*भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं - समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं*

*भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं - समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 26 अगस्त, 2024 ::

भारतीय संस्कृति में पीपल देववृक्ष है, इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है। पीपल वृक्ष प्राचीन काल से ही भारतीय जनमानस में विशेष रूप से पूजनीय रहा है। ग्रंथों में पीपल को प्रत्यक्ष देवता की संज्ञा दी गई है। स्कन्दपुराणमें वर्णित है कि अश्वत्थ(पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं। पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत: मूर्तिमान स्वरूप है। यह सभी अभीष्टोंका साधक है। इसका आश्रय मानव के सभी पाप ताप का शमन करता है।

शास्त्रों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति पीपल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना करके उसकी पूजा-सेवा करता है, तो वह व्यक्ति जीवन के कष्टों से मुक्त हो जाता है और आने वाला बुरा समय भी टल जाता है। जो व्यक्ति पीपल का पौधा लगाता है और उसकी पूरी उम्र उसकी सेवा करता है, तो उस जातक की कुंडली के सभी दोष भी नष्ट हो जाते हैं, और उनके परिवार में सुख-समृद्धि आती है और शांति का वास होता है।

मान्यता है कि पीपल वृक्ष 24 घंटे सिर्फ ऑक्सीजन ही छोड़ता है, और आक्सीजन हमारे जीवन के लिए सबसे उपयोगी है। वृक्ष का शुद्ध ऑक्सीजन लेने से शरीर निरोगी रहता है। इसलिए पीपल का वृक्ष आक्सीजन का भण्डार है और यह हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग करने के लिए वर्णन किया गया है। ग्यारह नवनिर्मित मंदिरों में, शुभ मुहूर्त में, पीपल वृक्ष लगा कर, चालीस दिनों तक वृक्ष की सेवा या देखभाल करने पर उसकी व्यक्ति का अकाल मृत्यु नहीं होता है और जब तक वह जीवित रहता है तब तक उसके अपने परिवार में भी किसी का अकाल मृत्यु नही होता है।

सर्वविदित है कि शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष के पूजन और सात परिक्रमा करने से तथा काले तिल से युक्त सरसो के तेल के दीपक को जलाकर छायादान से शनि की पीडा खतम होता है। पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढाने पर घर से दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य खतम होता है। पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर, हनुमान चालीसा पढ़ने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और जीवन की हर  परेशानियों को हर लेते हैं। यानि जीवन की हर बाधा समाप्त हो जाती है। ऐसे भी दिन ढलने के बाद पीपल के वृक्ष के पास दीपक जलाना  शुभ माना गया है।

कहा गया है कि भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं कि समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं। इस प्रकार स्वयं भगवान ने अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्वको व्यक्त किया है। इसलिए पीपल वृक्ष के स्थल को  ब्रह्मस्थान कहा जाता है। इससे सात्विकता बढती है। मार्ग में जहां भी पीपल वृक्ष दिखे उसे देव की तरह प्रणाम करने से भी बहुत लाभ होता है। श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए थे।

मान्यता है कि अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या में पीपल वृक्ष के पूजन से शनि से मुक्ति प्राप्त होती है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से बडे से बड़े संकट से मुक्ति मिल जाती है। सांयकाल के समय पीपल के नीचे मिट्टी के दीपक को सरसों के तेल से प्रज्ज्वलित करने से दुःख व मानसिक कष्ट दूर होते है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है। पीपल की परिक्रमा सुबह सूर्योदय से पूर्व करने से अस्थमा रोग में राहत मिलती है।
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