बिहार में किसान सलाहकार समिति का गठन, किसानों के साथ बड़ा धोखा -  उमेश सिंह

बिहार में किसान सलाहकार समिति का गठन, किसानों के साथ बड़ा धोखा - उमेश सिंह

*अखिल भारतीय किसान महासभा के बिहार राज्य सचिव उमेश सिंह ने प्रेस को जारी अपने बयान में कहा कि *बिहार में नीतीश जी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा बिहार चुनाव से पूर्व हाल ही में जारी किसान सलाहकार समिति के गठन की प्रक्रिया को किसानों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला और एक बड़ा धोखा करार दिया है।* यह किसानों की आवाज को दबाने और किसानों के जगह पर किसान सलाहकार समितियों में एनडीए के कार्यकर्ताओं को जगह दे कर किसान सलाहकार समितियों को अपनी पार्टी 'पॉकेट समिति' बनाने की एक सोची-समझी साजिश है, जिसका हम पुरजोर विरोध करते हैं । 

 उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जारी संकल्प और कार्यान्वयन निर्देश देखने से स्पष्ट होता है कि इन समितियों का गठन किसानों को कृषि एवं कृषि के सम्बद्ध विभागों के लिए किसानों के परामर्श से विस्तृत कार्ययोजना तैयार करना तथा उनसे फीडबैक प्राप्त कर आने वाली कृषि संबंधी कठिनाइयों को दूर करना या प्रमुख प्रसार एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का प्रबंधन एवं संगठनात्मक सलाहकार के रूप में कार्य करना था न कि इन किसान सलाहकार समितियों के गठन में सरकारी अधिकारियों और सत्ताधारी दल के पिछलग्गुओं,कार्यकर्ताओं जिन्हें कृषि कार्य से कुछ लेना देना नहीं है वैसे लोगों को लेकर समितियों का गठन करना। 
   उन्होंने कहा कि समिति के सदस्यों के चयन के लिए जो शर्तें रखी गई थी, पहले, इच्छुक किसान निर्धारित प्रपत्र (अनुसूची-1) व कृषि विभाग द्वारा पंजीकृत किसान, कृषि / उद्यान / पशुपालन/ मत्स्पालन) में सरकारी प्रतिष्ठान से प्रशिक्षण प्राप्त, प्रखंड / जिला/ राज्य / राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार अथवा प्रशस्ति पत्र, राज्य के बाहर / अंदर परिभ्रमण, खेतों के मिट्टी की स्वास्थ्य जाँच, किसान कृषि / उद्यान /पशुपालन / मत्स्यपालन में कार्य करता हो । इन सभी प्रक्रिया को ख़तम कर व नया अनुदेश संकल्प बना दिया, जिसमें सदस्यों और अध्यक्ष का मुख्यमंत्री व कृषि मंत्री की अनुशंसा पर किया गया। नीतीश जी एक तरफ मंच से किसान प्रेम की बातें, दूसरी तरफ किसानों के अधिकार और आवाज़ पर ताला लगाते जा रहे हैं। कभी किसान सलाहकार समिति में किसानों की भूमिका होती थी, अब वहां सिर्फ एनडीए के नारे और चेहरों का कब्ज़ा करा दिया गया। किसान इस चुनाव में नीतीश जी से जवाब मांगेगा।

 उन्होंने कहा कि सबसे आपत्तिजनक बात यह है कि इन समितियों के चयन का अधिकार किसानों को देने के बजाय पूरी तरह से एनडीए को दे दिया गया है । यह पूरी तरह से समिति अलोकतांत्रिक है। यह किसानों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाली एक ऐसी समिति बनाने की कोशिश है, जिसमें किसानों की कोई भूमिका ही नहीं होगी। इससे यह स्पष्ट है कि सरकार असली किसान और उनकी मांगों को दरकिनार करना चाहती है । जो दिन-रात खून-पसीना एक कर खेती करते हैं । 

  अखिल भारतीय किसान महासभा ने सरकार को लगातार अपने आंदोलनात्मक कार्यों के माध्यम से  किसानों की समस्याओं के प्रति आगाह किया है, चाहे वह एमएसपी की कानूनी गारंटी हो, कृषि मंडियों को चालू करने का प्रश्न हो, भूमि अधिग्रहण का मामला हो या बंद पड़ी  सिंचाई परियोजनाओं का सवाल हो । कृषि पत्रकारों की सामान की बात हो। लेकिन सरकार किसानों की सुनने के बजाय ऐसे दिखावटी संगठन बनाकर केवल अपनी कॉर्पोरेट-परस्त नीतियों को लागू करने का रास्ता साफ कर रही है ।

अखिल भारतीय किसान महासभा तत्काल प्रभाव से इस तानाशाही और किसान-विरोधी चयन प्रक्रिया समिति को रद्द करने की मांग करती है।
और प्रखंड, जिला और राज्य स्तर पर समितियों का गठन लोकतांत्रिक चुनाव के माध्यम से हो।

यदि सरकार इन किसान-विरोधी समितियों को भंग कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं अपनाती है, तो अखिल भारतीय किसान महासभा पूरे राज्य में किसानों को गोलबंद कर एक बड़े आंदोलन की शुरुआत करेगी ।

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