बिल्ट-अप, सुपर बिल्ट-अप और कार्पेट एरिया समझ कर ही फ्लैट खरीदना चाहिए

बिल्ट-अप, सुपर बिल्ट-अप और कार्पेट एरिया समझ कर ही फ्लैट खरीदना चाहिए

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 28 जुलाई ::

रियल एस्टेट की दुनिया में कदम रखने से पहले हर खरीदार के मन में सबसे पहला सवाल यही होता है कि कौन सा फ्लैट सस्ता, बड़ा और बेहतर होगा? तेजी से बढ़ती कीमतों के बीच कम बजट में बड़ा घर पाना किसी सपने जैसा लगता है। लेकिन अगर सही तकनीकी जानकारी के साथ घर खरीदने जाय, तो यह सपना हकीकत में बदला जा सकता है।

आज के समय में एक फ्लैट की कीमत उसके क्षेत्रफल यानि स्क्वायर फीट के आधार पर तय होती है। मगर यह स्क्वायर फीट तीन तरह के होते हैं- कार्पेट एरिया, बिल्ट-अप एरिया और सुपर बिल्ट-अप एरिया। आम आदमी के लिए इनमें फर्क समझ पाना मुश्किल होता है, लेकिन यही सबसे अहम पहलू है, जो आपके पैसे की कीमत तय करता है।

कार्पेट एरिया- सबसे वास्तविक मापदंड होता है। यह फ्लैट के भीतर वह क्षेत्र होता है जिस पर कालीन (carpet) बिछा सकते हैं या आसान शब्दों में कहें तो वह जगह जहां वास्तव में रहेंगे। कार्पेट एरिया में शामिल होता है बेडरूम, ड्रॉइंग रूम, किचन, बाथरूम, स्टोर रूम आदि। यह दीवारों की मोटाई को शामिल नहीं करता है। उदाहरण के लिए अगर किसी फ्लैट का कार्पेट एरिया 1,000 स्क्वायर फीट है, तो यही वास्तविक उपयोग योग्य स्थान को दर्शाता है।

बिल्ट-अप एरिया- इसमें फ्लैट की चारदीवारी, अंदर की दीवारों की मोटाई, अटैच बालकनी, यूटिलिटी एरिया आदि शामिल होता है। यानि बिल्ट-अप एरिया = कार्पेट एरिया + दीवारें + बालकनी + यूटिलिटी एरिया। यह आमतौर पर कार्पेट एरिया से 10% से 20% ज्यादा होता है। उदाहरण के लिए अगर कार्पेट एरिया 1,000 स्क्वायर फीट है, तो बिल्ट-अप एरिया 1,100 से 1,200 स्क्वायर फीट हो सकता है।

सुपर बिल्ट-अप एरिया- यह सबसे भ्रमित करने वाला हिस्सा है। सुपर बिल्ट-अप एरिया में बिल्ट-अप एरिया के साथ-साथ बिल्डिंग के सभी कॉमन एरिया जैसे लॉबी, लिफ्ट, सीढ़ियां, क्लब हाउस, पार्किंग एरिया, गार्डन, स्विमिंग पूल आदि शामिल होते हैं। यानि सुपर बिल्ट-अप एरिया = बिल्ट-अप एरिया + साझा सुविधाएं (प्रति फ्लैट आवंटित अनुपात में)। यह कार्पेट एरिया से 25% से 40% तक अधिक हो सकता है। उदाहरण के लिए अगर कार्पेट एरिया 1,000 स्क्वायर फीट है, तो सुपर बिल्ट-अप एरिया 1,250 से 1,400 स्क्वायर फीट हो सकता है।

घर में रहने योग्य स्थान की वास्तविकता कार्पेट एरिया से तय होती है। जबकि अधिकतर बिल्डर सुपर बिल्ट-अप एरिया के आधार पर फ्लैट की कीमत बताता है। यहीं से भ्रम की शुरुआत होती है।

अगर दो प्रोजेक्ट में फ्लैट 1,200 स्क्वायर फीट के हैं, लेकिन एक का कार्पेट एरिया 950 स्क्वायर फीट है और दूसरे का केवल 800 स्क्वायर फीट, तो पहले प्रोजेक्ट में ज्यादा उपयोगी जगह मिलेगी, भले ही कीमत थोड़ी ज्यादा हो।

केवल सुपर बिल्ट-अप के आधार पर तुलना करेंगे, तो भ्रमित हो सकते हैं। ब्रेकअप मांगने से जान पाएंगे कि किस प्रोजेक्ट में कितना उपयोगी एरिया मिल रहा है। कम कार्पेट एरिया वाले फ्लैट में अधिक कीमत देना नुकसानदायक हो सकता है। जिन प्रोजेक्ट्स में कॉमन एरिया छोटा होता है, वहां बड़े फ्लैट मिल सकता हैं, क्योंकि कार्पेट एरिया ज्यादा होता है।

बिल्डर से पूछना चाहिए कि फ्लैट का कार्पेट एरिया कितना है? फ्लैट का बिल्ट-अप और सुपर बिल्ट-अप एरिया कितना है? साझा सुविधाओं में कितना प्रतिशत एरिया जोड़ा गया है? रेरा प्रमाणित एरिया ब्रेकअप है या नहीं? क्या पार्किंग एरिया शामिल है कुल स्क्वायर फीट में?

रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (RERA) ने बिल्डरों के लिए यह अनिवार्य कर दिया है कि वे कार्पेट एरिया के आधार पर ही फ्लैट की कीमत बताएं। लेकिन प्रैक्टिकल स्तर पर अब भी कई बिल्डर ग्राहकों को भ्रमित करते हैं। इसलिए जरूरी है कि ग्राहक खुद जागरूक हो और हर दस्तावेज में कार्पेट एरिया की जानकारी मांगे।

दिल्ली-एनसीआर में 2 बीएचके फ्लैट की कीमत ₹1.2 करोड़ से शुरू होता है,  मुंबई में 2 बीएचके का सुपर बिल्ट-अप एरिया 800 sq.ft. पर भी ₹1.8 करोड़ से शुरू होता है। बेंगलुरु में तेजी से बढ़ती कीमतें, लेकिन पारदर्शी बिल्डर मौजूद हैं और  हैदराबाद, पुणे में सस्ते में बड़ा फ्लैट मिल जाता है, लेकिन सही जानकारी लेना जरूरी होता है।

शहर के विस्तार क्षेत्र या उपनगरों में बड़े कार्पेट एरिया वाले फ्लैट सस्ते मिल सकता हैं, लेकिन नई डेवलपिंग लोकेशन पर ध्यान देना होगा। बहुत अधिक गार्डन, क्लब हाउस या ओपन स्पेस का दिखावा अक्सर फ्लैट के आकार को छोटा कर देता है, इसलिए कॉमन एरिया ज्यादा नहीं हो, ऐसे प्रोजेक्ट चुनना चाहिए। रेरा रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट चुनने पर फ्लैट की पारदर्शिता और भरोसेमंद आंकड़े मिलते हैं। पुरानी इमारतों में कम सुपर बिल्ट-अप, ज्यादा कार्पेट एरिया मिलता है, इसलिए रीसेल प्रॉपर्टी की तरफ भी रुख किया जा सकता है।

फ्लैट खरीदने से पहले फ्लैट का कार्पेट एरिया पूछना चाहिए, बिल्डर से नक्शा और ब्रेकअप मांगना चाहिए, प्रोजेक्ट की RERA आईडी चेक करना चाहिए, कीमत की तुलना कार्पेट एरिया के आधार पर करना चाहिए, कॉमन एरिया में ओवरप्रोमिसिंग से सावधान रहना चाहिए, अपने बजट और जरूरत के हिसाब से समझदारी से निर्णय लेना चाहिए। 
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