*नाटक को विकसित करने में हमारा पूर्ण सहयोग रहेगा: अंजनी कुमार सिंह*

*नाटक को विकसित करने में हमारा पूर्ण सहयोग रहेगा: अंजनी कुमार सिंह*



कालिदास लिखित नाटक 'संवत्सर कथा' के मंचन के साथ भारतीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) द्वारा भारत रंग महोत्सव के अंतर्गत  थिएटर फेस्टिवल का समापन 


पटना, 19 फरवरी 2024: भारतीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) द्वारा भारत रंग महोत्सव के अंतर्गत  थिएटर फेस्टिवल का आज कालिदास रंगालय में समापन हो गया। समापन के दिन लोक नृत्य का भी आयोजन किया गया।


इस अवसर पर बिहार म्यूजियम के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह मुख्य अतिथि थे। इनके अतिरिक्त विशिष्ट अतिथि के रूप में नेशनल फ़िल्म क्रिटिक सम्मान से सम्मानित विनोद अनुपम, थिएटर निर्देशक परवेज़ अख्तर,  संजय उपाध्याय  उपस्थित थे। एनएसडी रंगमंडल प्रमुख राजेश कुमार सिंह ने इस अवसर ओर अतिथियों का स्वागत किया।


अपने सम्बोधन में बिहार म्यूजियम के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने कहा के बिहार में नाटक के विकास के लिए हमारा भरपूर सहयोग मिलेगा। उन्होंने कहा के बिहार म्यूजियम में भी एक ऑडिटोरियम का निर्माण किया गया है। उसमें नाटक का भी मंचन किया जा सकेगा। उन्होंने ने नाटक के प्रति दर्शकों के प्रेम को सराहा और कालिदास रंगालय में भारी उपस्थिति पर प्रसन्नता व्यक्त की।


भारतीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा), दिल्ली के तत्वाधान में पटना में भारत रंग महोत्सव के तहत थिएटर फेस्टिवल के अंतिम दिन, आज 19 फरवरी को पटना के कालिदास रंगालय में प्रसिद्ध नाटककार कालिदास द्वारा लिखित बहुभाषी नाटक ‘संवत्सर कथा’ का मंचन किया गया। इसका निर्देशन एवं रूपांतरण पियाल भट्टाचार्य ने किया है तथा इसे चिदाकाष, कोलकाता, पष्चिम बंगाल समूह ने तैयार किया है। नाटक की प्रस्तुति बहुभाषी में की गयी है।

नाटक का सारांश:


संवत्सर (12 महीने के चक्र) की ब्रह्मांडीय अवधारणा को मूर्त रूप देने पर केंद्रित यह नाटक मानव नायकों के रूप में ऋतुओं के उद्भव को चित्रित करता है, जो अग्नि (ब्रह्मांडीय कारण ऊर्जा) और सोम (ब्रह्मांडीय कारण पदार्थ) के संयोजन को दर्शाता है, जो बहुत हद तक इंसानों की तरह प्राकृतिक एवं सांसारिक मामले में निवास करता है। ब्रह्मांडीय पहलुओं का सामंजस्यपूर्ण संतुलन प्राण का निर्माण करता है, जो ब्रह्मांड का वाहक है। शास्त्रीय काव्यों और पारंपरिक सांस्कृतिक प्रथाओं का रूपांतरण समसामयिकता में विलीन होकर नाटक का स्वरूप तैयार करता है। ऋतुसंहार और शिशुपालवध के छंद और दृश्य विवरण कुछ ऋतु-नायकों के निवास के लिए संवाद और परिदृश्य को आगे बढ़ाते हैं, जबकि ध्रुपद के पद की चुनी हुई प्रस्तुतियाँ बाँधने वाले धागों और धु्रवगणों की तरह काम करती हैं। शूद्रक के भाण के खंड, बाजार-दृश्य के सर्वव्यापी दायरे को दर्शाते हैं-ब्रह्मांडीय से सांसारिक तक-पारगमन से मनोरंजन और उल्लास तक-नाटक के समतावादी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं। अंत में, चक्र को जारी रखने के लिए सभी ब्रह्मांडीय सतह में उभर आते हैं।


पटना के कालीदास रंगालय में भारत रंग महोत्सव के तहत थिएटर फेस्टिवल का आरंभ 14 फरवरी को साजिदा साजी द्वारा निर्देशित ‘दोजख’ नाटक की प्रस्तुति के साथ हुआ। आज समाप्त हुए इस समारोह का उद्घाटन कला एवं संस्कृति विभाग की अपर मुख्य सचिव हरजोत कौर बमराह ने द्वीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर मुख सूचना आयुक्त श्री त्रिपुरारी शरण सिंह, श्री हरिकेश सुलभ तथा राष्टीय नाट्य विद्यालय के फैकल्टी मेंबर आसिफ अली हैदर खान भी अतिथि के रूप में उपस्थित थे।



इस बार भारत रंग महोत्सव (बीआरएम) अपना 25वां वर्ष मना रहा है। ये महोत्सव 1 फ़रवरी से 21 फ़रवरी तक भारत के 15 शहरों में आयोजित किया जा रहा है, जिसमें दिल्ली, मुंबई, पुणे, भुज, विजयवाड़ा, जोधपुर, डिब्रूगढ़, भुवनेश्वर, पटना, रामनगर और श्रीनगर आदि शहर शामिल हैं. इस 21 दिवसीय थिएटर फेस्टिवल में 150 से अधिक प्रदर्शन, कार्यशालाएं, चर्चाएं और मास्टरक्लास शामिल हैं। इस वर्ष भारत रंग महोसव की रजत जयंती मनाई जा रही है। इस वर्ष भारंगम की विषयवस्तु ‘वसुधैव कुटुंबकम-वंदे भारंगम्’ है। यह रंगमंच के माध्यम से वैश्विक एकता को बढ़ावा देने, सामाजिक सद्भाव को समृद्धि प्रदान करने के उद्देश्य का प्रतिरूप है। इस प्रदर्शन कला के माध्यम से विविध संस्कृतियों को एक साथ लाते हुए, एक साझा वैश्विक परिवार की भावना विकसित करने का उद्देश्य है।

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