आस्था, सेवा और साधना का अद्भुत संगम है - “पंडित शम्भू नाथ झा”
जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 18 दिसम्बर ::
भारत की सांस्कृतिक विरासत में वैदिक मंत्रों का स्थान केंद्रीय और कालातीत रहा है। वैदिक ऋचाएँ केवल धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा का माध्यम मानी गई हैं। इसका शुद्ध उच्चारण न सिर्फ वातावरण को पवित्र करता है बल्कि साधक के भीतर स्थिरता, शांति और दिव्यता भी भर देता है। इसी आध्यात्मिक परंपरा को आज भी जीवंत रखने वाले विद्वान, तपस्वी और सांस्कृतिक दूत हैं “पंडित शम्भू नाथ झा” जिनकी व्यक्तित्व-दीप्ति, साधना-गहराई और सेवा-भाव उन्हें सामान्य लोगों से अलग एक विलक्षण आयाम प्रदान करता है।
“पंडित शम्भू नाथ झा” केवल कर्मकांड के ज्ञाता नहीं हैं, वे वैदिक संस्कृति की स्वाभाविक, प्राणवान और सहज अभिव्यक्ति हैं। उनके मंत्रोच्चार की ध्वनि में वह कंपन है, जो कानों से अधिक हृदय तक पहुँचती है। वे कहते हैं- “मंत्र केवल बोला नहीं जाता, उसे जिया जाता है।” और यह सत्य उनके जीवन के हर क्षण में दृष्टिगोचर होता है। धोती-कुरता, खराँव और सरलता, यह केवल उनका पहनावा नहीं है, बल्कि उनकी संस्कृति-निष्ठा का प्रतीक है। देश हो या विदेश, मंदिर हो या कोर्ट, वे इसी भारतीय स्वरूप में उपस्थित होते हैं। यह समर्पण उन्हें आधुनिक युग में भी परंपरा का जीवंत सेतु बनाता है।
“पंडित शम्भू नाथ झा” की वैदिक अनुष्ठानों में पकड़ केवल सीखी हुई नहीं है, बल्कि साधना का फल है। विशेषकर रुद्राभिषेक, जप-तप, हवन, गृह प्रवेश, वैदिक शुद्धि कर्म, विविध संस्कार अनुष्ठान, इन सभी में उनकी विशेषज्ञता अतुलनीय है। विदेशों में बसे भारतीय समुदायों ने भी उनके वैदिक ज्ञान की प्रामाणिकता को सराहा है। पटना हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अंजना मिश्रा द्वारा रुद्राभिषेक में उनकी दक्षता के लिए दिया गया सम्मान भी इसका प्रमाण है।
उत्तराखंड की हिमगर्भित चोटियों पर स्थित स्वर्गारोहिणी मार्ग को हिन्दू धर्म में पवित्रतम स्थानों में गिना जाता है। यही वह पथ है जहाँ से युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग गए थे। यह यात्रा सामान्य मनुष्य के लिए असंभव मानी जाती है। लेकिन पंडित शम्भू नाथ झा ने इस देवमार्ग को पार कर अपनी साधना को अद्वितीय आयाम दिया। उन्होंने भोजपत्र वन, लक्ष्मी वन, चक्रतीर्थ जैसे चुनौतीपूर्ण स्थलों को पार कर सतोपंथ झील तक पहुँचा, जहाँ माना जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश स्नान करने आते हैं। उस दिव्य स्थल पर उन्होंने रुद्राभिषेक किया, वही प्रक्रिया जो पांडवों ने हजारों वर्ष पूर्व की थी। उनकी आँखों में आज भी उस यात्रा की दिव्यता तैरती है। वे बताते हैं कि “वहाँ हवा ठंडी थी, पर भीतर एक अग्नि जल रही थी, आस्था की अग्नि, जो थकान को साधना में बदल देती है।” कई बार सम्पन्न की गई उनकी कैलाश यात्रा ने उन्हें आध्यात्मिक ऊँचाइयों का अनुभव कराया। मानसरोवर के तट पर किया गया उनका रुद्राभिषेक साधकों में दुर्लभ माना जाता है। उन यात्राओं ने उन्हें केवल सिद्धि ही नहीं, अंतरीय शांति और आत्मीय चेतना भी प्रदान की।
देश-विदेश में “पंडित शम्भू नाथ झा” की पहचान एक श्रेष्ठ फेस रीडर के रूप में भी है। वे कहते हैं कि “चेहरा कभी झूठ नहीं बोलता। वह मनुष्य के भीतर छिपे सत्य को प्रकट करता है।” उनकी फेस रीडिंग विशेषताओं में शामिल हैं, चेहरे के आकार से व्यक्तित्व विश्लेषण, आँखों और भृकुटि से भावनाएँ और मानसिक अवस्था, रेखाओं से जीवन के संघर्ष और संभावनाएँ और मुखमुद्राओं से भविष्य के संकेत। हजारों लोग उनके मार्गदर्शन से जीवन की दिशा पाते हैं। उनकी यह क्षमता उन्हें केवल ज्योतिषी नहीं, मानसिक-आध्यात्मिक परामर्शदाता बना देती है।
मधुबनी जिला के श्रीपुर हाटी मध्य नवहय गाँव से आरंभ हुआ उनका जीवन आज अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुँच चुका है। उनकी शिक्षा की यात्रा प्रारंभिक पढ़ाई गाँव के विद्यालय में हुई, मधुबनी से इंटर और स्नातक, संस्कृत बोर्ड से मध्यमा और सरिसबपाही कॉलेज से उपशास्त्री में प्रथम स्थान मिला। यह उपलब्धियाँ दिखाती हैं कि प्रतिभा अवसरों की मोहताज नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान वे केंद्रीय मंत्री रीता वर्मा के साथ भाषा सहायक के रूप में भी कार्य कर चुके हैं यह उनकी प्रशासनिक योग्यता का प्रमाण है।
भारत हो या विदेश, “पंडित शम्भू नाथ झा” जहाँ भी गए, अपनी साधना और सेवा से सभी का दिल जीता। उन्हें प्राप्त हुए प्रमुख सम्मान में भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद से “ज्योतिष और कर्मकांड दोनों में गोल्ड मेडल”, ₹21,000–₹21,000 का पुरस्कार एव प्रशस्ति पत्र। बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी द्वारा ‘जीनियस अवार्ड’। ओडिशा सरकार के प्रधान सचिव संजय कुमार सिंह द्वारा विशेष सम्मान। अंतरराष्ट्रीय सम्मान अजरबैजान, वियतनाम, मलेशिया में मिला। इन देशों में उन्हें भारतीय संस्कृति, फेस रीडिंग, ज्योतिष और मानवीय सेवाओं के लिए प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यह सिद्ध करता है कि उनका प्रभाव सीमाओं से परे है।
“पंडित शम्भू नाथ झा” केवल अनुष्ठान के ज्ञाता नहीं हैं, सेवा-भाव से भरे साधक हैं। देशभर से आने वाले सैकड़ों लोग उनके आश्रम पहुँचते हैं और वे उनमें से अधिकांश को निःशुल्क सेवा और परामर्श प्रदान करते हैं। उनका निवास पूर्वी गोला रोड, बाजार समिति, गली नं-1, वार्ड नं-35, दानापुर, पटना आध्यात्मिक seekers के लिए तीर्थ जैसा बन चुका है। लोग वहाँ से समाधान, शांति और सकारात्मक ऊर्जा लेकर लौटते हैं।
उनके व्यक्तित्व में तीन धाराएँ निरंतर बहती हैं। आस्था- हर अनुष्ठान, हर यात्रा, हर शब्द में अनुभव होती है। तप- स्वर्गारोहिणी यात्रा, कैलाश यात्रा, निरंतर आध्यात्मिक अभ्यास, ये केवल यात्राएँ नहीं हैं, जीवन की तपश्चर्या हैं। सेवा- लोगों के जीवन से दुख हटाना ही उनका लक्ष्य है। वे कहते हैं कि “मनुष्य तभी पूर्ण होता है, जब वह दूसरों के जीवन में रोशनी फैला सके।”
“पंडित शम्भू नाथ झा” का जीवन केवल उपलब्धियों की सूची नहीं है, बल्कि एक संदेश है कि जब मनुष्य “साधना”, “सेवा” और “संस्कृति” के मार्ग पर चलता है, तो वह स्वयं प्रकाश का स्रोत बन जाता है। वे इस युग में परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सेतु, आस्था और विज्ञान के बीच एक संवाद, और समाज तथा अध्यात्म के बीच एक संतुलन हैं। उनकी यात्रा बताती है कि भारतीय संस्कृति की गहराई आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी सहस्रों वर्ष पूर्व थी। “पंडित शम्भू नाथ झा” जैसे व्यक्तित्व उसी संस्कृति के उज्ज्वल स्तंभ हैं, जो समय, सीमाओं और भाषाओं से परे “मानव कल्याण” का संदेश देते हैं।
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