सेवा और शिक्षा की ज्योति: रूबी कुमारी की प्रेरणादायक कहानी
बिहार के सिवान जिला में 30 अगस्त 1994 को जन्मी रूबी कुमारी का जीवन, समाज सेवा और शिक्षा के प्रति उनके निस्वार्थ समर्पण की एक प्रेरणादायक कहानी है।
शिक्षा की लौ जलाते हुए
रूबी कुमारी का सेवा भाव शुरू से ही स्पष्ट था। रॉबिनहुड आर्मी से जुड़ने के बाद, उन्होंने पटना के हज भवन के पीछे स्थित स्लम एरिया में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। शुरुआत में वे सिर्फ रविवार को जाती थीं, लेकिन बच्चों की मेहनत और सीखने की ललक देखकर उन्होंने रोजाना पैदल जाकर उन्हें पढ़ाने का फैसला किया। बिना किसी लोभ या स्वार्थ के, वे प्रतिदिन उन बच्चों के भविष्य को संवारने में जुट गईं।
महामारी में भी अविचल सेवा
कोरोना महामारी के दौरान कक्षाएं बंद होने के बावजूद, रूबी कुमारी ने अपने सेवा भाव को कम नहीं होने दिया। महामारी के बाद, उन्होंने अपनी सेवा फिर से शुरू की और इस बार भूपतिपुर के स्लम एरिया में बच्चों को पढ़ाना जारी रखा। उनके इन अथक प्रयासों का समाज पर गहरा और सकारात्मक असर हुआ। उनकी निस्वार्थ सेवा से प्रेरित होकर और भी लोग उनके साथ जुड़े, और आज उनकी एक अच्छी टीम है जो मिलकर समाज सेवा के कार्यों में जुटी हुई है।
बहुआयामी समाज सेवा
रूबी कुमारी का सेवा कार्य सिर्फ शिक्षा तक ही सीमित नहीं है। वह रक्तदान जैसे नेक कार्य में भी सक्रिय रहती हैं और लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करती हैं। इसके साथ ही, वह पौधारोपण जैसे पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं।
रूबी कुमारी आज के युवाओं के लिए एक स्पष्ट और प्रेरणादायक संदेश देती हैं: "हमेशा अपने समाज के प्रति, पर्यावरण के प्रति, देश सेवा के प्रति तत्पर रहना चाहिए और सत्य का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए।"
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