जिलाधिकारी, पटना डॉ. चंद्रशेखर सिंह के निर्देश पर जिला आपदा प्रबंधन शाखा, पटना के तत्वावधान में सार्वजनिक स्थानों पर नियमित तौर पर अलाव जलाया जा रहा है,

जिलाधिकारी, पटना डॉ. चंद्रशेखर सिंह के निर्देश पर जिला आपदा प्रबंधन शाखा, पटना के तत्वावधान में सार्वजनिक स्थानों पर नियमित तौर पर अलाव जलाया जा रहा है,

 

दिनांक 24.01.2024

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 बढ़ते ठंड के मद्देनजर जिलाधिकारी, पटना डॉ. चंद्रशेखर सिंह के निर्देश पर जिला आपदा प्रबंधन शाखा, पटना के तत्वावधान में सार्वजनिक स्थानों पर नियमित तौर पर अलाव जलाया जा रहा है, पंचायतों में कंबल का वितरण किया जा रहा है तथा विभिन्न स्थलों पर रैन बसेरों/आश्रय घरों का संचालन किया जा रहा है।


डीएम के निदेश पर वरीय अधिकारियों द्वारा ठंड से बचाव कार्यों का लगातार अनुश्रवण किया जा रहा है। 


कई चौक-चौराहों, बाजारों, रैन बसेरों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, अस्पताल सहित भीड़-भाड़ वाले स्थलों पर अलाव जलाया जा रहा है। 


 आज पटना में 184 से अधिक स्थानों पर अलाव जलाया जा रहा है। सभी अंचल अधिकारियों द्वारा अपने-अपने क्षेत्र अंतर्गत मुख्य स्थानों पर अलाव जलाया जा रहा है।


पटना नगर निगम द्वारा शहर में 23 जगह पर स्थायी एवं अस्थायी रैन बसेरा तथा आश्रय स्थल का संचालन किया जा रहा है जिसमें अभी तक आश्रय लेने वालों की संख्या  17,818 है। रैन बसेरा में 3 शिफ्ट में केयर टेकर की तैनाती की गई है। इसके साथ ही सभी संबंधित पदाधिकारी एवं विभागों का हेल्पलाइन नंबर भी उपलब्ध कराया गया है। सभी रैन बसेरा में एक विशेष फीडबैक का रजिस्टर भी है जहां आश्रय लेने वाले लोग अपना फीडबैक दे सकते हैं। नगर निगम द्वारा पाँच विशेष रैन बसेरे में महिलाओं के लिए भी विशेष बेड की व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही यहां केयरटेकर के रूप में महिला पदाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति भी की गई है। रैन बसेरा में आमजन के लिए निःशुल्क रहने की व्यवस्था की गई है। सभी रैन बसेरों में कार्पेट , चौकी, गद्दा, चादर, तकिया, तकिया कवर, कम्बल, कम्बल कवर, अग्निशामक यंत्र, ट्रंक, पीने का पानी,  सीसीटीवी कैमरा, रजिस्टर ,टेबल,  कुर्सी  एवं ऐनक की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।


ज़िलाधिकारी के निदेश पर सहायक निदेशक, जिला सामाजिक सुरक्षा कोषांग द्वारा 4,635 कंबल प्रखंड विकास पदाधिकारियों एवं अनुमंडल पदाधिकारियों को उपलब्ध कराया गया है। सभी पंचायतों में तीव्र गति से कंबल वितरण का कार्य चल रहा है। डीएम डॉ सिंह ने *प्रत्येक पंचायत* में न्यूनतम 10 कंबल का वितरण करने का निदेश दिया है। जरूरतमंदों यथा रिक्शा चालकों, ऑटो चालकों, दिव्यांगजन, वृद्धजन के बीच कंबल का वितरण करने का निदेश दिया गया है।


*ज़िलाधिकारी द्वारा सभी अंचल अधिकारियों एवं नगर कार्यपालक पदाधिकारियों* को अपने-अपने क्षेत्र अंतर्गत मुख्य स्थानों पर नियमित तौर पर अलाव की व्यवस्था करने एवं रैन बसेरों/ आश्रय घरों का संचालन करने का निर्देश दिया गया है ताकि ठंड के कारण किसी को कोई समस्या ना हो।


*डीएम डॉ सिंह ने आवश्यकतानुसार अलाव स्थलों तथा रैन बसेरों/ आश्रय घरों की संख्या बढ़ाने का निर्देश दिया है*। उन्होंने सभी अनुमंडल पदाधिकारियों को इसका अनुश्रवण करने का निर्देश दिया है।


*डीएम डॉ सिंह ने आम जनता से भी बढ़ते ठंड के मद्देनजर एडवायजरी का अनुपालन करने का आह्वान किया है।* मौसम विज्ञान केन्द्र, पटना से आज जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार राज्य के अधिकांश भागों के निचले क्षोभमंडल में बर्फीली ठंडी पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी हवा का प्रवाह जारी है, जिसके कारण 12 जनवरी, 2024 से राज्य में शीत दिवस/अति शीत दिवस जैसी परिस्थिति बनी हुई है। आज के संख्यात्मक मॉडल के विश्लेषण के अनुसार एक ताजा पश्चिमी विक्षोभ 25 जनवरी से और दूसरा 27 जनवरी, 2024 से पश्चिमी हिमालय क्षेत्र को प्रभावित करने की संभावना है जिसके प्रभाव से राज्य के अधिकांश भागो में 25 जनवरी से 29 जनवरी, 2024 के दौरान अतिशीत दिवस/शीत दिवस जैसी स्थिति जारी रहने की संभावना है। इसके साथ ही अगले 5 दिनों के दौरान राज्य के कुछ जगहों में घने कोहरे का भी पूर्वानुमान है। इसके आलोक में ज़िलाधिकारी द्वारा एहतियात बरतने की सलाह दी गयी है।


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शीत-घात: बचाव से लिए क्या करें और क्या न करें

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१.  शीत-घात से पहले

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* स्थानीय मौसम पूर्वानुमान के लिए रेडियो/टीवी/समाचार पत्र जैसे सभी मीडिया प्रकाशन का ध्यान रखें ताकि यह पता चल सके कि आगामी दिनों में शीत लहर की संभावना है या नहीं।


* सर्दियों लिए पर्याप्त कपड़ों का स्टॉक करें। कपड़ों की कई परतें अधिक सहायक होती है। 


* आपातकालीन आपूर्ति जैसे भोजन, पानी, इंधन, बैटरी, चार्जर, आपातकालीन प्रकाश, और साधारण दवाएं तैयार रखंे।


* घर में ठंडी हवा के प्रवेश रोकने हेतु दरवाजों तथा खिड़कियों को ठीक से बंद रखे।


* फ्लू, नाक बहना/भरी नाक या नाक बंद जैसी विभिन्न बीमारियों की संभावना आमतौर पर ठंड में लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण होती है।


* इस तरह के लक्षणों से बचाव हेतु आवश्यक सावधानी बरतें तथा स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों या डॉक्टर से परामर्श करें।


२. शीत-घात के दौरान

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* मौसम की जानकारी तथा आपातकालीन प्रक्रिया की जानकारी का बारीकी से पालन करें एवं शासकीय एजेंसियों की सलाह के अनुसार कार्य करें।


* जितना हो सके घर के अंदर रहें और ठंडी हवा, बारिश, बर्फ के संपर्क को रोकने के लिए कम यात्रा करें।


* एक परत वाले कपड़े की जगह ढीली फिटिंग वाले परतदार हल्के कपड़े, हवा रोधी/सूती का बाहरी आवरण तथा गर्म ऊनी भीतरी कपड़े पहने। तंग कपड़े खून के बहाव को रोकते हैं इनसे बचें।


* खुद को सूखा रखें। शरीर की गरमाहट बनाये रखने हेतु अपने सिर, गर्दन, हाथ और पैर की उँगलियों को पर्याप्त रूप से ढके। गीले कपड़े तुरंत बदलें।


* बिना उँगली वाले दस्ताने (Mitten) का प्रयोग करे। ये दस्ताने उँगलियों की गरमाहट बचाये रखने में मदद करते हैं। अपने फेफड़ों को बचाने के लिए मुँह तथा नाक ढक कर रखें।


* शरीर की गर्मी बचाये रखने के लिए टोपी/हैट, मफलर तथा आवरण युक्त एवं जलरोधी जूतों का प्रयोग करें। सिर को ढकें क्योंकि सिर के उपरी सतह से शरीर की गर्मी की हानि होती है। 


* स्वास्थ्यवर्धक भोजन करें।


* पर्याप्त रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए विटामिन-सी से भरपूर फल और सब्ज़ियाँ खाएं।


* गर्म तरल पदार्थ नियमित रूप से पीएं, इससे ठंड से लड़ने के लिए शरीर की गर्मी बनी रहेगी।


* तेल, पेट्रोलियम जेली या बॉडी क्रीम से नियमित रूप से अपनी त्वचा को मॉइस्चराइज करें।


* बुजुर्ग लोगों, नवजात शिशुओं तथा बच्चों का ध्यान रखें एवं ऐसे पड़ोसी जो अकेले रहते हैं विशेषकर बुजुर्ग लोगों का हाल-चाल पूछते रहें।


* आवश्यकता अनुसार जरूरी सामग्री का भंडारण करें। जरूरी मात्रा में पानी भी रखें, पाईप में पानी जम सकता है।


* ऊर्जा बचाएँ। आवश्यकता अनुसार रूम हीटर का उपयोग कमरे के अंदर ही करें।


* रूम हीटर के प्रयोग के दौरान पर्याप्त हवा निकासी का प्रबंध रखें।


* कमरों को गर्म करने के लिए कोयले का प्रयोग न करें। अगर कोयले तथा लकड़ी को जलाना आवश्यक है तो उचित चिमनी का प्रयोग करें। बंद कमरों में कोयले को जलाना खतरनाक हो सकता है क्योकि यह कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैस पैदा करती है जो किसी की जान भी ले सकती है।


* गैर औद्योगिक भवनों में गर्मी के बचाव हेतु गाइडलाइन अनुसार रोधन का उपयोग करें।


* ज्यादा समय तक ठंड के संपर्क में न रहें ।


* शीत में क्षतिग्रस्त हिस्सों की मालिश न करें। यह त्वचा को और नुकसान पहुँचा सकता है।


* अचेतावस्था में किसी को कोई तरल पदार्थ न दें।


* शीत लहर के संपर्क में आने पर शीत से प्रभावित अंगों के लक्षणों जैसे कि संवेदनशून्यता (Numbness) सफेद अथवा पीले पड़े हाथ एवं पैरों की उँगलियों, कान की लौ तथा नाक की उपरी सतह का ध्यान रखें।


* शीत लहर के अत्यधिक प्रभाव से त्वचा पीली, सख्त एवं संवेदनशून्य तथा लाल फफोले पड़ सकते हैं। यह एक गंभीर स्थिति होती है जिसे गैंगरीन भी कहा जाता है। यह अपरिवर्तनीय होती है। अतः शीत लहर के पहले लक्षण पर ही चिकित्सक की सलाह लें। तब तक अंगों को तत्काल गर्म करने का प्रयास करें। ज्यादा गर्मी से इन अंगों के जलने की संभावना होती है।


* शीत से प्रभावित अंगों को गुनगुने पानी (गर्म पानी नहीं) से इलाज करें। इसका तापमान इतना रखें कि यह शरीर के अन्य हिस्से के लिए आरामदायक हो। कंपकंपी को नज़रअंदाज़ ना करें। यह शरीर से गर्मी के ह्रास का पहला संकेत है कि तत्काल गर्मी प्राप्त करने लिए भवन के अंदर चले जाएँ।


* प्रभावित व्यक्ति को गर्म स्थान पर ले जाएँ तथा उनके गीले तथा ठंडे कपड़ों को बदलंे।


* प्रभावित व्यक्ति को त्वचा से त्वचा मिलाकर, कंबल, कपड़ों तौलियों तथा चद्दरों की परतों द्वारा गर्म करें । उसको हीटर अथवा आग के आसपास रखें।


* उसको गर्म पेय पदार्थ दें जिससे शरीर में गरमाहट बनाए रखने में मदद मिले।


* शीत लहर के प्रभाव से होईपोथर्मिया हो सकता है। शरीर में गर्मी के ह्रास से कपकंपी, बोलने में दिक्कत, अनिंद्रा, मांसपेशियों में अकडन, सांस लेने में दिक्कत/निश्चेतन की अवस्था हो सकती है। होईपोथर्मिया एक खतरनाक अवस्था है जिसमें तत्काल चिकित्सीय सहायता की अवश्यकता है।


* शीत लहर/हाइपोथर्मिया से प्रभावित को तत्काल चिकित्सीय सहायता प्रदान कराएँ।



३. कृषि संबंधित

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शीत लहर और ठंड, कोशिकाओं को भौतिक नुकसान पहुंचाती है जिससे कीट का आक्रमण तथा रोग होने से फसल बर्बाद हो सकती है। फसल के अंकुरण तथा प्रजनन के दौरान शीत लहर से काफी भौतिक विघटन होता है। इसके बढ़ने से फसलों के अंकुरण, वृद्धि, पुष्पण तथा पैदावार पर असर पड़ता है।

 करने योग्य उपाय

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* बोर्डिऑक्स मिश्रण या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव कर शीत-घात के कारण रोग संक्रमण से बचाव करें। शीत लहर के बाद फास्फोरस (P) और पोटेशियम (K) उर्वरकों का उपयोग जड़ वृद्धि को सक्रिय करेगा और फसल को ठंड की घात से तेजी से उबरने में मदद करेगा।


* शीत लहर के दौरान प्रकाश और लगातार सतह सिंचाई प्रदान करें। पानी की सिंचाई से उत्पन्न विशिष्ट गर्मी पौधों को शीत-घात से बचाता है।


* स्प्रिंकलर सिंचाई से पौधों में शीत-घात को कम करने में भी मदद मिलेगी क्योंकि पानी की बूंदों का संघनन, आसपास में गर्मी छोड़ता है।


* शीत-घात/तुषार प्रतिरोधी पौधों/फसलों/किस्मों की खेती करें।


* बारहमासी बगीचों के बीच अंतर्वतीय फसल उगाएँ।


* सब्जियों की मिश्रित फसल, अर्थात, टमाटर, बैंगन को सरसों/मटर की तरह ऊँची फसल के साथ लगाने से ठंडी हवाओं के खिलाफ आवश्यक आश्रय प्रदान करेगा।


* पौधों के मुख्य तने के पास मिट्टी को काली या चमकीली प्लास्टिक शीट के साथ ढकें। यह विकिरण अवशोषित कर मिट्टी को ठंडी में भी गर्म बनाए रखता है। प्लास्टिक उपलब्ध न होने की दशा में घास-फूस, सरकंडे की घास या जैविक वस्तुओं से मिट्टी को ढंककर फसलों को शीत-घात से बचाया जा सकता है।


* हवा अवरोध/वातरोधक सुरक्षा पट्टी के लिए पौध रोपण, हवा की गति को कम करके शीत-घात से फसलों को बचाते हैं।


* बगीचे में धुआँ करके भी फसलों को शीत-घात से बचाया जा सकता है।


४. पशुपालन/पशुधन संबंधित

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शीत लहरों के दौरान जानवरों और पशुधन को जीविका के लिए अधिक भोजन की आवश्यकता होती है क्योंकि ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ जाती है। तापमान में अत्यधिक भिन्नता भैंसों/मवेशियों के प्रजनन दर को प्रभावित कर सकती है।


करने योग्य उपाय

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* ठंडी हवाओं के सीधे संपर्क से बचने के लिए रात के दौरान सभी पशु आवास को सभी दिशाओं से ढकंे।


* ठंड के दिनों में छोटे पशुओं को ढक कर रखें।


* दुधारू पशु एवं कुक्कुट को ठंड से बचाने हेतु अन्दर रखें।


* पशुधन के आहार एवं खान-पान में वृद्धि करें।


* उच्च गुणवत्ता वाले चारा या चारागाहों का उपयोग करें।


* वसा की खुराक प्रदान करें, आहार सेवन तथा उनके चबाने के व्यवहार का ध्यान रखें। 


* जलवायु-अनुरूप शेड का निर्माण करें जो सर्दियों के दौरान अधिकतम सूरज की रोशनी और गर्मियों के दौरान कम विकिरण की अनुमति देते हैं।


* इन स्थितियों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त पशु नस्लों का चयन करें।


*सर्दियों के दौरान जानवरों के बैठने हेतु सूखे भूसे रखें।


* पालतू जानवरों, पशुधन को शीत लहर से बचाने हेतु भवन के अंदर रखें तथा उन्हें कम्बल से ढकें।


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