लेट्स इंस्पायर बिहार गार्गी अध्याय, तथा प्रभात वाणी वारिधि न्यास के संयुक्त तत्वावधान में पुस्तक का लोकार्पण किया गया
10/4/23 को संध्या 4 बजे महाकवि केदारनाथ मिश्र "प्रभात" जी की 39 वीं पुण्यस्मृति में मुख्य अतिथि आई. पी. एस. श्री विकास वैभव(आई. जी )के कर कमलों से मोहतरमा कहकशाँ तौहीद जी की दो किताबों( गुल्हा-ए-रंग और ज़रा सी ज़िंदगी का इजरा) लोकार्पण हुआ। अनेक गणमान्य लोगों में श्री एस. बी. राय जी, बी. डी. पब्लिक स्कूल के निदेशक, जनाब अलीमुल्लाह हाली जी, मगध वि. वि. के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर एवं मशहूर शायर, जनाब मुश्ताक अहमद नूरी जी, उर्दू एकाडमी के अवकाश प्राप्त निदेशक, जनाब शमीम कासमी जी, मशहूर शायर, जनाब सफदर इमाम क़ादरी जी, उर्दू विभाग के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर एवं मशहूर शायर, आचार्य डाॅ. उमाशंकर सिंह जी, न्यास के अध्यक्ष, गार्गी अध्याय की मुख्य समन्वयक डाॅ. प्रीतिबाला जी, लेट्स इंस्पायर बिहार अभियान के मुख्य समन्वयक श्री राहुल कुमार सिंह जी, श्री अभिनन्दन यादव जी, महाकवि प्रभात जी के सुपुत्र श्री मोहन मृगेंद्र जी उपस्थित हुए।
पुस्तक के लोकार्पण के साथ साथ कविता,गीत, ग़ज़ल आदि भी बिहार के युवा कवि-कवयित्रियों ने प्रस्तुत किए। *अमलेश तिवारी* ने कहा....
"मैं कवि हूँ और मेरी कल्पना अधूरी है,
प्रेम जीवन है तो अभी जीना ज़रूरी है,
धूल हूँ, रेत हूँ, बंजर खेत हूँ मैं
निर्जल जलाशय हूँ पाए बिन सेतु हूँ मैं
एक दिन बसंत आएगा आशाएँ पूरी हैं
मैं कवि हूँ और मेरी कल्पना अधूरी है।"
*संगीता मिश्रा* ने भोजपुरी में अपनी रचना सुनाकर सभागार को बिहार की मिट्टी से सराबोर कर दिया दिया......
"जब जरत रहे ढिबरी
गाँव अंजोर रहे
अब जरे लागल बिजुरी
त अंधार हो गइल
कइसे कहीं कि गाँव अब
सहर बने के ओर हो गइल।"
*अभिलाषा सिंह* ने मगही में अपनी हास्य रचना सुनाकर श्रोताओं को लोटपोट कर दिया.....
" भर दिन अपने में भनर-भनर करथुन
की करियो हम्मर त सुनबे नै करथुन
आऊ केकरो आगे त कंठे नै खुलतन
इनकर ई धौंस त हमरे पर चलतन
जइबो समझावे त हमरे से लड़थुन
की करियो हम्मर त सुनबे नै करथुन।"
*रेखा भारती मिश्रा* ने अनमोल दोहे सुनाकर खूब वाहवाही बटोरी......
"दौर मिले मुश्किल अगर
रखो हौसला पास
साँसें चलती जब तलक
छोड़ न साथी आस।।"
महाकवि केदारनाथ मिश्र "प्रभात" जी के पुत्र मोहन मृगेंद्र ने महाकवि की ही एक उत्कृष्ट रचना का पाठ किया......
"ज़िंदगी को लिए मैं खड़ा ओस में
एक क्षण तुम रुको, रोक दो कारवाँ
तुम समय हो सदा भागते ही रहे
आज तक रूप देखा तुम्हारा नहीं
टाप पड़ती सुनाई सभी चौंकते
किंतु तुमने किसी को पुकारा नहीं
ज़िंदगी को लिए मैं जड़ा ओस में
एक क्षण तुम रुको,रोक दो कारवाँ।"
मंच का संचालन महाकवि की पुत्रवधू श्रीमती नम्रता कुमारी ने किया।धन्यवाद ज्ञापन न्यास के अध्यक्ष आचार्य डाॅ. उमाशंकर सिंह ने किया।
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