सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से बिहार में बाल विवाह के खात्मे की उम्मीदों को लगे पंख*

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से बिहार में बाल विवाह के खात्मे की उम्मीदों को लगे पंख*

●नए दिशानिर्देशों से उत्साहित 180 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस’ ने 2030 से पहले ही बिहार को बाल विवाह मुक्त बनाने का विश्वास जताया

●सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के लिए विभिन्न मंत्रालयों को जारी किए दिशानिर्देश

●एलायंस ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान का समर्थक है जिसके सहयोगियों की याचिका पर आया सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

बाल विवाह की रोकथाम के लिए सुप्रीम कोर्ट के नए दिशानिर्देशों के बाद नई उर्जा से लैस बिहार के नागरिक समाज संगठनों ने इसके खात्मे में राज्य सरकार के सभी प्रयासों को हरसंभव सहयोग देने का वादा किया है। बाल विवाह की 40.8 प्रतिशत दर के साथ बिहार इस मामले में देश के शीर्ष पांच राज्यों में शामिल है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन और प्रयास जेएसी सोसायटी जैसे जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस (जेआरसीए) के तमाम सहयोगी गैरसरकारी संगठन राजधानी पटना में इकट्ठा हुए और बाल विवाह के खात्मे के लिए रणनीतियों और उन पर प्रभावी अमल के तरीकों पर चर्चा की। इन संगठनों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों से पंचायतों के साथ मिलकर काम करने, जागरूकता के प्रसार और बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के लिए विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं को साथ जोड़ने जैसे उनके जमीनी कार्यों को और गति व मजबूती मिलेगी।     

गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन जेआरसीए बाल विवाह के खिलाफ ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान का समर्थक है जिसके सहयोगी सदस्य और संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसी के नतीजे में सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह के खात्मे के लिए ऐतिहासिक फैसले में विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए। जेआरसीए के समर्थन से चल रहा यह अभियान पहले से ही बाल विवाह के खात्मे के लिए ‘पिकेट’ (पीआईसीकेईटी) रणनीति पर अमल कर रहा है और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों में इसकी छाप स्पष्ट है। ‘पिकेट’ रणनीति का खाका ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ (सीएमएफआई) अभियान के संस्थापक भुवन ऋभु ने अपनी किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ में पेश किया था। यह एक समग्र रणनीति है जिसमें नीति, संस्थान, समन्वय या संम्मिलन, परिवेश और तकनीक जैसी सभी चीजें समाहित हैं। इस रणनीति पर अमल करते हुए सीएमएफआई ने पिछले एक साल में 120,000 से ज्यादा बाल विवाह रुकवाए हैं।
        
मीडिया से बातचीत के दौरान बिहार सरकार के प्रयासों में हरसंभव सहयोग का वादा करते हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के संयोजक रवि कांत ने कहा, “बाल विवाह बच्चों से बलात्कार है। यह बच्चों से उनके अधिकार और उनकी स्वतंत्रता छीन लेता है। एलायंस के सहयोगी इस अपराध के खात्मे के लिए काम कर रहे हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों से हमारे संकल्प को मजबूती मिली है। जेआरसीए बिहार से 2030 तक इस घृणित अपराध के खात्मे के संकल्प को पूरा करने के लिए राज्य सरकार का हरसंभव सहयोग व समर्थन करेगा। हमारे लिए यह अत्यंत गर्व का विषय है कि भारत इस घृणित अपराध के खात्मे की लड़ाई में सबसे अगली कतार में है और इसकी नीतियों व न्यायिक फैसलों ने दुनिया के सामने नजीर पेश की है।”
एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन के मुख्तारुल हक ने भी इस राय से सहमति जताते हुए कहा, “हम इस बात के गवाह हैं कि किस तरह सभी हितधारकों के प्रयासों में समन्वय व संम्मिलन, जागरूकता और शिक्षा एक ऐसे परिवेश के निर्माण की कुंजी हैं जहां बाल विवाह की गुंजाइश खत्म हो जाती है। हम सभी इन मोर्चों पर काम कर रहे हैं और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी अहमियत को रेखांकित किया है। हम आश्वस्त हैं कि इन दिशानिर्देशों पर तत्काल और प्रभावी अमल से हम 2030 से पहले ही बाल विवाह के खात्मे के निर्णायक बिंदु तक पहुंच जाएंगे।”

प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए प्रयास जेएसी सोसायटी के मुख्य समन्वयक अधिकारी जितेंदर कुमार सिंह ने कहा, “यह एक ऐतिहासिक फैसला है जो भारत से बाल विवाह के खात्मे का मार्ग प्रशस्त करेगा। इस फैसले ने सभी की जवाबदेही तय की है और यह सुनिश्चित किया है कि पंचायत से लेकर पुलिस तक सभी इस अपराध के खात्मे में अपनी भूमिका व जिम्मेदारी को समझें। हम राज्य सरकार के साथ खड़े हैं और जैसे भी संभव होगा, उसकी मदद करेंगे।”

बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) अभियान के गठबंधन सहयोगियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर को एक ऐतिहासिक फैसले में ग्रामीण समुदायों की लामबंदी पर जोर देते हुए बाल विवाह की रोकथाम के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए। इन दिशानिर्देशों में बच्चों के सशक्तीकरण, उनके अधिकारों के संरक्षण, यौन शिक्षा और समुदाय केंद्रित दृष्टिकोण पर जोर देने के साथ ही बाल विवाह की रोकथाम के लिए पंचायतों, स्कूलों और बाल विवाह निषेध अधिकारियों की जवाबदेही तय की गई। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 पर प्रभावी तरीके से अमल के लिए बचाव, संरक्षण व अभियोजन की रणनीति पर काम करते हुए कानूनी कार्रवाई को आखिरी विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाए।

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