श्रीमती प्रभा कुमारी, सहायक प्रशासनिक अधिकारी द्वारा स्वरचित कविता
जंगल-जंगल गूँज उठी थी, धरती की संतानों की पुकार,
ऊलगुलान का ज्वाला लेकर, उठा था एक वीर जवान अपार।
वह था बिरसा, धरती आबा,
जन–जन का था अपना लाला,
जिसने अन्याय से लड़ने को,
जगाया था पूरा जमशोला।
ब्रिटिश शासन की जंजीरों को,
तोड़ दिया था अपने बल से,
आदिवासी हक और अस्मिता को,
लिख डाला अपने अटल संकल्प से।
जंगल-पहाड़ों की मिट्टी ने,
दिया था उसको शेर दिल,
“अबुआ दिसुम, अबुआ राज” का
नारा बना सभी का खिल।
बच्चों की आँखों में सपना,
बुज़ुर्गों की आवाज़ में आग,
बिरसा ने सिखाया संघर्ष,
कि हक के लिए लड़ना है जाग।
आज भी झारखंड की धरती पर,
उसकी कथा अमर है लिखी,
हर दिल में बिरसा की गूँज—
स्वाभिमान की जलती शिखी।
धरती आबा के चरणों में,
शत–शत नमन हमारा हो,
उनकी आत्मा से प्रेरित होकर
झारखंड सदैव न्यारा हो।
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