धान-परती भूमि प्रबंधन कार्यक्रम के अंतर्गत धान की सीधी बुआई की जानकारी दी गई

धान-परती भूमि प्रबंधन कार्यक्रम के अंतर्गत धान की सीधी बुआई की जानकारी दी गई

धान-परती भूमि प्रबंधन कार्यक्रम के अंतर्गत किसानों को सीधी बुआई व विविध कृषि तकनीकों की जानकारी प्रदान की गई

गया जिले के टेकारी प्रखंड के गुलेरियाचक गाँव में धान-परती भूमि प्रबंधन कार्यक्रम के अंतर्गत प्रक्षेत्र दिवस एवं कृषक-वैज्ञानिक वार्तालाप कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को नवीनतम कृषि तकनीकों से अवगत कराना तथा धान-परती भूमि के सतत उपयोग हेतु वैज्ञानिक मार्गदर्शन प्रदान करना था। कार्यक्रम का संयुक्त आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना एवं कृषि विज्ञान केंद्र, गया द्वारा किया गया। इस अवसर पर किसानों को धान की सीधी बुआई तकनीक (स्वर्ण श्रेया प्रजाति) से परिचित कराया गया। 
डॉ. के. डी. कोकाटे, पूर्व उप महानिदेशक (कृषि प्रसार), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने सुझाव दिया कि कृषि विज्ञान केंद्र को स्थानीय रूप से उपयुक्त किस्मों का प्रदर्शन करना चाहिए। साथ ही उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि जो किसान सरकारी योजनाओं के अंतर्गत बीज प्राप्त करते हैं, वे उन बीजों को अन्य किसानों के साथ साझा करें और स्वयं भी बीज उत्पादन की दिशा में कदम उठाएँ।
डॉ. मसूद अली, पूर्व निदेशक, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर ने धान-परती भूमि में दलहनी फसलों के चयन पर बल दिया। उन्होंने कहा कि दलहनी फसलें किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ भूमि की उर्वरता में भी वृद्धि करती हैं। उन्होंने अरहर की IPA 203 प्रजाति की विशेषता बताते हुए कहा कि यह उखठा रोग एवं मोज़ेक वायरस से सुरक्षित है तथा इसकी उपज लगभग 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। उन्होंने किसानों से इस प्रजाति को मेड़ पर लगाने का आग्रह किया। साथ ही उन्होंने धान कटाई के बाद शून्य जुताई विधि से मसूर की IPL 220 तथा तिलहनी फसल में कुसुम की बुआई करने और फूल आने की अवस्था में 2% यूरिया घोल का छिड़काव करने की सलाह दी।
डॉ. अनुप दास, निदेशक, भा.कृ.अनु.प. का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना एवं  परियोजना प्रमुख ने कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों का स्वागत करते हुए परियोजना की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने जोर दिया कि धान-परती भूमि के प्रबंधन की शुरुआत धान की फसल लगाने से ही करनी होगी, और इसके लिए अल्पकालिक प्रजाति धान की किस्मों का चयन आवश्यक है।
डॉ. एस कुमार, पूर्व प्रमुख, भा.कृ.अनु.प. का पूर्वी अनुसंधान परिसर - अनुसंधान केंद्र, रांची ने धान-परती प्रबंधन के साथ-साथ फलदार वृक्षों और सब्जियों के समावेश पर जोर दिया |
डॉ. एस.डी. सिंह, पूर्व सहायक महानिदेशक (मत्स्य विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने समेकित कृषि प्रणाली के अंतर्गत पशुपालन एवं मत्स्य पालन को खेती में शामिल करने पर बल दिया।
डॉ. के. एन. तिवारी, प्रोफेसर, आईआईटी, खड़गपुर ने सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों एवं संरक्षण खेती की आवश्यकता बताई। उन्होंने उच्च मूल्य वाली फसलों की खेती को बढ़ावा देने की बात कही।
डॉ. अवनि कुमार सिंह, भा.कृ.अनु.प. का पूर्वी अनुसंधान परिसर - अनुसंधान केंद्र, रांची  ने किसानों को सुझाव दिया कि वे नियमित रूप से कृषि विज्ञान केन्द्रों के संपर्क में रहें ताकि उन्हें विभिन्न सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिल सके।
कार्यक्रम में डॉ. कमल शर्मा, सदस्य सचिव, अनुसंधान परामर्शदात्री समिति, एवं डॉ. गौस अली, वैज्ञानिक की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिनके सक्रिय सहयोग से आयोजन को सफलतापूर्वक संपन्न किया गया।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अजय कुमार, प्रधान वैज्ञानिक द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्होंने सभी अतिथियों, वैज्ञानिकों, किसानों एवं आयोजकों को कार्यक्रम में भागीदारी के लिए आभार प्रकट किया। कार्यक्रम में लगभग 55 किसानों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया

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