एशिया के बड़े सोन पुर मेला में अंतरराष्ट्रीय शायर क़ासिम खुर्शीद का जलवा

एशिया के बड़े सोन पुर मेला में अंतरराष्ट्रीय शायर क़ासिम खुर्शीद का जलवा

अंधेरों के ये जुगनू हैं उजालों पर नहीं चलते

पटना
एशिया के प्रसिद्ध सोन पुर मेला में सामयिक परिवेश की टीम ने भव्य प्रोग्राम पेश किया जिन में विशेष रूप से ग़ज़ल गायिकी और ग़ज़ल प्रस्तुति शामिल है 
आयोजन तब और यादगार बन गया जब अंतरराष्ट्रीय ख्याति के प्रसिद्ध शायर डॉ क़ासिम खुरशीद जो देश के बड़े मुशायरे में पूर्व में भी इस मंच पर अपनी प्रस्तुति से सोनपुर मेले के बेहतरीन श्रोताओं को बेहद प्रभावित कर चुके थे 
उनसे विशेष वार्ता पर डा क़ासिम खुरशीद ने बताया कि मैं विशेष रूप से सामयिक परिवेश और ममता मेहरोत्रा जी का आभारी हूं कि वो स्वयं भी देश की बड़ी रचनाकार हैं और जब उनका हुक्म हुआ तो ग़ज़ल की इस शाम में मैं हाज़िर हुआ । हमेशा की तरह श्रोताओं का बहुत स्नेह मिला और सौभाग्य है कि सोशल मीडिया पर हज़ारों लोग अब भी सुन रहे हैं और अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। बस यही किसी साहित्यकार की पूंजी भी है लोग खुद सुन कर स्वाभाविक रूप से अपनी प्रतिक्रियाएं देते हैं तो खुशबू खुद ब खुद फैलती चली जाती है। इस मौके पर पेश किए मेरे सभी कलाम को पसंद किया गया।
डा खुर्शीद ने आग्रह पर पुन उस आयोजन में पेश किए अपने कुछ अशआर सुनाए ।

तुम्हारी याद में खोता नहीं हूं
मगर मैं रात भर सोता नहीं हूं
कहीं मुझ में सफ़र रहता है जारी
मगर मैं तो वहां होता नहीं हूं!

  वो गिरते हैं संभलते हैं सहारों पर नहीं चलते
अंधेरों के ये जुगनू हैं उजालों पर नहीं चलते
तमाशा देखने वाले तो बस साहिल पे रहते हैं
जिन्हें उस पार जाना हो किनारों पर नहीं चलते
और ये भी सुनाया कि:
मुझे फूलों से बादल से हवा से चोट लगती है
अजब आलम है इस दिल का वफ़ा से चोट लगती है
वो जब से मर गया मुझ में न दस्तक है न बेचैनी
ख़मोशी है सदा मेरी सदा से चोट लगती है
डा खुर्शीद ने इस सफल आयोजन के लिए सामयिक परिवेश की पूरी टीम सभी कलाकारों रचनाकारों यथा डा प्रतिभा रानी सविता राज और जिला प्रशासन का भी विशेष शुक्रिया अदा करते हुए बधाई भी दी।

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