*पारस एचएमआरआई ने रचा इतिहास बिना ब्लड ग्रुप मिले कर दिखाया किडनी ट्रांस्प्लांट*
बिना ब्लड ग्रुप मिले भी किडनी का ट्रांस्प्लांट संभव है। पारस एचएमआरआई, पटना ने एक 32 वर्षीय युवक का सफल एबीओ इंकाम्पिटेबल ट्रांस्प्लांट कर यह साबित कर दिया है। दरअसल, युवक की किडनी पूरी तरह से खराब हो गयी थी। लगातार डाइलिसिस के बाद भी उसकी स्थिति बिगड़ती जा रही थी। डॉक्टरों ने उसे किडनी ट्रांस्प्लांट की सलाह दी मगर कोई डोनर नहीं मिल रहा था। उसकी मां किडनी देने के लिए तैयार थी मगर उनका ब्लड ग्रुप मरीज के ब्लड ग्रुप से नहीं मिल रहा था। यही सबसे बड़ी मुश्किल की बात थी। आखिरकार अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के *विभागाध्यक्ष डॉ. शशि कुमार* ने मरीज के बी पॉजिटिव और उसकी मां के अलग एबी पॉजिटिव ब्लड ग्रुप के साथ उसकी किडनी का ट्रांसप्लांट करने की योजना बनाई। कई डॉक्टरों की टीम की अथक मेहनत के बाद उन्होंने ऐसी सर्जरी कर दिखाई जो बिहार में एक मिसाल बन गयी।
डॉ. शशि बताते हैं कि देश में हर साल करीब दो लाख 20 हजार नये मरीजों को डायलिसिस या ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। मगर सिर्फ 10-11 हजार लोगों का ही किडनी ट्रांसप्लांट हो पाता है। इसका मतलब है कि सिर्फ 5% जरूरतमंद लोगों का ही किडनी प्रत्यारोपण हो पाता है। इसका सबसे बड़ा कारण है किडनी दान करने वाले डोनर की कमी। इसमें भी एक बड़ा कारण है डोनर और मरीज का ब्लड ग्रुप मैच न कर पाना।
ऐसी स्थिति में बिना समान ब्लड ग्रुप के किडनी का ट्रांस्प्लांट करना जिसे एबीओ इंकाम्पिटेबल प्रत्यारोपण कहा जाता है, अंतिम विकल्प बचता है। यह काफी जटिल प्रक्रिया होती है। इसमें मरीज का प्लाजमा बदलकर और कुछ दवाइयां देकर उसे इस तरह बनाया जाता है कि उसका शरीर दूसरे ब्लड ग्रुप की किडनी को स्वीकार कर सके।
यह देश ही नहीं, बल्की पूरी दुनिया में बहुत गिने-चुने जगहों पर हो पाता है। हमने पहली बार ऐसा ट्रांस्प्लांट किया है।
नेफ्रोलॉजी विभाग के निदेशक और विभागाध्यक्ष *डॉ. शशि कुमार* के नेतृत्व में नेफ्रोलॉजी विभाग के *डॉ. जमशेद अनवर, डॉ. अभिषेक* , यूरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष *डॉ. अपूर्व चौधरी, डॉ. अंशुमन आशु, डॉ. विकास कुमार,* ब्लड बैंक से *डॉ. शांतनु* , पैथोलॉजी विभाग की *डॉ. विनिता सिन्हा* और एनिस्थिसिया के *डॉ. श्री नारायण* की पूरी टीम ने इस ट्रांसप्लांट को सफल बनाने में अपना योगदान दिया।
पारस एचएमआरआई के *फैसिलिटी डाइटेक्टर अनिल कुमार* ने डॉ. शशि कुमार सहित उनके सहयोगियों को इस मरीज को नई जिंदगी देने के लिए धन्यवाद दिया। बताया कि हमलोगों ने 2018 से किडनी ट्रांसप्लांट शुरू किया था और अबतक 70 मरीजों से ज्यादा का ट्रांसप्लांट कर चुके हैं। इसलिए पारस एचएमआरआई की भरोसेमंद सुविधा किडनी ट्रांस्प्लांट के लिए सबसे उपयुक्त है।
*पारस एचएमआरआई के बारे में*
पारस एचएमआरआई, पटना बिहार में 2013 से कार्यरत है। पारस इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर केयर बिहार में अपनी विशेषज्ञता, बुनियादी ढांचे और कैंसर देखभाल प्रदान करने के लिए जाना जाता है।
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