ़, भुवनेश्वर, पटना, रामनगर और श्रीनगर आदि शहर शामिल हैं. इस 21 दिवसीय थिएटर फेस्टिवल में 150 से अधिक प्रदर्शन, कार्यशालाएं, चर्चाएं और मास्टरक्लास शामिल हैं। इस वर्ष भारत रंग महोसव की रजत जयंती मनाई जा रही है। इस वर्ष भारंगम की विषयवस्तु ‘वसुधैव कुटुंबकम-वंदे भारंगम्’ है। यह रंगमंच के माध्यम से वैश्विक एकता को बढ़ावा देने, सामाजिक सद्भाव को समृद्धि प्रदान करने के उद्देश्य का प्रतिरूप है। इस प्रदर्शन कला के माध्यम से विविध संस्कृतियों को एक साथ लाते हुए, एक साझा वैश्विक परिवार की भावना विकसित करने का उद्देश्य है।

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