बिहार का चुनाव परिणाम, उम्मीद और समझ से परे: दीपंकर भट्टाचार्य

बिहार का चुनाव परिणाम, उम्मीद और समझ से परे: दीपंकर भट्टाचार्य


*विपक्ष विहीन लोकतंत्र बनाने की कोशिश चिंता बढ़ाती है, लेकिन यहीं से आगे का रास्ता निकलेगा*

पटना 16 नवंबर 2025

माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने आज पटना में बताया कि चुनाव में उतरे सभी उम्मीदवारों की आज बैठक हुई है. 18 से 24 नवंबर तक जीते-हारे सभी उम्मीदवार जनता के बीच रहकर सघन जनसंपर्क और जनसंवाद अभियान चलाएंगे.

उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने हम पर भरोसा किया, उनका आभार व्यक्त करेंगे, और जिन्होंने वोट नहीं दिया, उनकी बात भी सुनने और समझने की कोशिश की जाएगी. बिहार के चुनाव परिणाम पर जनता क्या सोच रही है, इसे जानने और संवाद बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा.

संवाददाता सम्मेलन में राज्य सचिव कुणाल, मीना तिवारी, शशि यादव, नवनिर्वाचित विधायक संदीप सौरभ व अरुण सिंह, शिवप्रकाश रंजन और दिव्या गौतम मौजूद थे.

28 से 30 नवंबर तक पटना में पार्टी की केंद्रीय कमिटी की बैठक और 1 दिसंबर को राज्य कमिटी की बैठक आयोजित होगी.

का. दीपंकर ने कहा कि बिहार का चुनाव परिणाम न तो अपेक्षित है और न ही सहज समझ में आने वाला. यह पूरी तरह अप्रत्याशित है. उन्होंने 2010 का उदाहरण देते हुए कहा कि वह नीतीश कुमार के उभार का समय था, लेकिन आज एक लड़खड़ाती हुई सरकार को इतना बड़ा बहुमत मिलना समझ से परे और शोध का विषय है. लेकिन कुछ महत्वपूर्ण बातें साफ़ दिखाई देती हैं.

1. मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर छेड़छाड़

उन्होंने कहा कि एसआईआर के जरिए चुनाव से ठीक पहले पूरी मतदाता सूची को नए सिरे से तैयार किया गया. लगभग 70 लाख नाम हटाए गए.

कई लोग जब वोट डालने पहुँचे, तब उन्हें पता चला कि उनका नाम सूची में नहीं है.

22 लाख नाम जोड़े गए, और एसआईआर की फाइनल लिस्ट के बाद केवल 10 दिनों में साढ़े तीन लाख नए नाम भी जोड़ दिए गए. यह कोई मामूली बात नहीं है और इसका चुनाव पर गहरा प्रभाव पड़ा.

2. चुनाव घोषणा से पहले सरकारी योजनाओं और पैसों की बाढ़

उन्होंने कहा कि चुनाव की घोषणा तब तक नहीं हुई, जब तक सरकार ने अपनी सभी योजनाओं की घोषणाएँ नहीं कर दीं. 10,000 रुपये की योजना का पैसा पूरे चुनाव काल में खुलकर बंटता रहा. 30 दिनों में 30 हजार करोड़ रुपये बाँटने की छूट-यह बेहद चिंताजनक है.

भारत के चुनाव इतिहास में इस तरह की मिसाल नहीं मिलती. यदि भविष्य में भी सरकारों को चुनाव से ठीक पहले इस तरह पैसे बाँटने की छूट मिलती रही, तो चुनाव की निष्पक्षता और लोकतंत्र दोनों पर गंभीर प्रश्न खड़े होंगे.

3. वोट और सीटों के बीच गहरी असमानता

उन्होंने कहा कि माले को 14 लाख से अधिक वोट मिले, यानी वोटों में कोई कमी नहीं आई. फिर भी सीटों में यह दिखाई नहीं देता. माले का वोट प्रतिशत 3 है, जबकि सीटें मात्र 1 प्रतिशत के आसपास.राजद का वोट प्रतिशत सबसे अधिक है, लेकिन सीटें केवल 25.

यह हमारी चुनाव प्रणाली की स्पष्ट विडंबना है, जिसमें अधिक वोट पाने के बावजूद हार का सामना करना पड़ता है.

का. दीपंकर ने कहा कि दबावों के बावजूद माले पर भरोसा जताने वाले 14 लाख वोटरों के प्रति वे गहरा आभार व्यक्त करते हैं. इंडिया गठबंधन के साथ खड़े सभी लोगों और कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद दिया.

बिहार के मुद्दों पर संघर्ष जारी रहेगा
उन्होंने कहा कि रोजगार, शिक्षा, आवास, सुरक्षित काम, जीने लायक वेतन, दलित उत्पीड़न, महिलाओं पर हिंसा और अल्पसंख्यकों पर हमलेजैसे असली मुद्दों पर संघर्ष की राह और तेज़ होगी.

इंडिया गठबंधन को झटका, लेकिन एसआईआर राष्ट्रीय मुद्दा बनेगा
उन्होंने कहा कि गठबंधन को झटका मिला है और लोग दुखी हैं, लेकिन एसआईआर को लेकर चिंता पूरे देश में महसूस की जा रही है. विभिन्न राज्यों से लगातार फोन आ रहे हैं - लोग कह रहे हैं कि एसआईआर के खिलाफ लड़ाई पूरे देश का मुद्दा बनेगा.

विपक्ष विहीन लोकतंत्र बनाने की जो कोशिशें चल रही हैं, वे चिंता बढ़ाती हैं, लेकिन इसी चिंता के बीच से  रास्ता निकलेगा.

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